इंदौर

कभी सरकारी नौकरी से भी अच्छा माना जाता था ये काम, दुनिया लेती थी इंदौर का नाम

MP News: पांच दशक पहले इंदौर की पहचान कॉटन मिल से होती थी। वहां पर काम करने को सरकारी नौकरी से अच्छा माना जाता था। बात यहीं तक सीमित नहीं थी।

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Jul 16, 2025
Seth Hukamchand textile mill indore (फोटो सोर्स : पत्रिका )

MP News: पांच दशक पहले इंदौर की पहचान कॉटन मिल से होती थी। वहां पर काम करने को सरकारी नौकरी से अच्छा माना जाता था। बात यहीं तक सीमित नहीं थी। देश-दुनिया में कॉटन का रेट इंदौर के सेठ हुकमचंद खोलते थे। हुकमचंद मिल इंदौर की उस जमाने की सबसे आधुनिक और सबसे बड़ी टैक्सटाइल मिल थी। इसकी स्थापना 21 करोड़ रुपए की पूंजी के साथ 1915 में सर सेठ हुकमचंद ने की थी।

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विदेशी बाजार में सेठ हुकमचंद का बोलबाला

इंदौर के सेठ हुकमचंद (फोटो सोर्स : सोशल मीडिया)

बता दें कि, सेठ हुकमचंद(Seth Hukamchand textile mill) की कर्मभूमि इंदौक आज से कई दशक पहले कपास व्यापार के लिए देश-विदेश में काफी लोकप्रिय हुआ करता था। लोगों का ऐसा मानना था कि, विश्व बाजार में कपास के रेट इंदौर ही तय करता था। सेठ हुकमचंद के भारी मात्रा में कपास खरीदते ही विदेशी बाजारों में कपास के भाव में भारी उछाल आ जाया करता था। यहां के कपड़े पूरी दुनिया में मशहूर थें।

30 साल पहले बंद हुई हुकमचंद मिल

हुकमचंद मिल (फोटो सोर्स : सोशल मीडिया)

जानकारी के मुताबिक, लगभग 30 साल पहले 100 एकड़ में फैले हुकमचंद मिल बंद हुई थी। 80 के दशक में मिल की हालत बिगड़ी और धीरे-धीरे बंद हो गई। इसके हाजारों श्रमिक को सालों तक पेंशन-भत्ते की राशि के लिए भटकना पड़ा। मिलों के बंद होने से यह वैभव खत्म हो गया, लेकिन सरकार एक बार फिर इंदौर में कपड़ा कारोबार को आगे बढ़ा रही है।

पुरानी पहचान बनाने का प्रयास

अरविंद मिल व नॉइज जैसी बड़ी कंपनियों को 30-30 एकड़ जमीन (फोटो सोर्स : पत्रिका)

कपड़ा कारोबार में इंदौर एक बार फिर अपनी पुरानी पहचान बनाने का प्रयास कर रहा है। कॉटन की मिल तो शुरू नहीं हो सकती है, लेकिन रेडीमेड गारमेंट पर फोकस हो रहा है। इसके चलते इंदौर बायपास पर अहिल्या गारमेंट सिटी तैयार हो रही है। इसमें अरविंद मिल और नॉइज जैसी बड़ी कंपनी की एंट्री हो गई है जिन्हें 30-30 एकड़ जमीन आवंटित कर दी गई।

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Published on:
16 Jul 2025 04:02 pm
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