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माने नहीं मेंदोला, संगठन सरेंडर

एमआईसी पर महासंग्राम : महापौर की मंशा पर फिर गया पानी, चार दिन चली माथापच्ची, वही हुआ जो चाहते थे विधायक- संख्या कम होने के बजाय बढ़ गए दागी

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माने नहीं मेंदोला, संगठन सरेंडर

माने नहीं मेंदोला, संगठन सरेंडर

इंदौर. महापौर पुष्यमित्र भार्गव नहीं चाहते थे कि उनकी टीम में कोई भी दागी रहे, लेकिन ऐसा हो न सका। चार दिन की माथापच्ची के बाद आखिर हुआ वही, जो विधायक रमेश मेंदोला चाहते थे। एक चौंकाने वाली बात ये जरूर हुई कि दागियों की संख्या घटने की बजाय बढ़ गई।


साफ-सुथरी छवि को लेकर राजनीति के मैदान में उतरकर महापौर बने पुष्यमित्र भार्गव चाहते थे कि उनकी परिषद भी सफेद कॉलर वाली हो। जब एमआईसी के गठन को लेकर बात चली तो उन्होंने अपनी मंशा स्पष्ट कर दी थी। उसके बावजूद जब सूची तैयार हुई तो कुछ नामों को लेकर आपत्ति आई, जिसमें मुख्य नाम मेंदोला समर्थक पार्षद जीतू यादव का था। इसको लेकर भोपाल तक बात पहुंची। चार दिन से सूची भोपाल में ही अटकी हुई थी। प्रदेश भाजपा के कुछ नेताओं ने मेंदोला की घेराबंदी करने का प्रयास भी किया, जिसकी भनक उन्हें पहले ही लग गई थी। उन्होंने पहले ही रणनीति बनाते हुए कुछ पार्षदों का रिकॉर्ड निकलवा लिया था। खरी-खरी सुनाते हुए बोल दिया कि मेरे ही नाम पर आपत्ति क्यों है? दो-तीन पार्षदों का चिट्ठा भी पेश कर दिया। इनको लेकर कोई आपत्ति क्यों नहीं?


मेंदोला का रुख देखकर संगठन के नेता भी सरेंडर हो गए, क्योंकि दो-तीन बाहर हो जाते। आखिर में चार दिन मंथन के बाद संगठन ने जीतू के नाम पर मुहर लगा दी। एक चौंकाने वाली बात ये जरूर हुई कि विधायक मालिनी गौड़ ने अंतिम समय पर राकेश जैन के साथ में प्रिया डांगी का नाम जुड़वा दिया। डांगी के परिवार की पृष्टभूमि आपराधिक है, जिसका रिकॉर्ड भी टिकट के समय पेश किया गया था। कुल मिलाकर सूची जब घोषित हुई तब दागियों की संख्या कम होने के बजाय बढ़ गई। कुल मिलाकर भार्गव की मंशा पर पानी फिर गया।


सांसद-मंत्री हो गए फेल
एमआईसी में सबसे ज्यादा सांसद शंकर लालवानी ठगा महसूस कर रहे हैं। सांसद होने के बावजूद नगर निगम चुनाव में उनके हाथ में तीन महिलाओं के टिकट ही आए थे। योजनाबद्ध तरीके से उनमें से कंचन गिदवानी को अपील समिति का सदस्य बनाया जा रहा था, लेकिन उन्होंने इनकार कर दिया। गिदवानी के लिए लालवानी ने पूरी ताकत के साथ प्रतिष्ठा दांव पर लगा दी, लेकिन वे बुरी तरह से फेल हो गए। एक एमआईसी भी नहीं करवा सके। ऐसी ही स्थिति मंत्री उषा ठाकुर की हुई, वे चाहती थीं कि पराग कौशल को बनाया जाए तो मंत्री तुलसी सिलावट अपने समर्थक योगेश गेंदर के लिए लगे थे, लेकिन दोनों मंत्रियों को कुछ नहीं मिला।