
इंदौर. बड़ी-बड़ी बिल्डिंग्स बनाना तो आसान है, लेकिन गांव का मकान बनाना कठिन है। अपनी काबिलियत पता करना है तो गांव और मध्यमवर्गीय परिवारों के मकान बनाने से कॅरियर की शुरुआत करें। यह मकान कम बजट वाले होंगे और यहीं आपको खुद के आर्किटेक्ट को प्रूफ करना होगा। आर्किटेक्चर की पढ़ाई और प्रैक्टिकल में बहुत अंतर है।
यह कहना है कि फेमस आर्किटेक्ट सुरेंद्र बाघा का। वह गुरुवार को आईपीएस एकेडमी में आयोजित तीन दिनी इंटरनेशनल आर्किटेक्ट कॉन्फ्रेंस ‘पेस 2018’ के पहले दिन गुरुवार को बोल रहे थे। उन्होंने कहा कि यह सही है हिंदुस्तान में हिंदुस्तानी आर्किटेक्चर को ही अहमियत नहीं दी जाती है। स्मार्ट प्रोजेक्ट के लिए विदेशों से आर्किटेक्ट को बुलाया जाता है, जबकि हिंदुस्तान में अच्छे आर्किटेक्ट है जो सीमित साधनों में अच्छा काम कर सकते हैं। सरकार से इस बारे में बार-बार अपील करने के अब जाकर हिंदुस्तानी अर्किटेक्चर को स्मार्ट प्रोजेक्ट में अपनाया गया है। स्मार्ट प्रोजेक्ट में पब्लिक की भागीदारी भी होना चाहिए। इसके लिए गाइड लाइन भी बनाई गई है।
इंदौर से अच्छा है चंडीगढ़
इंदौर की तुलना में चंडीगढ़ अच्छा है, क्योंकि वहां 35 प्रतिशत ग्रीन एरिया है और 1800 पार्क है। चंडीगढ़ पॉल्यूशन फ्री सिटी है। वहां अगर तीन फीट भी घर बढ़ाया तो गिरा दिया जाता है। अहम बात यह है कि यहां सरकार ने हिंदुस्तानी आर्किटेक्ट को मौका दिया और उन्होंने उस मिजाज को समझा। हिंदुस्तानी मटेरियल का यूज किया।
ग्रीन बिल्डिंग, आपदा प्रबंधन पर प्रस्तुत किए शोध पत्र
कॉन्फ्रेंस ‘पेस 2018’ में नगर निगम आयुक्त मनीष सिंह मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद थे। इनके अलावा अमोघ गुप्ता, आर्किटेक्ट अचल चौधरी विशेष अतिथि थे। कॉन्फ्रेंस में दिल्ली, मुंबई, हैदराबाद , पुणे, कोलकाता के साथ ही देशभर के कई शहरों से 500 से ज्यादा आर्किटेक्ट्स, स्टूडेंट्स, टीचर्स शामिल हुए। इन्होंने अरबन डवलेपमेंट, ग्रीन बिल्डिंग, मौसम परिवर्तन, आपदा प्रबंधन और स्मार्ट सिटी जैसे विषयों पर अपने शोध पत्र प्रस्तुत किए। शुक्रवार को जाने-माने आर्किटेक्ट विजय गर्ग आएंगे। कॉन्फ्रेंस में प्रो. सागर देसाई, निखिल ने भी शोध पत्र पेश किए।
इन बातों पर गौर करें
Published on:
09 Feb 2018 06:22 pm
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