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हंसते हंसते किए कर्मों को रो रो कर भुगतना पड़ता है

हंसते हंसते किए कर्मों को रो रो कर भुगतना पड़ता है

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हुबली

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S F Munshi

Sep 23, 2023

हंसते हंसते किए कर्मों को रो रो कर भुगतना पड़ता है

हंसते हंसते किए कर्मों को रो रो कर भुगतना पड़ता है

सिंधनूर (रायचूर).
चातुर्मासार्थ विराजित श्रमण संघीय उप प्रवर्तक नरेश मुनि ने कहा कि भव भव की भाग दौड़ को मिटाने के लिए हमें नए कर्म बंधन को रोकना यानी आस्रव और पूराने कर्मों की निर्जरा करनी पड़ेगी। जब तक कर्मो की निर्जरा नहीं होगी, तब तक यह आत्मा इस चौरासी का भव भ्रमण करती ही रहेंगी।
घाती कर्म तो सामायिक, प्रतिक्रमण आदि धर्म क्रिया और तपस्या से नाश कर सकते हैं, मगर अघाती कर्म तो हमें भोगने ही पड़ेंगे। हमें हर समय सतर्क रहते हुए यातना पूर्वक अपने दैनिक जीवन के कार्यों को निपटाना चाहिए, क्योंकि हंसते हंसते किए कर्मों को रो रो कर भुगतना पड़ता हैं।
संतश्री ने आगे कहा कि कर्मों का यह खेल निराला है। स्वयं तीर्थंकरों को भी अपने पूर्व भव में किए हुए कर्मों को भोगना पड़ा, फिर हमारी तुम्हारी क्या बिसात है। हमें इस लिए जीवन में सम्यक ज्ञान की प्राप्ति के लिए पुरुषार्थ करना चाहिए क्योंकि जब तक त्याग और वैराग्य की भावना नहीं आएगी सम्यक ज्ञान की प्राप्ति नहीं होगी। तो प्रत्याख्यान, प्रतिक्रमण, आराधना या तपस्या नहीं हो पाएगी। तपस्या से पुण्य की वृद्धि और आत्मा की शुद्धि के साथ आत्मिक गुणों के प्रकट करने की क्षमता का विकास होता है।
आज जीरावला परिवार की ओर से राजू जीरावला ने मासखमन (31 उपवास), महावीर जीरावला और रेखा जीरावला ने 11 उपवास और हर्ष जीरावला ने 8 उपवास की तपस्या गुरु चरणों में भेंट की।
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