
इंदौर। भाजपा नेता कैलाश विजयवर्गीय और विधायक रमेश मेंदोला से जुड़े नगर निगम के चर्चित पेंशन घोटाले को कोर्ट ने बंद कर दिया है। करोड़ों रुपए के इस घोटाले को लेकर वर्ष 2005 में कांग्रेस नेता केके मिश्रा ने परिवाद दायर किया था। 17 साल बाद भी इस बड़े घोटाले को लेकर अभियोजन स्वीकृति नहीं मिली। जिला कोर्ट ने गुरुवार को इसी आधार पर फैसला दिया।
विशेष न्यायाधीश मुकेश नाथ की कोर्ट ने निर्णय में कहा कि अगर फरियादी को अभियोजन स्वीकृति प्राप्त होती है तो पुन: कार्रवाई के लिए स्वतंत्र रहेंगे। मालूम हो कि अभियोजन की अनुमति के लिए मिश्रा नेे राज्य सरकार और राज्यपाल को आवेदन दिए, लेकिन अनुमति नहीं मिली।
परिवाद में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धाराओं में तत्कालीन महापौर कैलाश विजयवर्गीय, रमेश मेंदोला, उमा शशि शर्मा, ललित पोरवाल, शंकर लालवानी, तत्कालीन निगमायुक्त संजय शुक्ला, नितेश व्यास, वीके जैन सहित 15 लोगों को पार्टी बनाया गया था। आरोप था कि रिश्तेदार, करीबियों और अपात्रोंं को पेंशन बांटी गई। अभिभाषक विभोर खंडेलवाल के मुताबिक, कोर्ट ने कहा कि अभियोजन स्वीकृति के बिना इस केस में कार्रवाई नहीं की जा सकती है।
मृतकों के नाम पर डाली थी राशि
- पेंशन घोटाला वर्ष 2000 से 2005 के बीच हुआ। इसमें वृद्धावस्था पेंशन मृतकों के नाम पर भी डाली गई।
- तत्कालीन संभागायुक्त अशोक दास ने जांच की। गड़बड़ी साबित हुई। हजारों हितग्राहियों का पता नहीं चला।
- 8 फरवरी 2008 को जांच के लिए जस्टिस एनके जैन की अध्यक्षता में न्यायिक जांच आयोग गठित किया गया।
- आयोग ने 15 सितंबर 2012 को करीब एक हजार पेज की रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट में पाया था कि प्रदेश में करीब सवा लाख अपात्रों को पेंशन दी गई। इसमें कई की मौत हो चुकी थी। बाद में संस्था ने 17 लाख लौटाए भी थे।
- इंदौर नगर निगम के मामले में पाया गया कि नंदानगर सहकारी साख संस्था में रमेश मेंदोला थे। इसी साख संस्था को पेंशन बांटने का काम दिया गया।
- बाद में सरकार ने रिपोर्ट के बिंदुओं के आकलन के लिए तत्कालीन मंत्री जयंत मलैया की अध्यक्षता में कैबिनेट सब कमेटी बनाई, जिसमें तत्कालीन चिकित्सा शिक्षा मंत्री अनूप मिश्रा और संसदीय कार्य मंत्री डॉ. नरोत्तम मिश्रा को शामिल किया गया।
जैन आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में, कांग्रेस भी रही शांत
इस घोटाले को लेकर आरोपों को पुख्ता इसलिए माना गया कि नंदा नगर समिति ने पेंशन की बची रकम करीब 17 लाख वापस की। वर्ष 2012 से 2018 तक जैन आयोग का जांच प्रतिवेदन ठंडे बस्ते में रहा। कमलनाथ सरकार आई तो जांच रिपोर्ट और दास का प्रतिवेदन गायब पाए गए। कमलनाथ सरकार ने तत्कालीन मंत्री तरुण भनोत, कमलेश्वर पटेल और महेंद्र सिंह सिसोदिया की जांच समिति बनाई। समिति ने भी एक-दो ही बैठक की। समिति डेढ़ साल के कांग्रेस शासनकाल में रिपोर्ट नहीं दे सकी।
गड़बड़ी के अहम बिंदु
1. नंदानगर सहकारी साख संस्था को पेंशन वितरण में सर्विस चार्ज के रूप में ज्यादा राशि कटाने की सहमति दी गई।
2. 15 हजार से ज्यादा हितग्राहियों का पता नहीं। नंदानगर संस्था को नियमों के बाहर जाकर पेंशन वितरण सौंपा।
हाई कोर्ट में लगाया है आवेदन
केके मिश्रा के मुताबिक, जांच के दौरान अफसरों ने कहा था कि रिकॉर्ड जल गया है। इस पर मैंने आयोग को दस्तावेज उपलब्ध करा दिए थे। अब मामले में हाईकोर्ट में आवेदन लगाया है।
Published on:
02 Sept 2022 09:09 am
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