
इंदौर. मम्प्स (गलसुआ) को लेकर स्वास्थ्य विभाग ने अलर्ट जारी किया है। विभाग के अनुसार मम्प्स बच्चों और वयस्कों की एक वाइरल बीमारी है, जो रूबेला वायरस परिवार के पैरामाइक्सो वायरस के कारण होती है। इसका केवल एक ही सीरोटाइप होता है। यह मुख्य रूप से लार ग्रंथियों को प्रभावित करता है। इन ग्रंथियों को पैरोटिड ग्रंथियां भी कहा जाता है। ये ग्रंथियां लार बनाती हैं। मम्प्स के लिए औसत इन्क्यूबेशन अवधि 16 से 18 दिन है, जिसकी सीमा 12 से 25 दिनों तक हो सकती है।
2 से 3 सप्ताह में नजर आते हैं लक्षण
मम्प्स के लक्षण मरीज के संक्रमित होने के 2 से 3 हफ्तों के बीच दिखाई देते हैं। संक्रमित कुछ मनुष्यों में या तो कोई भी लक्षण महसूस नहीं हो पाता या फिर बहुत ही हल्के लक्षण प्रदर्शित होते हैं। सबसे मुख्य लक्षण लार ग्रंथियों में सूजन ही होता है, जिसके कारण चेहरे के एक तरफ या दोनों तरफ के गाल के पीछे के हिस्से फूलने लगते हैं। चबाते या निगलते समय सूजन के कारण दर्द होता है। इसके साथ ही मुंह सूखना, सिर दर्द, जोड़ों, मांसपेशियों में दर्द, थकान और कमजोरी, भूख में कमी आदि भी इसके लक्षण हैं।
मम्प्स वायरस के कारण होने वाला संक्रमण है। यह व्यक्ति की लार व अन्य रिसाव आदि से स्वस्थ व्यक्तियों में फैलता है। जब मम्प्स रोग होता है, तब वायरस श्वसन तंत्र से लार ग्रंथियों तक पहुंचता है और वहां जाकर प्रजनन करने लगता है, जिससे ग्रंथियों में सूजन आने लगती है। जुकाम और फ्लू की तरह मम्प्स रोग भी फैलने वाला रोग है।
बचाव और रोकथाम
बच्चों को मम्प्स, मीसल्स और रूबेला के लिए टीका लगवाना चाहिए। बच्चा 12 से 13 महीने का हो जाता है तो उनका एक टीकाकरण करवा देना चाहिए। दूसरा टीकाकरण बच्चे के स्कूल शुरू करने से पहले होना चाहिए।
पहला लक्षण विकसित होते ही आइसोलेट हो जाएं। नियमित इलाज लें व हाथों को साबुन से धोएं। मम्प्स वायरस एंटीबायोटिक या किसी अन्य दवाओं पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देता है। इसलिए डॉक्टर की सलाह पर ही उपचार लें। -डॉ. बीएस सैत्या, सीएमएचओ इंदौर
Published on:
08 Apr 2024 07:40 pm
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