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गुरु ने कहा था, कथक के शास्त्र की खोज करो, उसी में जुटा हुआ हूं : डॉ. दाधीच

Indore News : पद्मश्री मिलने के बाद कथक गुरु डॉ. पुरु दाधीच से चर्चा, कथक पर लिख चुके हैं करीब 20 पुस्तकें, पत्नी डॉ. विभा दाधीच भी हैं कथक की एक स्थापित कलाकार

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गुरु ने कहा था, कथक के शास्त्र की खोज करो, उसी में जुटा हुआ हूं : डॉ. दाधीच

गुरु ने कहा था, कथक के शास्त्र की खोज करो, उसी में जुटा हुआ हूं : डॉ. दाधीच

इंदौर. कथक गुरु डॉ. पुरु दाधीच को पद्मश्री सम्मान देने की घोषणा से शहर का भी मान बढ़ा है। इस मौके पर पत्रिका ने उनसे चर्चा की। डॉ. दाधीच का कहना है कि वे तो अपना काम पहले भी कर रहे थे और आगे भी करते रहेंगे पर इस सम्मान से उनके काम और मेहनत को राष्ट्रीय स्तर पर चिह्नित किया गया है, इस बात की खुशी है। यह सम्मान उन्होंने अपने पं. दुर्गाप्रसाद और पत्नी डॉ. विभा दाधीच को समर्पित किया है। उल्लेखनीय है कि डॉ. विभा दाधीच भी कथक की स्थापित कलाकार हैं। डॉ. दाधीच के प्रयत्नों से ही मप्र में कथक को इंस्टिट्यूशनलाइज्ड किया गया है। उन्होंने ही अविभाजित मप्र में खैरागढ़ विश्वविद्यालय से लेकर, विक्रम विश्वविद्यालय, देवी अहिल्या विश्वविद्यालय सहित अन्य विश्वविद्यालयो में कथक का पाठ्यक्रम डिजाइन किया। कथक के प्राचीन अंग, अप्रचलित तालों और अप्रचलित बंदिशों आदि पर डॉ. दाधीच का शोध कार्य बहुत महत्वपूर्ण है। उन्होंने इन विषयों पर करीब 20 पुस्तकें लिखी हैं। अब वे कथक का शास्त्र लिख रहे हैं, क्योंकि अभी कथक का शास्त्र लिखा ही नहीं गया है। इस श्रमसाध्य कार्य पर वे कहते हैं कि इस काम के जरिए मैं अपने गुरु पं. दुर्गाप्रसाद से किया गया वादा निभा रहा हूं। उन्होंने बताया, मेरे गुरु कहते थे कि कथक में बहुत महान कलाकार हुए हैं पर वे ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे इसलिए कथक के शास्त्र की खोज करो और मैं उसी काम में जुटा हूं।
कथक का मूल स्वरूप एकल नृत्य
समय के अनुसार हर कला में परिवर्तन आता है और वह जरूरी भी है। इन दिनों कथक में युगल और समूह नृत्य की प्रधानता दिखती है, जबकि कथक का प्राचीन और मूल स्वरूप एकल नृत्य ही है। समूह नृत्य में कोरियाग्राफी की जाती है। यह सुंदर दिखता है, इसलिए इसे सभी कलाकार कर रहे हैं। हालांकि समूह नृत्य में केवल आंगिक अभिनय ही होता है, भाव अंग खत्म हो जाता है। कभी-कभी यह मशीनी भी हो जाता है, क्योंकि इसमें भाव प्रदर्शन नहीं हो पाता जबकि भाव नृत्य का मूल अंग है।