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संस्था संविधान में 10 पद, 15 पर करवा लिए चुनाव

रेवडिय़ों की तरह बांट लिए पद अवैध नियमों से करवाए एआईएमपी चुनावसामने कोई लड़ा ही नहीं, सदस्य वोट देने भी नहीं आए फैक्ट फाइल - संस्था में कुल 1765 हैैं सदस्य - केवल 627 ने ही की वोटिंग - इसमें भी 65 मत हुए अवैध - कुल 20 सदस्यों ने लड़ा चुनाव - चार ने ऐन वक्त पर लडऩे से मना किया - एक डमी कैंडीडेट, शेष 15 जीते

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AIMP Election Indore

AMIP Election

Indore News #AIMP Election

एआईएमपी (AIMP (Indore) के चुनाव में इस बार जो धांधलियां हुई हैं, वे पहले कभी नहीं हुई। चुनाव अब तक जिन नियमों पर हो रहे थे, वे संस्था के संविधान में हैं ही नहीं। इसको लेकर तमाम सदस्यों ने खुद को चुनाव प्रक्रिया से अलग कर लिया। रजिस्ट्रार फम्र्स एंड सोसाइटी ने भी नोटिस देकर चुनाव प्रक्रिया संविधान के अनुसार करवाने को कहा। पर संस्था में काबिज प्रोग्रेसिव पैनल ने मनमाने तरीके से अपंजीकृत नियमों से चुनाव करवाए और रेवड़ी की तरह पद बांट लिए।

प्रदेश की सबसे बड़ी औद्योगिक संस्था (Assosisation Of Industries Indore) में इस बार जिस तरीके से चुनाव हुए, उसने लोकतंत्र और नियमों की धज्जियां उड़ा दी। यहां तक कि संस्था का वैधानिक दर्जा देने वाले सरकारी विभाग रजिस्ट्रार फम्र्स एंड सोसाइटी के दिशा-निर्देशों को भी ताक पर रख दिया गया। चुनाव इस तरह लड़े गए मानो संस्था पर काबिज होना ही एकमात्र उद्देश्य हो। यह इन तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि जिन 15 सदस्यों की एकतरफा जीत के दावे किए गए, हकीकत यह है कि केवल वही मैदान में थे और उनके सामने चुनाव लडऩे ही कोई नहीं आया। क्योंकि गलत नियमों से हो रहे चुनाव प्रक्रिया में कोई शामिल नहीं होना चाहता था। संस्था के लिए 20 सदस्यों ने नामांकन दाखिल किया।

दूसरी पैनल के वरिष्ठ सदस्यों और वर्तमान पदाधिकारियों में से कुछ ने तो पहले ही कदम पीछे कर लिए थे। शेष बचे सदस्यों को भी जब पता चला कि चुनाव नियमों के खिलाफ हैं तो उन्होंने भी लडऩे से इनकार कर दिया। हालांकि मतपत्र छप चुके थे, इसलिए उनके नाम तो उसमें थे, लेकिन सदस्यों से अपील कर दी कि उन्हें वोट न दें। अब परिणाम आया तो साफ दिख रहा है कि 15 पदों के लिए बंदरबांट कर ली गई। एक सदस्य डमी था, जिसे कोई पद नहीं मिला।

सदस्यों ने भी कर दिया बॉयकाट
संस्था में 1765 सदस्य हैं। पिछली बार यानी 2017 में हुए चुनाव में चुनाव निर्विरोध करवा लिए गए थे। दोनों पैनलों के बीच समझौता हो गया था। हालांकि 2015 के चुनाव में जब सदस्य संख्या डेढ़ हजार के आसपास थी, तब 900 से अधिक वोट पड़े थे। यानी वोटिंग प्रतिशत 60 के करीब रहा था, जबकि इस बार वोटिंग प्रतिशत 35 के करीब ही रहा। कुल वोटिंग में से 65 वोट अमान्य हो गए, क्योंकि इन्होंने 15 पदाधिकारियों के लिए वोट नहीं किया।
भाजपा-कांग्रेस का गणित

चुनाव में दूसरा गणित भाजपा-कांग्रेस का भी सामने आया। भले ही भाजपा की सरकार प्रदेश में नहीं है, लेकिन इस संस्था पर आज भी भाजपाई ही काबिज हैं। कांग्रेस के दो बड़े पदाधिकारियों ने भी खुद को चुनाव से अलग कर लिया था। इनमें पहला नाम मधुसूदन भल्लिका का है, जो शहर कांग्रेस उपाध्यक्ष हैं और दूसरा नाम राजकुमार हरियाणवी का है, जो शहर कांग्रेस सचिव हैं। रोचक बात यह है कि कांग्रेस की सरकार होने के बाद भी ये कुछ नहीं कर सके और विरोध स्वरूप खुद को चुनाव से अलग कर लिया।रजिस्ट्रार से भी मांगेगे जवाब

चुनाव प्रक्रिया पर सबसे पहले सवाल खड़ा करने वाले संजय पटवर्धन, जो पूर्व कार्यकारिणी में थे, ने कहा कि यदि वोटिंग के लिए इतने कम सदस्य आए तो यह उनकी जीत है। क्योंकि सदस्यों ने साफ संदेश दिया कि नियमों के खिलाफ होने वाले चुनाव में वे शामिल नहीं होंगे। वर्तमान पदाधिकारियों ने नियम नहीं माने, आपत्तियों का निराकरण नहीं किया, रजिस्ट्रार की गाइड लाइन नहीं मानी। इसको लेकर रजिस्ट्रार के सामने फिर आपत्ति की जाएगी।

पूर्व कुलपति के पुत्र को सबसे ज्यादा वोट

चुनाव में चौंकाने वाला तथ्य यह भी रहा कि जिस पैनल के वर्तमान पदाधिकारियों ने पूरी लॉबिंग की थी, उन्हें दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान से संतोष करना पड़ा। सबसे ज्यादा वोट इंदौर विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति नरेंद्र धाकड़ के पुत्र अमित धाकड़ को मिले। इनकी साफ-सुथरी छवि के कारण ज्यादातर सदस्यों की पहली पसंद रहे और अब अध्यक्ष पद के लिए भी ये ही सदस्यों की पसंद हैं।