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प्रदेश में इन सोयाबीन किस्मों से किसानों को होगा फायदा, जानें कोनसी है …

कृषि वैज्ञानिकों ने दी परंपरागत सोयाबीन किस्म जेएस 9660 को छोड़ने की सलाह

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इंदौर. दो साल से बारिश के पैटर्न में लगातार हो रहे बदलाव का असर सोयाबीन की फसल पर भी है। पहले बारिश अगस्त-सितंबर तक समाप्त हो जाती थी, लेकिन अब यह सिलसिला अक्टूबर मध्य तक रहता है। वैज्ञानिकों ने सोयाबीन की परंपरागत वैरायटी जेएस-9560 के स्थान पर जेएस.2034 या जेएस 2029, 2069 या 2098 का इस्तेमाल करने की सलाह दी है।

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सोयाबीन की परंपरागत किस्म जेएस-9560 की फसल 80 से 85 दिन में पकती है। सितम्बर तक बरसात रहे, तब तक यह वैरायटी उपयोगी है। यदि किसान जून या जुलाई के पहले सप्ताह में बुआई करते हैं तो 20 से 30 सितम्बर के बीच फसल आ जाती है, लेकिन बारिश सितम्बर के आगे बढ़ जाने पर किसानों के लिए फसल काटने और उसे सुरक्षित निकालने का मौका नहीं रहता। पिछले दो साल में काफी उपज खराब हुई है, जो सोयाबीन के बीज की किल्लत का बड़ा कारण है।

किसानों को यह भी सलाह
सोयाबीन किस्मों की विविधता बढ़ाने के लिए जेएस 9560 का क्षेत्रफल कम करें। बीज का अंकुरण 70 प्रतिशत है तो प्रति हेक्टयर 60 से 80 किमी बीज बोएं और सोयाबीन की बोवनी के समय फफूंदनाशक, कीटनाशक एवं जैविक कल्चर से बीजोपचार अवश्य करें। इससे रोगों पर नियंत्रण पाना आसान होगा।

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इन किस्मों को बोवनी से नुकसान कम
इंदौर के सोयाबीन अनुसंधान संस्थान के वैज्ञानिकों ने वैकल्पिक वैरायटीज जेएस.2034 या जेएस 2029, 2069 या 2098 की बोवनीका सुझाव दिया है। ये किसमें पकने में 95 से 100 दिन लेती हैं। अगर बरसात सितम्बर के बाद भी होती रहे, तो भी इन वैरायटीज को कोई फर्क नहीं पड़ेगा।