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हम जो चाहते है इसका निर्णय करेंगे हमारे संस्कार

संतों और भक्तों ने शहर को यातायात व्यवस्था में भी नंबर वन बनाने की ली शपथ

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हम जो चाहते है इसका निर्णय करेंगे हमारे संस्कार

हम जो चाहते है इसका निर्णय करेंगे हमारे संस्कार

इंदौर। जीवन कुछ और नहीं, समय ही है। हम जो जीवन चाहते है इसका निर्णय हमारे संस्कार करेंगे। मां का काम संस्कार देना, पिता का शिक्षा और गुरू का काम ज्ञान देना है। प्रेम की नींव में श्रद्धा होती है। एक लकड़ी चूल्हे की राख बनती है और दूसरी यज्ञ में समिधा। पहली बर्तन मांजने के काम आएगी और दूसरी यज्ञ करने वाले के ललाट पर तिलक के काम आएगी। मनुष्य जीवन का भी हाल कुछ ऐसा ही है। यह हमारा विवेक है कि हम परमात्मा द्वारा प्रदत्त जीवन का उपयोग किस तरह करते हैं। शनिवार को वृंदावन के वैष्णव धाम के युवा संत पुंडरीक गोस्वामी महाराज ने गीता भवन में चल रहे अभा गीता जयंती महोत्सव में उक्त विचार व्यक्त किए। अध्यक्षता अंतर्राष्ट्रीय रामस्नेही संप्रदाय के स्वामी रामदयाल महाराज ने की। उन्होंने कहा कि प्रेम कहीं भी हो, किसी से भी हो, लेकिन शुद्ध होना चाहिए। दुनिया में प्रेम को सबसे पहले नारद ने परिभाषित किया। हालांकि प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसकी गहराई अब तक कोई नहीं ढूंढ पाया है। सुबह के सत्र का शुभारंभ रसिक बिहारी के भजन-संकीर्तन के साथ हुआ। डाकोर से आए स्वामी देवकीनंदनदास एवं आगरा के स्वामी महावीर, भदौही के पीयूष महाराज ने गीता, मानस एवं भागवत सहित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे। प्रारंभ में गीता भवन ट्रस्ट के अध्यक्ष गोपालदास मित्तल, मंत्री राम ऐरन, संयोजक रामविलास राठी, प्रेमचंद गोयल आदि ने सभी संत-विद्वानों का स्वागत किया। गीता भवन में प्रतिदिन सुबह 8 से 12 एवं दोपहर २ से 6 बजे तक संतो ंके प्रवचनों की अमृत वर्षा होगी। दोनों सत्संग सत्रों में उज्जैन के स्वामी असंगानंद, चिन्मय मिशन के स्वामी प्रबुद्धानंद सरस्वती, वेदांत आश्रम के स्वामी आत्मानंद सरस्वती एवं अन्य संतों ने भी अपने प्रेरक विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन संत देवकीनंदन दास डाकोरवाले ने किया। गीता में कत्र्तव्य को प्रमुखतारामकृष्ण मिशन के स्वामी निर्विकारानंद महाराज ने कहा कि गीता जैसा विलक्षण ग्रंथ कोई और नहीं हो सकता। भगवान के वांगमय अवतार के कारण इस ग्रंथ में कर्तव्य को प्रमुखता दी गई है। जीवन का शायद ही कोई पहलू ऐसा होगा, जिसका समाधान इस ग्रंथ में नहीं हो। आस्था और श्रद्धा की बुनियाद पर किए जाने वाला कर्म ही सार्थक होता है। वस्तु से मिलने वाला सुख क्षणिक श्री श्रीविद्याधाम के महामंडलेश्वर चिन्मयानंद सरस्वती ने कहा कि हम जिस सुख-शंाति को वस्तुओं में ढूंढ रहे हैं। वह वस्तु में है ही नहीं। वस्तु से मिलने वाला सुख क्षणिक होता है। भगवान अपनी कृपा की वर्षा निरंतर बनाए रखते हैं। यह सत्संग मिलना भी भगवान की कृपा का ही फ ल है। भगवान से भी हमें उतना ही प्रेम होना चाहिए, जितना हम अपने सगे परिजनों से करते हैं। हम सब समय से चलते तो हैं लेकिन मंजिल तक पहुंच नहीं पाते। यातायात व्यवस्था में नंबर वन बनाने का संकल्प स्वामी रामदयाल महाराज ने आज गीता भवन में भक्तों को शहर को यातायात व्यवस्था के मामले में भी देश में नंबर वन बनाने में भागीदार बनने का संकल्प दिलाया। उन्होंने कहा कि यातायात के नियम हमारी अपनी सुरक्षा के लिए ही बनाए गए हैं। हमारी थोड़ी सी लापरवाही के कारण दूसरों की या खुद अपनी भी जान जा सकती है। उपस्थित संतों और भक्तों ने एकसाथ इस संकल्प का पालन किया।