
पंन्यास धैर्य सुन्दर विजय महाराज एवं पंन्यास निर्मोह सुन्दर विजय महाराज
समय के साथ बदलाव जरूरी
पंन्यास धैर्य सुन्दर विजय महाराज एवं पंन्यास निर्मोह सुन्दर विजय महाराज ने राजस्थान पत्रिका के साथ विशेष बातचीत में कहा, समय के साथ बदलाव जरूरी है। जो नहीं बदलेगा वह पीछे छूट जाएगा। श्रावक-श्राविकाओं को भी समय के अनुसार खुद को ढालना होगा तो साधु-संतों के लिए भी यह जरूरी है कि वे बदलाव लाएं। भविष्य में वे ही मुख्य धारा में रह पाएंगे जो बदलाव लाने में सक्षम होंगे। समय के साथ अब प्रवचनों की शैली में भी बदलाव की दरकार महसूस की जाने लगी है। हो सकता है कि आने वाले समय में प्रवचन भी यदि अंग्रेजी में दिए जाने लगें तो कोई आश्चर्य नहीं होगा।
नई पीढ़ी को धर्म से जोडऩे की कवायद
वे कहते हैं, हमें जैन धर्म के हित को देखते हुए निर्णय लेने में कोई गुरेज भी नहीं करना चाहिए। भावी पीढ़ी को यदि धर्म, संस्कार व संस्कृति से जोडऩा चाहते हैं तो उन्हें जमाने में आ रहे बदलाव के अनुसार ही प्रेरित करना होगा। प्रवचनों में भी नए टूल्स के जरिए बदलाव की जरूरत है। इसमें तकनीक का प्रयोग करते हुए उन्हें बताने की आवश्यकता है। ऐसे दौर में हमें मौजूदा उपलब्ध साधनों का अधिक से अधिक उपयोग करते हुए उनको जोड़ा जा सकता है। नई पीढ़ी को धर्म से जोडऩे के लिए हमें तार्किक, व्यावहारिक एवं संभावित अप्रोच को देखते हुए निर्णय लेना होगा। यदि हम इन तीनों चीजों को लेकर चलेंगे तभी युवा पीढ़ी धर्म से जुड़ सकेगी। धर्म विज्ञान पर आधारित है।
भगवान महावीर ने धर्म को आगे बढ़ाया
वे बताते हैं, भगवान महावीर स्वामी ने भी जो धर्म को आगे बढ़ाया और शाों की रचना की, वह उस दौर के अनुसार मुख जुबानी हुई थी यानी मौखिक रूप में थी। शिष्य गणधर ने मन में ही शास्त्र बना लिया था। उनके निर्वाण के 980 साल तक शा चला। बीच में 12-12 साल के अकाल भी आए। इस दौरान श्रुत (ज्ञान) विस्मृत होता चला गया। इसके बाद देवद्र्धि ने 500 आचार्य को वल्लभीपुर में इकट्ठा किया। श्रुत के लिए तीन साल तक कार्य चला। तब प्रिंटिंग का जमाना नहीं था। अलग-अलग देशों में श्रुत की प्रतियां भेजी गईं। इसके बाद तो परिवहन एवं प्रिंट के जरिए सभी तक श्रुत आसानी से सुलभ होने लगा। हम जो आज के दौर में चैट जीपीटी की बात करते हैं, दरअसल वह भगवान महावीर स्वामी के समय से चल रहा है। महावीर ने अनेकांतवाद का सिद्धांत दिया था।
आडम्बर बदलाव नहीं विकृति
एक सवाल के जवाब में उन्होंने आडम्बर को लेकर कहा कि आडम्बर बदलाव नहीं यह विकृति है। आडम्बर की जगह गरीब व जरूरतमन्द लोगों की मदद में हाथ बंटाना चाहिए। उन्होंने माना कि मौजूदा दौर में संस्कारों में कमी आई है। इसके लिए सबसे पहले खुद में बदलाव लाना होगा। उनका कहना है कि वर्तमान समय में शिक्षा तो हैं लेकिन संस्कार नहीं है। व्यक्ति स्वार्थी अधिक हो गया है। धर्म तो जीवन जीने की एक कला है। छोटी उम्र में बीमारियों के लिए अंग्रेजी दवाइयां अधिक जिम्मेदार हैं।
दीक्षाओं का महिमामंडन अधिक
वे कहते हैं, दीक्षाएं अधिक हो रही हैं लेकिन साथ ही इसका महिमामंडन अधिक होने लगा है। संसार में जब व्यक्ति अराजकता देखता है तो उसका संसार से ही मोह भंग हो जाता है और व्यक्ति दीक्षित होने की सोचने लगता है। उसे लगता है कि गुरु के संपर्क में आने से उसका जीवन संवर जाएगा। दीक्षा लेने वाले 99 फीसदी लोग पूरी तरह से सोच-विचार के बाद ही दीक्षा ग्रहण करते हैं।
मैं ही मेरे सुख का दुश्मन विषय पर शिविर
हुब्बल्ली के कंचगार गली स्थित मरुधर शांति भवन में 22 मई को सुबह 9.15 बजे से दोपहर 12.15 बजे तक मैं ही मेरे सुख का दुश्मन? तथा दि सिकरेट:रहस्य विषयक एक दिवसीय शिविर आयोजित किया जाएगा। श्री जैन मरुधर संघ (पंच) हुब्बल्ली के तत्वावधान में आयोजित शिविर में पंन्यास धैर्य सुन्दर विजय महाराज एवं पंन्यास निर्मोह सुन्दर विजय महाराज मार्गदर्शन करेंगे।
Published on:
20 May 2024 05:55 pm
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