सपनों और ख्वाहिशों से इतर इनकी दुनिया इन्हें निराशा की गर्त में ले जा रही है या फिर छोटे-मोटे बिजनेस शुरू कर जीने की नई उम्मीद दे रही है। कोई इस दुनिया में रहकर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है, तो कोई इन छोटे-मोटे कामों को कर दुनियाभर के लिए मोटिवेशन बन रहा है। हाल ही में कलेक्टर बनने का सपना बुनने वाले अजीत समोसे की दुकान खोलकर देशभर के लिए चर्चा का विषय बने हुए हैं। तो प्रफुल्ल दुनिया भर के लिए एक मिसाल बन गए हैं।
इंदौर। मध्य प्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के नतीजों का लंबा इंतजार, तो कहीं बार-बार अटैम्प्ट के बावजूद सलेक्शन न होने के कारण युवा ओवरएज हो चुके हैं। स्थिति यह है कि अपने भाग्य को जिम्मेदार मान वे अब जिंदगी के सपनों को छोड़कर आगे बढ़ रहे हैं। सपनों और ख्वाहिशों से इतर इनकी दुनिया इन्हें निराशा की गर्त में ले जा रही है या फिर छोटे-मोटे बिजनेस शुरू कर जीने की नई उम्मीद दे रही है। कोई इस दुनिया में रहकर खुद को ठगा सा महसूस कर रहा है, तो कोई इन छोटे-मोटे कामों को कर दुनियाभर के लिए मोटिवेशन बनकर सामने आ रहा है। आज हम आपको बता रहे हैं मध्यप्रदेश के ऐसे युवाओं रियल स्टोरी, जो युवाओं के लिए मोटिवेशन बनकर सामने आए हैं। इनमें किसी ने चाय के ठेले से कॅरियर की शुरुआत की, तो किसी ने कुछ समोसों के साथ कॅरियर की शुरुआत कर कैसे अपनी निराशा भरी जिंदगी का रुख शोहरत की ओर मोड़ दिया...आप भी पढ़ें इनकी इंस्पायरिंग स्टोरी...
इन युवाओं ने अब अपनी निराशा को सरकार और सिस्टम पर कटाक्ष का जरिया बनाया और छोटे-मोटे धंधे शुरू कर दिए। इन्हीं में से एक हैं अजीत सिंह। इंदौर मध्य प्रदेश का वह शहर है, जहां हर साल देश के कोने-कोने से लाखों विद्यार्थी सरकारी नौकरियों के साथ कॉम्पिटिटिव परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं। इंदौर के भंवरकुआं क्षेत्र में सैकड़ों कोचिंग संस्थान हैं। भंवरकुआं, भोलाराम मार्ग और खंडवा नाका की गलियों में आपको ऐसे विद्यार्थी अपने सपने लिए घूमते नजर आ जाएंगे। पिछले कुछ सालों से एमपीपीएससी के रिजल्ट्स न आने से कई विद्यार्थी परेशान हो चुके हैं। गुना के अजीत की भी यही कहानी है।
5 साल पहले कलेक्टर बनने आए थे इंदौर
अजीत घर से 5 साल पहले पीएससी की तैयारी के लिए इंदौर आए थे। वे चाहते थे कि वह कलेक्टर बने। कोचिंग में अच्छी खासी फीस खर्च कर चुके अजीत के पास घर से और पैसा मंगाने की स्थिति नहीं रह गई, तो उन्होंने समोसे की एक अस्थायी दुकान खोल ली है। अजीत ने अपने सपने और कुछ कर दिखाने के जज्बे के साथ पीएससी कोचिंग ज्वॉइन कर तैयारी की। 2019 में एग्जाम दिया, लेकिन मामला कोर्ट में जाने से रिजल्ट नहीं आया। फिर 2020 में एग्जाम दिया, हालांकि वो प्री नहीं निकाल सका। इसके बाद 2021 में फिर एग्जाम दिया, लेकिन रिजल्ट नहीं आया। अजीत का कहना है कि न तो एमपीपीएससी की भर्ती प्रक्रिया निरंतर हो रही है, न ही एमपी एसआई, पटवारी और व्यापम की अन्य परीक्षाएं आयोजित की जा रही हैं।
