
Kamakhya temple about secre
नई दिल्ली। 51 शक्तिपीठों में से एक कामाख्या शक्तिपीठ एक बड़ी आस्था का केन्द्र है। इस मंदिर में छिपी शक्तियों के कारण यहां हमेशा चमत्कार होते रहते है। और इसके चलते इसे अघोरियों और तांत्रिकों का गढ़ माना जाता है। असम की राजधानी दिसपुर से लगभग 7 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ नीलांचल पर्वत से 10 किलोमीटर दूर है। चमत्कारों से भरे इस मंदिर में देवी की योनि की पूजा की जाती है और योनी भाग के यहां होने से माता यहां रजस्वला भी होती हैं। मंदिर से कई अन्य रौचक बातें जुड़ी है, आइए जनते हैं इसके बारे में ...
1- स्त्री में रजस्वला
पूर्ण स्त्रित्व मासिक धर्म के बाद माना जाता है। बावजूद इसके हिंदू समाज में मासिक धर्म को अपवित्र माना गया है। इस दौर से हर महीने स्त्रियों को गुजरना पड़ता है। ऐसी स्त्रियों को पूजा अनुष्ठान या किसी पवित्र कार्य करने से वर्जित किया जाता है। पर दूसरी ओर मासिक धर्म के समय भी कामाख्या देवी के मंदिर और स्वयं देवी पवित्र मानी गयी हैं।
2. तांत्रिक सिद्धियों के लिए उपयुक्त समय
कामाख्या देवी के मंदिर को तांत्रिक सिद्धियों के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना गया है। इस मंदिर में तारा, धूमवती, भैरवी, कमला, बगलामुखी जैसी तांत्रिक देवियों की मूर्तियां स्थापित हैं।
3. मंदिर का हुआ पुन: निर्माण
इतिहास में दर्ज है, सोलहवीं शताब्दी में इस मंदिर को नष्ट कर दिया गया था, लेकिन कालांतर में कूच बिहार के राजा नर नारायण देव ने सत्रहवीं शताब्दी में इस पवित्र मंदिर का फिर से निर्माण करवाया।
4. कामाख्या शक्तिपीठ के नाम से हैं मशहूर
कामाख्या देवी का मंदिर गुवाहाटी के नीलांचल पर्वत के बीचो-बीच करीब 8 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। धर्मग्रंथों में वर्णित प्रसिद्ध 108 शक्तिपीठों में से यह मंदिर भी एक है। ग्रंथों में उल्लिखित है देवी पार्वती जब पिता द्वारा अपमानित की गईं तब देवी ने यज्ञ की अग्नि में कूदकर आत्मदाह कर लिया था, जिससे नाराज महादेव देवि के शव को लेकर तांडव करने लगे, उस समय भगवान विष्णु क्रोधित शिव को शांत करने और समस्त ब्रंहांड की सुरक्षा के लिए अपने सुदर्शन चक्र से सती के शव के टुकड़े कर दिए थे। उसी समय सती की योनि और गर्भ आकर यहीं गिरे थे, आज उसी स्थान पर कामाख्या मंदिर स्थित है।
5. कामाख्या देवी से विवाह के लिए सीढियों की शर्त
कामाख्या देवी के मंदिर के नज़दीक सीढ़ियां अधूरी हैं, इसके बारे में कथा है, किसी ज़माने में नरका सुर नामक राक्षस था जो देवी कामाख्या की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे विवाह करना चाहता था। लेकिन देवी कामाख्या ने उस राक्षस के सामने एक अजीब शर्त रख दीं। शर्त थी एक ही रात में नीलांचल पर्वत से मंदिर तक सीढ़ियां बनाने की तभी देवी उस राक्षस से विवाह करेंगी। राक्षस नरका, देवी की शर्त के मुताबिक सीढ़ियां बनाने लगा। तभी देवी को महसूस हुआ कि राक्षस नरका सीढ़ियां पूरी कर लेगा, उन्होंने एक कौवे को मुर्गा बनाकर उसे रात्रि में ही बांग देने को कहा। दूसरी ओर नरका को लगा कि वह शर्त हार गया है, लेकिन जब उसे इसका आभास हुआ तो राक्षस उस मुर्गे को मारने दौड़ा और उसकी बलि दे दी। जिस स्थान पर मुर्गे की बलि दी गई वही स्थान आज कुकुराकता के नाम से जाना जाता है। और तभी से इस मंदिर की सीढ़ियां अधूरी पड़ी हैं।
6. मासिक चक्र का असर
देवी कामाख्या को ‘बहते रक्त की देवी’ भी कहते हैं, इसको लेकर मान्यता यह है कि यही देवी का एकमात्र ऐसा स्वरूप है जहां प्रतिवर्ष मासिक धर्म आता है। यह बात सुनने में थोड़ी अटपटी लग सकती है, लेकिन कामाख्या देवी के मानने वालों की माने तो हर वर्ष जून के महीने में कामाख्या देवी का रजस्वला स्वरूप सामने आता है जिसमें उनके बहते रक्त से पूरी ब्रह्मपुत्र नदी का रंग लाल हो जाता है। यहां अम्बूवाची पर्व के दौरान कामाख्या मंदिर के गर्भगृह के दरवाजे स्वत: ही बंद हो जाते हैं, ऐसे समय में देवी का दर्शन निषेध माना गया है। पौराणिक गाथाओं में भी कहा गया है कि ऐसे तीन दिनों में कामाख्या देवी मासिक धर्म में रहती हैं और उनकी योनि से रक्त स्राव होता है।
7. वाममार्गी साधना
कामाख्या देवी मंदिर में वाममार्गी तंत्र साधना करते हैं। इसके लिए इस पीठ को साधना का सर्वोच्च पीठ माना गया है। मछन्दरनाथ, गोरखनाथ, लोनाचमारी, ईस्माइलजोगी जैसे जितने भी बड़े तांत्रिक साधक हुए उन्होंने यहां पर तंत्र साधना की। ऐसी मान्यता है कि तंत्र साधनाओं में रजस्वला स्त्री और उसके रक्त का अत्यधिक महत्व होता है। यही वजह है कामाख्या देवी के रजस्वला के दौरान तंत्र साधना के लिए अघोरी यहां तंत्र साधना करते हैं।
8.योनि वस्त्र चढ़ाया जाता है
कामाख्या मंदिर में जब पर्व की शुरुआत होती है उस समय गर्भगृह में जिस योनि के आकार में स्थित शिलाखंड है, उसे महामुद्रा कहते हैं, उसी स्थान पर सफेद वस्त्र पहनाए जाते हैं, जो बाद में रजस्वला की वजह से रक्त से लाल हो जाते हैं। और उस पर्व के संपन्न होने के बाद पुजारी उस पवित्र वस्त्र को भक्तों में वितरित कर देते हैं।
Published on:
27 Nov 2020 12:06 pm
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