यहां आपको बता दें कि आज का पावन दिन सिखों के पहले गुरु गुरु नानक की जयंती का प्रतीक है। कहा जाता है कि, 503 साल पहले गुरु नानक देव इंदौर आए थे और जिस स्थान पर उन्होंने आराम किया था, वहां गुरुद्वारा बनाया गया है।
इंदौर। आज से 505 साल पहले सिख धर्म के संस्थापक श्री गुरु नानकदेव जी महाराज 48 वर्ष की उम्र में इंदौर पहुंचे थे। यहां उन्होंने पहली बार धुर की बाणी का शबद गाया था। बताया जाता है कि यह उनकी दूसरी उदासी यानि जनकल्याण यात्रा थी। जिसमें वह इंदौर आए और तीन महीने रुके। यहां आपको बता दें कि आज का पावन दिन सिखों के पहले गुरु गुरु नानक की जयंती का प्रतीक है। कहा जाता है कि, 503 साल पहले गुरु नानक देव इंदौर आए थे और जिस स्थान पर उन्होंने आराम किया था, वहां गुरुद्वारा बनाया गया है।
ग्रंथ गुरु खालसा में मिलता है ये उल्लेख
उनकी इस यात्रा का उल्लेख पुरातन ग्रंथ गुरु खालसा में भी मिलता है। ग्रंथ के मुताबिक दूसरी उदासी के दौरान वे वर्ष 1517 में इंदौर आए थे। इंदौर में कान्ह नदी के किनारे एक इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाकर गुरबाणी शबद का गायन करते थे।
बाद में इसी पेड़ के नीचे बना 'इमली साहिब'
इंदौर में कान्ह नदी के किनारे वे जिस इमली के पेड़ के नीचे आसन लगाकर विराजते और गुरबाणी शबद गाया करते थे बाद में ठीक उसी जगह गुरुद्वारा इमली साहिब बन गया। पहले श्री गुरुग्रंथ साहिब इमली के पेड़ के साथ, फिर टीन शेड और अब पक्के निर्माण में विराजित हैं। गुरु महाराज बेटमा और ओंकारेश्वर भी गए थे। श्री गुरु सिंघ सभा के कार्यवाहक अध्यक्ष दानवीर सिंह छाबड़ा बताते हैं इस उदासी के दौरान श्री गुरुनानक जी करीब 3 माह इंदौर में रुके थे। उनके साथ भाई मर्दाना भी थे। वे रबाब (वाद्ययंत्र) बजाते और गुरुनानक जी 'धुर की बाणी' शबद का गायन करते थे। इमली साहिब गुरुद्वारा 1942 में रजिस्टर्ड किया गया था। पहले सेवा का कार्यभार उदासी मत के पैरोकारी के पास था। बाद में होलकर स्टेट में आई पंजाब की फौज ने यहां की व्यवस्था संभाली।
हर दिन आते हैं हजारों श्रद्धालु
जानकारी के मुताबिक इसी स्थान पर बैठ गुरुदेव ने सच से जुडऩे का संदेश दिया था। आज के दिन 2 बजे रात को श्री गुरुग्रंथ साहिब का प्रकाश (दर्शन) होता है। 9 बजे रात को सुख आसान (पुन: निजी स्थान पर जाना) किया जाता है। यहां 1000 से ज्यादा श्रद्धालु हर दिन दर्शन करने आते हैं। 24 घंटे गुरु का लंगर उपलब्ध रहता है। श्री गुरु नानक देव इमली के जिस पेड़ के नीचे बैठे थे, वह स्थान आज जमीन तल से करीब 15 फीट नीचे है। इसके दर्शन के लिए गुरुद्वारे के पिछले दरवाजे से तल घर में जाना होता है।