दोस्तों से उधार लेकर खोली समोसे की दुकान
पीएससी समोसा वाला दुकान को 1 महीना हुआ है लेकिन देशभर में इसकी चर्चा है। अजीत का कहना है कि इस दुकान से उनका खर्चा निकल आता है। उन्होंने बताया की दोस्तों से उधार लेकर 80 हजार रुपए के बजट से इस दुकान की शुरुआत की। असल में उनके पिताजी गुना में समोसे बनाते थे। उन्होंने एक छोटे होटल से यह धंधा शुरू किया था, जो चल तो नहीं सका लेकिन अजीत ने वहां से समोसे बनाना सीख लिया था। अपने दोस्तों को इंदौर में अक्सर अपने किराए के रूम पर वह समोसे बनाकर खिलाते थे। आर्थिक तंगी से जूझने के दौरान अजीत को कुछ दोस्तों ने समोसे की दुकान खोलने की राय दी।
एक हाथ में समोसा और एक हाथ में न्यूज़
अजीत अपनी दुकान को सुबह 7:30 से 11:30 तक और दोपहर 3 से 9 बजे तक चलाते हैं। बाकी समय वह अपनी पढ़ाई को देते हैं। खास बात यह है कि अजीत की दुकान पर स्टूडेंट्स के लिए डेली करंट अफेयर्स के साथ कई किताबें भी रखी गई हैं। कांसेप्ट यह है कि आप दुकान पर समोसे का लुत्फ लेने के साथ पढ़ भी सकें। एक हाथ समोसा, एक हाथ न्यूज के आइडिया के साथ इस दुकान पर कई स्टूडेंट्स आते हैं और अजीत व उनके साथी उन्हें प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए टिप्स व मदद भी देते हैं।
इस युवा की सक्सेस जानकर हैरान रह जाएंगे आप
कैट परीक्षा में तीन बार असफल रहने के बाद इंदौर के एक युवा ने 22 साल की उम्र में चाय का ठेला लगाने के बारे में सोचा और एमबीए चायवाला के नाम से इसी दिशा में कदम बढ़ा दिए। एक साल बाद ही देशभर के युवाओं में एमबीए चायवाला एक ब्रांड बन गया। आज देशभर में इनकी कई फ्रेंचाइजी हैं और विदेशों में भी उन्होंने अपनी ब्रांड का नाम स्थापित कर दिया है। इस युवा का नाम है प्रफुल्ल बिल्लौरे लेकिन जाने जाते हैं एमबीए चायवाला के नाम से। 25 साल के इस नौजवान के चाय का धंधा इतना चला कि टर्नओवर करोड़ों का हो गया। 20 साल की उम्र में सीए की तैयारी करने घर से निकले प्रफुल्ल बिल्लौरे को भी पता नहीं था कि यही एमबीए शब्द एक दिन उन्हें दुनियाभर में मशहूर बना देगा। इंदौर से अहमदाबाद पहुंचे प्रफुल्ल का सपना आइआइएम में एडमिशन पाना और शानदार पैकेज पर जॉब हासिल करना था, लेकिन जब कैट में सफलता नहीं मिली, तो प्रफुल्ल ने चाय का ठेला लगाने के बारे में सोचा और नाम रखा एमबीए चायवाला।
अहमदाबाद से की शुरुआत
धार के एक छोटे से गांव लबरावदा के किसान परिवार के प्रफुल्ल बिल्लौरे अहमदाबाद से कैट करना चाहते थे, लेकिन जब सक्सेस हाथ नहीं लगी तो दिल्ली, मुंबई जैसे बड़े शहरों की ओर रुख किया लेकिन, दिल लगा तो अहमदाबाद में। प्रफुल्ल को अहमदाबाद शहर इतना पसंद आया कि वो वहीं बसने की सोचने लगे। अब रहने के लिए पैसे चाहिए और पैसे के लिए कुछ न कुछ तो करना ही पड़ेगा, यही सोचकर प्रफुल्ल ने अहमदाबाद में मैकडॉनल्ड में नौकरी कर ली। यहां प्रफुल्ल को 37 रुपए प्रति घंटे के हिसाब से पैसे मिलते थे और वह दिन में करीब 12 घंटे काम करते थे।
