इंदौर. जिस प्रदेश में नर्मदा और शिप्रा जैसी पावन नदियां बहती है, उसी मध्यप्रदेश में मौजूद है खान नाम की नदी। जी हां, इंदौर शहर में बहने वाली खान नदी इस शहर के इतिहास से उसी तरह जुड़ी हुई है जैसे होलकर घराना या माता अहिल्या का नाम। इस नदी का नाम खान जरूर है लेकिन इसके घाट का नाम है महादेव घाट इतना ही नहीं इस नदी में 150 साल पुराना शिव मंदिर भी मौजूद है।
नदी का नाम मुस्लिम होने के बावजूद ये हिंदु धर्म के लोगों के बीच काफी पावन मानी जाती रही है। श्रावण मास में खान नदी पर लगने वाले श्रावण मेले के दौरान होलकर महाराज 150 वर्ष पुराने महादेव घाट शिव मंदिर से इंद्रेश्वर महादेव मंदिर तक नाव पर विहार करते हुए दर्शन करने जाते थे।
मंदिर के प्रमुख पुजारी संतोष शर्मा ने बताया, यहां उनकी तीसरी पीढ़ी सेवा कर रही है। खजानची शिवचरण एरन ने मंदिर का निर्माण करवाया था। पूर्वज बताते हैं कि मंदिर के आसपास पारसी बस्ती थी और सड़़क मार्ग नहीं था। यह पूरा क्षेत्र नौलखा कहलाता था। यहां नौ लाख वृक्ष थे। चिडिय़ाघर के सामने स्थित बालाजी मंदिर यहां से सीधे दिखता था। होलकर महाराज खान नदी में नाव से दर्शन करने निकलते थे। अधिकतर मंदिर खान नदी के घाट पर ही बने हुए थे। उस समय खान नदी काफी स्वच्छ थी। महाराज महादेव घाट शिव मंदिर से पंढरीनाथ स्थित इंद्रेश्वर महादेव मंदिर तक नाव से जाते थे। मंदिर में स्थापित शिवलिंग धाराजी से मिली मूलकृति है। उनके पूर्वज गिरधारी लाल शर्मा उस समय ताजा चिता की भस्म से आरती करते थे। श्रावण और शिवरात्रि में नदी किनारे विशेष आयोजन होते थे।
मंदिर के समीप स्थित कुंए से दुर्गा माता की प्रतिमा निकली थी, जिसकी स्थापना भी की गई थी। एक बार नदी में बाढ़ आने पर मूर्ति बह गई, तब से अस्थायी मूर्ति बैठाई जाती है। ऐसी मान्यता है, यहां जो भी अर्चना करने आता है, उसके सभी काम सिद्ध होते हैं।
इतने वर्षों में प्रदूषण और देखरेख की कमी की वजह से खान नदी पूर्णत: नाले में तब्दील हो गई है लेकिन नदी के किनारे की छत्रियां और इसमें मौजूद शिव मंदिर की महिमा आज भी उतनी ही है। श्रावणमा में भक्तजन आज भी यहां मनोकामना लेकर पहुंचते है। शहर के पुराने लोगों का ऐसा मानना है कि नदी से शिवजी का गहरा नाता है। लोगों की ये सोच तब और भी मजबूत हो गई जब श्रावण मास के पहले सोमवार को नदी में से नाग नागिन के जोड़े ने दर्शन दिए थे।