एमबीए के परीक्षार्थियों ने यूनिवर्सिटी को भेजा पत्र
इंदौर. एमबीए के छात्र-छात्र्.ााओं की एक मांग से यूनिवर्सिटी प्रबंधन हैरान है। इन छात्रों ने अंग्रेजी भाषा कमजोर होने का हवाला देते हुए हिंदी माध्यम से परीक्षा लेने की मांग की। हिंदी के लिए मूल्यांकनकर्ता नहीं होने से यूनिवर्सिटी तय नहीं कर पा रही कि छात्रों को किस आधार पर छूट दी जाए।
एमए, एमकॉम और एमएससी सहित कई विषयों की पढ़ाई हिंदी और अंग्रेजी दोनों माध्यम में होती है, मगर एमबीए और एमसीए जैसे प्रोफेशनल कोर्स के सभी विषय अंग्रेजी माध्यम से ही पढ़ाए जाते रहे हैं।
प्रदेशभर के हिंदीभाषी छात्र-छात्राओं को प्रोफेशनल परीक्षा में अंग्रेजी में जवाब लिखने में आ रही दिक्कतों को देखते हुए शासन ने आरजीवीपी के बीई कोर्स में भाषा की छूट दी है। इस आधार पर देवी अहिल्या यूनिवर्सिटी से संबद्ध छात्र-छात्राओं ने भी एमबीए में भाषा की बाध्यता खत्म करने की मांग की। यूनिवर्सिटी को पत्र लिखकर छात्रों ने कहा है, उन्हें अंग्रेजी में जवाब लिखने में दिक्कत आती है, इसलिए परीक्षा में हिंदी में जवाब लिखने की छूट दी जाए। पेपर में भी सवाल अंग्रेजी के साथ हिंदी माध्यम में भी हो। यूनिवर्सिटी की सबसे बड़ी उलझन है कि अगर हिंदी में जवाब लिखने की अनुमति दे दी जाती है तो कॉपियां किनसे जंचवाई जाएंगी।
ज्ञान होने पर भी नहीं दे पाते जवाब
मैनेजमेंट का पूरा सिलेबस अंग्रेजी माध्यम में ही रहता है। ग्रेजुएशन तक हिंदी माध्यम से पढ़ाई करने वाले छात्र भी बड़ी संख्या में इस कोर्स में एडमिशन लेते हैं। इन छात्रों का कहना है., विषय का ज्ञान होने के बावजूद वे अंग्रेजी में ठीक से जवाब नहीं लिख पाते। इसका खामियाजा रिजल्ट में उठाना पड़ता है, जबकि अंग्रेजी में पकड़ रखने वाले ऐसे छात्र भी अच्छे अंक ले आते हैं, जिन्हें विषय का ज्यादा ज्ञान
नहीं होता।
एमबीए के छात्र-छात्राएं लगातार हिंदी में भी जवाब लिखने की अनुमति चाह रहे हैं। यूनिवर्सिटी की बैठक में यह मांग रखी जाएगी। अभी दिक्कत यह है कि हिंदी की कॉपियां किन प्रोफेसर्स से जंचवाई जाएंगी। फिलहाल छात्रों को समझाया जा रहा है कि अंग्रेजी में भी पकड़ मजबूत करें। इससे पढ़ाई के बाद नौकरी या बिजनेस में भी फायदा मिलेगा।
-प्रो. अशेष तिवारी, परीक्षा नियंत्रक