आइडिया जिसने बदल दी प्रफुल्ल की दुनिया
नौकरी करते हुए प्रफुल्ल को एहसास हुआ कि वह जिंदगी भर मैकडॉनल्ड की नौकरी तो नहीं कर सकते, इसलिए उन्होंने अपना खुद का बिजनेस शुरू करने की सोची। लेकिन बिजनेस शुरू करने के लिए पैसे, प्रफुल्ल के पास नहीं थे। ऐसे में प्रफुल्ल ने ऐसा बिजनेस करने के बारे में सोचा जिसमें पूंजी भी कम लगे और आसानी से शुरू भी हो जाए। बस इसी सोच से चाय का काम शुरू करने का आइडिया उनके दिमाग में आया। काम की शुरुआत के लिए प्रफुल्ल ने अपने पिता से झूठ बोलकर पढ़ाई के नाम पर 10 हजार रुपए मांगे। इन्हीं पैसों से प्रफुल्ल ने चाय का ठेला लगाना शुरू किया।
शुरुआत में आई मुश्किल
पहले दिन प्रफुल्ल बिल्लौरे की एक भी चाय नहीं बिकी तो उन्होंने सोचा कि अगर कोई मेरे पास चाय पीने नहीं आ रहा तो क्यों ना मैं खुद उसके पास जाकर अपनी चाय ऑफर करूं। प्रफुल्ल वेल एजुकेटेड हैं, अच्छी इंग्लिश बोलते हैं, उनकी यह तरकीब काम आई और सब बोलते कि चाय वाला भी अंग्रेजी बोलता है और चाय की दुकान चल पड़ी। दूसरे दिन 6 चाय बेची, लेकिन एक चाय 30 रुपए के हिसाब से 150 रुपए ही कमाए। प्रफुल्ल सुबह 9 बजे से शाम 6 बजे तक जॉब करते थे और शाम 7 बजे से रात 11 बजे तक अपने चाय का स्टॉल लगाते थे। काम अच्छा चलने लगा 600 कभी 4000 कभी 5000 तक सेल होने लगे और उन्होंने अपनी जॉब छोड़ दी और अपना पूरा फोकस चाय ठेले पर ही कर लिया।
एमबीए मतलब मिस्टर बिल्लौरे अहमदाबाद
चाय का काम अच्छा चलने लगा नेटवर्क अच्छे बन गए तो प्रफुल्ल ने सोचा क्यों ना अब दुकान का कोई एक अच्छा सा नाम रख लें, जिससे और अच्छी मार्केटिंग हो। लगभग 400 नाम सेलेक्ट करने के बाद एक नाम फाइनल किया, जो था मिस्टर बिल्लौरे अहमदाबाद जिसका शॉर्ट नाम एमबीए चाय वाला पड़ा। शुरुआत में लोग उन पर खूब हंसते, मजाक बनाते लेकिन धीरे-धीरे लोगों को प्रफुल्ल का आइडिया पसंद आने लगा।
आज संस्थान मैनेजमेंट गुरु लेक्चर देने बुलाते हैं
एमबीए चाय वाला धीरे-धीरे फेमस हो गया। अब लोकल इवेंट, म्यूजिकल नाइट, बुक एक्सचेंज प्रोग्राम, वुमन एम्पावरमेंट, सोशल कॉज, ब्लड डोनेशन जैसी हर जगह एमबीए चाय वाला दिखाई देता। प्रफुल्ल ने वेलेंटाइन के दिन सिंगल के लिए मुफ्त चाय दी, जो वायरल हो गई और वहां से उनको और भी ज्यादा पॉपुलेरिटी मिली। अब उन्हें और भी बड़े ऑर्डर मिलने लगे। आज एमबीए चाय वाला नेशनल और इंटरनेशनल इवेंट करते हैं। प्रफुल्ल ने 300 स्क्वायर फीट में अपना कैफे खोला और पूरे भारत में फ्रेंचाइजी दी। एक वक्त जिन एमबीए संस्थानों में जाकर पढ़ाई करना प्रफुल्ल बिल्लौरे का सपना था। आज वही संस्थान प्रफुल्ल को अपने यहां बतौर मैनेजमेंट गुरु लेक्चर देने के लिए बुलाते हैं। महज 25 साल की उम्र में उनका नेटवर्थ सालाना 3 से 4 करोड़ का है। आज देश के 22 शहरों में और लंदन में भी एमबीए चायवाला के नाम से उसके आउटलेट हैं। बाकी के देशों में भी फ्रेंचाइजी जल्द ही खुलने जा रही हैं।