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कौन है असली ‘हिंद रक्षकÓ… शुरू हुई वर्चस्व की जंग

महापौर के बेटे और भतीजे हुए आमने-सामने, फागयात्रा को लेकर दोनों ने अलग-अलग दिए थे न्योते

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hind rakshak

इंदौर। राष्ट्र, धर्म और संस्कृति के प्रहरी...इस स्लोगन के साथ शिक्षा मंत्री रहे लक्ष्णसिंह गौड़ ने हिंद रक्षक संगठन का गठन किया था, लेकिन अब वर्चस्व की लड़ाई शुरू हो गई है। महापौर मालिनी गौड़ के बेटे एकलव्य और भतीजे राजसिंह आमने-सामने हैं। फागयात्रा को एक ने संघर्ष यात्रा तो दूसरे ने गौरव गाथा बताकर निमंत्रण बांटे। यात्रा में भी दोनों के बीच खासी दूरी नजर आई।
रंगपंचमी पर निकलने वाली गेरों में फूहड़ता और अश्लीलता होती थी। इन विकृति को दूर करने के लिए १९९८ में लक्ष्मणसिंह गौड़ ने धुलेंडी के दिन फागयात्रा निकालने की घोषणा की, लेकिन माहौल को देखते हुए पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। बाद में रंगपंचमी को यात्रा निकालने की घोषणा की गई, तब से राधाकृष्ण फागयात्रा निकाली जा रही है। तब हिंद रक्षक संगठन का गठन हुआ, जिसमें विधायक लक्ष्मणसिंह गौड़ संयोजक थे व राजसिंह गौड़ अध्यक्ष हैं। गौड़ के जाने के बाद संयोजक की कमान उनके बेटे एकलव्यसिंह ने संभाल ली। अब तक सब ठीक था, लेकिन इस बार फागयात्रा में राजसिंह और एकलव्य के बीच में दूरियां बढ़ गईं।

गरबों में भी है गहरी खाई

दशहरा मैदान पर हिंद रक्षक संगठन के बैनर तले गरबे भी होते हैं, इसकी कमान महापौर के भांजे व पूर्व पार्षद लोकेंद्रसिंह राठौर के हाथ में रहती है। वे पहले से गरबे कराते आ रहे हैं लेकिन गौड़ की एंट्री के बाद आयोजन का स्वरूप और भव्य हो गया। आज भी राठौर के हाथ में गरबों के सारे सूत्र हैं। संगठन के संयोजक होने के नाते एकलव्य सिर्फ औपचारिकता पूरी करते हैं।

बैठक में नहीं बुलाने की चर्चा

चर्चा है कि फागयात्रा को लेकर बैठक बुलाई गई थी, जिसमें राजसिंह को नहीं बुलाया गया। उन्हें अलग करने से भड़के राजसिंह ने भी मोर्चा खोला दिया। अलग से व्यवस्था जुटाना शुरू कर दी। यहां तक कि दोनों ने निमंत्रण भी अलग-अलग तैयार किए। राजसिंह ने फागयात्रा को गौरव गाथा बताया तो एकलव्य ने संघर्ष यात्रा का नाम दिया। दोनों ने अपने-अपने सहयोगियों के माध्यम से निमंत्रण बांटे। राजसिंह ने एक कदम आगे बढ़ते हुए कई जगह खुद निमंत्रण देने भी पहुंचे। यात्रा के दौरान भी न सिर्फ दोनों भाई बल्कि उनके समर्थक भी दूरी बनाकर चलते नजर आए। देखा जाए तो गौड़ परिवार में धीरे-धीरे मनमुटाव बढ़ता जा रहा है।