
सिंधी घरों में कल नहीं जलेंगे चूल्हे
इंदौर. सिंधी समाज का थदड़ी पर्व कल उत्साह से मनाया जाएगा, जिसको लेकर आज से तैयारियां की जाएंगीं। थदड़ी का अर्थ होता है ठंडा व शीतल। घरों में कल नहीं चूल्हे जलेंगे, इसके चलते घरों में रात तक विशेष भोजन पका लिया जाएगा, जिसे पूजा करने के बाद कल ग्रहण किया जाएगा।
रक्षाबंधन के आठवें दिन यानी 18 अगस्त को थदड़ी पर्व को समुदाय हर्षोल्लास से पर्व मनाता आ रहा है। भारतीय ङ्क्षसधु सभा इंदौर के महामंत्री नरेश फुंदवानी व संजय पंजाबी ने बताया कि मोहन जोदड़ो की खुदाई में मां शीतला देवी की प्रतिमा निकली थी। ऐसी मान्यता है कि उन्हीं की आराधना में यह पर्व मनाया जाता है। थदड़ी पर्व को लेकर तरह-तरह की भ्रांतियां भी हैं। कहते हैं कि पहले जब समाज में तरह-तरह के अंधविश्वास फैले थे, तब प्राकृतिक घटनाओं को दैवीय प्रकोप माना जाता था। जब किसी को माता (चेचक) निकलती थी तो उसे दैवीय प्रकोप से जोड़ा जाता था और देवी को प्रसन्न करने के लिए उसकी स्तुति की जाती थी। थदड़ी पर्व मनाकर ठंडा खाना खाया जाता था। ये परंपरा आज भी कायम है।
तमाम तरह के तैयार होंगे पकवान
कल मनाए जाने वाले त्योहार को लेकर आज से घरों में तैयारियां शुरू हो जाएंगीं। कूपड़, गच, कोकी, सूखी तली हुई सब्जियां-करेला, आलू, रायता, दही बड़े, मक्खन बड़े जैसे व्यंजन बनाकर रख लिए जाएंगे। रात को सोने से पूर्व चूल्हे पर जल छिड़क कर हाथ जोड़कर पूजा की जाती है। इस तरह चूल्हा ठंडा किया जाता है। दूसरे दिन चूल्हा नहीं जलता है और ठंडा खाना खाया जाता है। उससे पहले परिवार के सदस्य जल स्त्रोत पर इक_ा होकर मां शीतला देवी का विधिवत् पूजन करते हैं। इस पूजा में घर के छोटे बच्चों को विशेष रूप से शामिल किया जाता है और मां का स्तुति गान कर उनके लिए दुआ मांगी जाती है कि वे शीतल रहें व माता के प्रकोप से बचे रहें।
बच्चों को मिलते उपहार
इस दिन घर के बड़े बुजुर्ग सदस्य घर के सभी छोटे सदस्यों को भेंट स्वरूप कुछ न कुछ देते हैं, जिसे खर्ची कहते हैं। थदड़ी पर्व के दिन बहन और बेटियों को खासतौर पर मायके से बुलाकर त्योहार में शामिल किया जाता है । इसके साथ ही उसके ससुराल में भी भाई या छोटे सदस्य को भेजकर सभी व्यंजन और फल भेंट स्वरूप भेजे जाते हैं।
Published on:
17 Aug 2022 11:23 am
बड़ी खबरें
View Allइंदौर
मध्य प्रदेश न्यूज़
ट्रेंडिंग
