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सरकारी वकीलों की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी पर चार महीने में भी सरकार निरुत्तर

-हाई कोर्ट ने दो सप्ताह में हर हाल में जवाब देने के दिए आदेशनियुक्तियां शून्य करने की मांग  

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सरकारी वकीलों की नियुक्ति में नियमों की अनदेखी पर चार महीने में भी सरकार निरुत्तर

इंदौर.
करीब सवा महीने पहले हाई कोर्ट में सरकार का पक्ष रखने के लिए नियुक्त सरकारी वकीलों को लेकर हाई कोर्ट में ही याचिका दायर की गई है। नियुक्तियां नियम विरुद्ध होने का आरोप लगाते हुए शून्य करने की मांग की गई है। जस्टिस विवेक रूसिया की एकल पीठ में याचिका पर सुनवाई हुई। कोर्ट में प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव सहित विधि विभाग के प्रमुख सचिव और महाधिवक्ता सहित ८ को जवाब पेश करना था, लेकिन सभी ने समय मांग लिया। सरकार याचिका में नोटिस के चार महीने बाद भी जवाब पेश नहीं कर सकी। कोर्ट ने नाराजगी जाहिर करते हुए दो सप्ताह में हर हाल में जवाब देने के आदेश दिए हैं।

याचिका में पांच सरकार वकीलों को भी पक्षकार बनाया है, जिनकी नियुक्ति सवालों के घेरे में है। याचिका में कहा गया है, कुछ नियुक्तियां तो ऐसी की गई हैं जिन्होंने हाई कोर्ट में एक भी केस नहीं लड़़ा। एडवोकेट प्रवीण पाल के जरिए एडवोकेट पवन जोशी ने याचिका दायर की है। जोशी ने बताया, सरकारी वकीलों की नियुक्ति को लेकर प्रदेश सरकार ने २०१३ में गजट नोटिफिकेशन किया था और नियम बनाए थे। नियमों के मुताबिक उसे ही सरकारी वकील बनाया जा सकता है जिसे हाई कोर्ट में वकालत का कम से कम १० वर्ष का अनुभव हो। पिछले तीन साल में कम से कम हाई कोर्ट में २० केस लड़ चुकने की अनिवार्यता भी थी। जोशी का कहना है, नई नियुक्ति में इन नियमों को ताक में रखा गया। सरकारी वकीलों की सूची में शामिल लोकेश भार्गव, निलेश पटेल, अंबर पारे, अमोल श्रीवास्तव और रवींद्रकुमार पाठक की सनद ही १० साल पुरानी नहीं है तो उनका अनुभव अधिक कैसे हो सकता है।