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दुष्कर्म के मामलों से हाईकोर्ट नाराज : कहा- सांसदों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितने निर्भया केस चाहिए?

locationइंदौरPublished: Jun 26, 2021 07:32:24 pm

Submitted by:

Faiz Faiz Mubarak

कोर्ट द्वारा ये टिप्पणी 11 साल की लड़की के साथ हुए दुष्कर्म मामले की सुनवाई के दौरान की है। कोर्ट उस समय नाराज हुआ, जब 15 साल की नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी का वकील उसकी जमानत की अर्जी लेकर आया।

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,,दुष्कर्म के मामलों से हाईकोर्ट नाराज : कहा- सांसदों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितने निर्भया केस चाहिए?

इंदौर/ मध्य प्रदेश में लगातार बढ़ रहे दुष्कर्म के मामलों के बीच हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ ने सरकार को तल्ख टिप्पणी की है। हाई कोर्ट सवाल किया है कि, ‘सांसदों की अंतरात्मा को झकझोरने के लिए और कितनी निर्भयाओं के बलिदान देना होगा?’ कोर्ट द्वारा ये टिप्पणी 11 साल की लड़की के साथ हुए दुष्कर्म मामले की सुनवाई के दौरान की है। कोर्ट उस समय नाराज हुआ, जब 15 साल की नाबालिग से दुष्कर्म के आरोपी का वकील उसकी जमानत की अर्जी लेकर आया।

 

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[typography_font:14pt;” >झाबुआ की नाबालिग के दुष्कर्म मामले पर कोर्ट कही बात

प्राप्त जानकारी के मुताबािक, कोर्ट में पेश दुष्कर्म का मामला 16 जनवरी को झाबुआ में सामने आाय था। यहां से केस जुवेनाइल बोर्ड पहुंचा और वहां भी इसे रिजेक्ट कर दिया गया। याचिकाकर्ता की ओर से केस सेशन कोर्ट में पेश किया, वहां से भी इसके निरस्त होने के बाद मामला हाई कोर्ट पहुंचा। इसपर हाईकोर्ट ने भी नाबालिग आरोपी को जमानत देने से इनकार कर दिया।


आरोपी वकील के तर्क से असहमत दिखा कोर्ट

जमानत की मांग कर रहे आरोपी पक्ष के वकील विकास राठी ने कोर्ट से कहा कि, नाबालिगों से बलात्कार अनजाने में हो जाते हैं। उन्हें इस बात का ज्ञान नहीं होता। इसपर न्यायधीश सुबोध अभ्यंकर की खंडपीठ ने आरोपी पक्षकार के वकील द्वारा दिये गए तर्क से असहमति जताते हुए कहा कि, बलात्कार का अपराध अज्ञानता के कारण किया जा सकता है। हाई कोर्ट ने इस केस को लेकर कानून बनाने वालों पर भी तल्ख तिप्पणी की। हाई कोर्ट ने अप्रत्यक्ष रूप से सांसदों से ही पूछ लिया कि, कानूनों में बदलाव के लिए उन्हें और कितने निर्भया जैसे की जरूरत होगी।

दरअसल, इंदौर हाईकोर्ट किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) अधिनियम, 2015 की धारा 102 के तहत 15 वर्षीय लड़के द्वारा दायर आपराधिक पुनरीक्षण पर सुनवाई कर रही है। इसमें सत्र न्यायालय झाबुआ के आदेश को चुनौती दी गई थी। अपीलीय न्यायालय ने उनकी अपील को खारिज कर दिया था और प्रधान मजिस्ट्रेट, किशोर न्याय बोर्ड द्वारा 2015 के अधिनियम की धारा 12 के तहत पारित आदेश की पुष्टि की थी। इसमें भी उसे जमानत देने से इंकार कर दिया गया था. कोर्ट ने इस केस में अनुभव किया कि चूंकि किशोर न्याय अधिनियम 2015 की धारा 15 के तहत जघन्य अपराधों में एक बच्चे की उम्र अभी भी 16 साल से कम रखी गई है। इसलिए यह 16 साल से कम उम्र के अपराधियों को जघन्य अपराध करने की छूट देता है। मौजूदा मामले का जिक्र करते हुए कोर्ट ने कहा कि, ये एक जघन्य अपराध है। याचिकाकर्ता पर एक किशोर के रूप में मुकदमा चलाया जाएगा। क्योंकि, उसकी उम्र 16 साल से कम है।

 

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