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आईडीए का बड़ा कारनामा, खत्म योजना के लिए मांगी जमीन

योजना है ही नहीं और क्रियान्वयन के लिए जमीन चाहिए

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ida demanded land for quashed scheme 53

ida indore

इंदौर।

आईडीए का एक और बड़ा कारनामा सामने आया है। जो योजना आज से 30 साल पहले ही खत्म हो चुकी है, उसे जिंदा बताने पर तुले हुए हैं। अब इस योजना के क्रियान्वयन के लिए शासन से सरकारी जमीन मांग ली। नजूल अधिकारी ने भी बिना कुछ जांचे या पड़ताल किए बगैर योजना के लिए जमीन देने संबंधी जाहिर सूचना निकालकर दावे-आपत्ति बुलवा लिए।
नजूल विभाग के प्रभारी अधिकारी ने हाल ही में एक जाहिर सूचना प्रकाशित करवाई थी। इसमें लिखा है कि मुख्य कार्यपलिक अधिकारी इन्दौर विकास ने ग्राम खजराना की सर्वे नंबर 6/1 की 165 वर्गमीटर (१७७६ वर्गफीट) भूमि प्राधिकरण की योजना क्रमांक 53 के क्रियान्वयन के लिए आवंटित करने का मांग पत्र भेजा है। यह जमीन शहरी सीलिंग के नाम पर दर्ज है। जमीन का यह हिस्सा आईडीए की योजना 53 में शामिल है। इसके कारण आईडीए के जो भूखंड एमआर-10 से लगी सर्विस रोड से जुड़े हुए नहीं है, उन प्लाटों की पूर्णता करने के लिए प्राधिकरण ने जमीन की मांग की है। मौके पर जमीन रिक्त होकर सर्विस रोड के दक्षिण में है। जमीन को आवंटित किए जाने के संबंध में यदि किसी को आपत्ति है तो वह दर्ज करवा सकता है।

नजूल विभाग ने जाहिर सूचना तो निकाल दी, लेकिन इस बात की दरियाफ्त करना भूल गया कि जिस योजना के लिए जमीन मांगी गई है, आज की तारीख में उसका कोई अस्तित्व ही नहीं है। आईडीए ने भी उस योजना के लिए जमीन मांगी, जो हाईकोर्ट निरस्त कर चुका है। खुद उनके बोर्ड ने योजना खत्म करने का फैसला लिया था। यानी आईडीए अफसरों को न तो हाईकोर्ट के आदेशों की कोई परवाह है और न वे अपने ही संचालक मंडल का संकल्प मान रहे हैं।

आईडीए रिकॉर्ड अनुसार भी योजना खत्म
योजना को लेकर 1998 में हाईकोर्ट की सिंगल और डबल बेंच के आदेश हैं, जिनमें योजना को खारिज कर दिया गया। कोर्ट ने इसके स्थान पर नई योजना घोषित करने की लिबर्टी आईडीए को दी थी। आईडीए की 1998 बोर्ड बैठक में भी कोर्ट के आदेशों को मानते हुए योजना का त्याग कर दिया गया और इसके स्थान पर नई योजना लाने का संकल्प लिया गया, जो संकल्प 327 के नाम से जाना जाता है।

इसके बाद बोर्ड संकल्प में लिखा गया है कि योजना 53 टीएनसीपी एक्ट की धारा 50 (2) तक ही पहुंच पाई थी। इसके बाद हाईकोर्ट के आदेशानुसार निरस्त हो गई। नई योजना घोषित नहीं किए जाने के कारण योजना 53 समाप्त होकर भूअर्जन अधिकारी द्वारा पारित अवार्ड का अस्तित्व भी खत्म हो चुका है।

विधानसभा को भी बताया, नहीं है योजना
इसके अलावा आईडीए ने पिछले साल विधायक महेंद्र हार्डिया के एक सवाल के जवाब में विधानसभा में भी जानकारी दी थी कि योजना 53 नहीं है। दरअसल विधायक ने इस योजना मेें शामिल रही एक अन्य भूमि खसरा नंबर 532 के संबंध में सवाल किया था कि क्या यह जमीन योजना 53 में शामिल है और क्या इस पर अतिक्रमण हैं?

इसके जवाब में आईडीए की तरफ से विधानसभा में जानकारी दी गई कि हाईकोर्ट के आदेशों के बाद योजना खत्म हो गई और संकल्प 327 के अनुसार इसके स्थान पर नई योजना घोषित नहीं की गई। इसलिए यह जमीन योजना में नहीं है, बल्कि कलेक्टर, व्यवास्थपक मारुति मंदिर के नाम से दर्ज है।