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राम मंदिर के ऐतिहासिक फैसले में इस प्रधानमंत्री का था बड़ा हाथ, दिखाई थी ये बड़ी हिम्मत

राम मंदिर विवाद पर कभी भी वक्त आ सकता है फैसला यूपी समेत देश के कोने-कोने में सुरक्षा कड़ी

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नई दिल्ली: अयोध्या मुद्दे पर लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला किसी भी वक्त आ सकता है। हर किसी की नजर इस फैसले पर है। जहां बीजेपी इस मुद्दे से पूरी तरह जुड़ी है, तो वहीं साधु-संतों की आस्था भी राम मंदिर से जुड़ी हुई है। फैसला कुछ भी हो, लेकिन साधु-संतों की मांग यही है कि मंदिर अयोध्या में ही बनेगा। लेकिन हम आपको ऐसे प्रधानमंत्री के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसने सबसे पहले एक अहम कदम उठाया था।

दरअसल, पिछले 28 साल से बीजेपी इस मुद्दे के साथ चल रही है, लेकिन देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजवी गांधी दिलचस्प ढंग से विवादित स्थल पर पूजा शुरू करवाई थी और राम मंदिर का शिलान्यास तक करवा दिया था। आम धारणा ये भी है कि विवादित स्थल का ताला भी तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ( Rajiv Gandhi ) के आदेश पर ही खोला गया था। पहली बार राम मंदिर निर्माण की बात साल 1885 में उठी थी। महंत रघुवर दास ने विवादित स्थल पर मंदरि निर्माण करने का प्रयास किया, लेकिन जब इसमें बाधा आई तो उन्होंने कोर्ट का सहारा लेने की सोची। वहीं महंत रघुवर ने फैजाबाद की अदालत में मंदिर निर्माण के लिए अपील दायर की तो सही, लेकिन बरसों तक वो सुप्तावस्था में रही।

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इन सबके बीच साल 1949 में लगभग 50 हिंदुओं ने विवादित स्थल पर भगवान राम की मूर्ति रखकर पूजा शुरू कर दी। इसी घटना के बाद मुस्लिम समुदाय के लोगों ने यहां पर नमाज पढ़ना बंद कर दिया और सरकार ने इस विवादित स्थल पर ताला लगा दिया। वहीं साल 1950 में गोपाल सिंह विशारद ने फैजाबाद अदालत में भगवान राम की पूजा अर्चना के लिए विशेष इजाजत मांगी थी। वहीं साल 1961 में सुन्नी वक्फ बोर्ड भी इस मालिकाना हक की लड़ाई में कूद गया। वहीं 1984 में विश्व हिंदू परिषद् ने इस मुद्दे को लेकर आंदोलन छेड दिया। वहीं जब राजीव गांधी को लगा कि कहीं ये मुद्दा उनके हाथ से न निकल जाए, तो उन्होंने साल 1985 में ताला खुलवा दिया।

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वहीं 1 फरवरी 1986 को फैजाबाद के जिला न्यायाधीश ने विवादित स्थल पर हिंदुओं को पूजा की इजाजत दे दी। इससे नाराज मुसलमानों ने बाबारी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। वहीं चुनाव आते-आते राजीव गांधी ने विवादित स्थल के पास ही राम मंदिर का शिलान्यास भी करवा दिया। लेकिन अचानक ही उनके हाथ से ये मुद्दा निकल बीजेपी के हाथ में चला गया, जो कि आज तक वहीं है।