
नई दिल्ली। कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में तबाही मचा रखी है। सभी ताकतवर देश एक वायरस के आगे घुटने टेक चुके हैं। हालांकि सभी अपनी तरफ से इस वायरस के ख़ात्मे के लिए अपने तरीके के काम रहे हैं।
सभी देशें में कोरोना वायरस की वैक्सीन बनाने पर काम चल रहा है। इनसब के बीच अमेरिकी सरकार ने कोरोना वायरस वैक्सीन की खोज के लिए वैश्विक गठबंधन का हिस्सा नहीं होने का फैसला किया> कोरोना वैक्सीन की खोज के लिए अमेरिका अकेले ही कोशिश कर रहा है।
जानें क्या है मामला?
दरअसल, फ़्रांसिसी दवा कंपनी सेनोफ़ी के कोविड-19 टीके के शोध में अमरीका की संस्था यूएस बायोमेडिकल ऐडवांस्ड रिसर्च ऐंड डेवलपमेंट ऑथोरिटी (बार्डा) ने निवेश किया है। सेनोफ़ी को फ़्रांस सरकार की तरफ से भी शोध कार्यों में काफी छूट मिल जाती है। इसके बाद भी कंपनी के सीईओ पॉल हडसन ने कहा है कि "अमरीका सरकार के पास सबसे ज़्यादा प्री-ऑर्डर करने का अधिकार है क्योंकि उसने इस जोखिम भरे काम में निवेश किया है।"
इतना ही कंपनी ने वैक्सीन बनाने के लिए ब्रिटेन की कंपनी ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन के साथ भी समझौता किया है। कुछ दिनों पहले ही कोरोना वैक्सीन पर तरराष्ट्रीय ऑनलाइन सम्मेलन भी हुआ था जिसकी अगुवाई यूरोपीय संघ ने की थी। इस सम्मेलन में लगभग 40 देशों ने हिस्सा लिया था और लगभग कोरोना दवा के लिए 8 अरब डॉलर का चंदा दिया था। लेकिन इस सम्मेलन में दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमरीका और रूस ने दूरी बना ली थी।
theguardian.com की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप सरकार की 'अमेरिका फर्स्ट' नीति के तहत वैक्सीन पर सबसे पहले अपनी हक जता रही थी लेकिन यूरोपीय संघ का कहना है कि सभी देशों का टीके पर समान अधिकार होगा। लेकिन शायद ये बात ट्रंप सरकार को नागवार गुजर रही है।
क्या चाहते हैं ट्रंप?
ट्रंप सरकार अपने दम पर वैक्सीन बनाने की कोशिश कर रही है। कई अमेरिकी कंपनियां वैक्सीन का उत्पादन करने के लिए भी तैयारियां कर रही हैं। लेकिन theguardian.com की रिपोर्ट में कहा गया है कि ये सब एक दिखावा है। रिपोर्ट में बताया गया ट्रंप अपने दामाद जरेद क्रुशनर और अन्य लोगों के नेतृत्व में वैक्सीन तैयार करने की कोशिश कर रहे हैं। इसे अमेरिकी सरकार ने 'ऑपरेशन वार्प स्पीड' नाम दिया है।
Published on:
14 May 2020 08:16 pm
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