6 दिसंबर 2025,

शनिवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

चुनावी राजनीति से इससे अच्छी विदाई की हकदार थी ताई

चुनावी राजनीति से इससे अच्छी विदाई की हकदार थी ताई

3 min read
Google source verification

इंदौर

image

Hussain Ali

Apr 05, 2019

tai

चुनावी राजनीति से इससे अच्छी विदाई की हकदार थी ताई

इंदौर. सुमित्रा महाजन के चुनाव लडऩे से इनकार के साथ ही इंदौर की सियासत का एक बड़ा अध्याय पूरा हो गया। आठ लोकसभा चुनाव से वे इंदौर का चेहरा रही हैं। 38 वर्ष से भी अधिक लंबी पारी में उन्होंने पार्षद से लेकर लोकसभा की सबसे उम्रदराज और सर्वाधिक समय तक सेवा देने वाली महिला सांसद का गौरव हासिल किया। केंद्रीय मंत्री रहीं और देश की दूसरी महिला लोकसभा अध्यक्ष बनने का सौभाग्य उन्हें मिला। पार्टी द्वारा तय उम्र के मापदंड के चलते उन्हें इस बार चुनावी सियासत से किनारा करना पड़ा है। व्यक्तिगत तौर पर भी उनकी यात्रा अनूठी रही है, वे 1965 में इंदौर की बहू बनकर आईं थीं, लेकिन शहर की बड़ी बहन बनकर रही हैं। ससुराल को मायका बनाने वाली वे राजनीति में अकेली शख्स कहीं जा सकती हैं।

हालांकि इस बार भी ऐसा लग नहीं रहा था कि वे चुनाव से किनारा कर लेंगी। 16वीं लोकसभा का सत्र पूरा होने के बाद से ही वे इंदौर में वे सक्रिय हो चुकी थीं। चुनाव से जुड़ी पार्टी की बैठकों में हिस्सा ले रही थीं। कार्यकर्ताओं से मेल-मुलाकात कर रही थीं। लोकसभा क्षेत्र की अलग-अलग विधानसभाओं में भी उनकी सक्रियता साफ नजर आ रही थी। तब लग नहीं रहा था कि ताई को अचानक मना करना पड़ेगा। हालांकि पार्टी में शुरू से ही असमंजस साफ दिखाई दे रहा था। उम्र की पाबंदियों के कारण संस्थापक सदस्यों के टिकट काटने के बाद तो यह लगभग साफ हो चुका था कि ताई की राह इस बार आसान नहीं है। बावजूद इसके ताई मैदान में डटी हुई थीं। कहा जा रहा था कि संघ अभी बदलाव से सहमत नहीं है। एक-एक सीट को लेकर जिस तरह का संघर्ष चल रहा है, उस हिसाब से बहुत जोखिम लेने की स्थिति लग भी नहीं रही थी। हालांकि जब सूचियां दर सूचियां ताई का नाम नहीं आया तो इंदौर की हवाओं में भी एक चिढ़ महसूस होने लगी। सियासी गलियारों से लेकर शहर के आम गली-मोहल्लों तक सवाल उठने लगे कि जिस इंदौर के टिकट पर इतने सालों में कभी बात करने की नौबत भी नहीं आई, वहां इतना हीला-हवाला क्यों।

जितनी देर हो रही थी, उतनी ही छटपटाहट बढ़ती जा रही थी। शुरुआती दौर में खबरें आई कि इंदौर से हर बार की तरह फिर पैनल में एक ही नाम है, लेकिन बाद में मामला उलझता गया। बात यहां तक पहुंची कि एक बैठक में ताई ने यह तक दिया कि इंदौर से या तो मैं चुनाव लडूंगी या फिर नरेंद्र मोदी लड़ेंगे। हालांकि बाद में सफाई भी दे डाली कि मैंने तो मजाक किया था। इसके पहले एक बैठक में ताई कह ही चूकी थी कि मुझे इंदौर की चाबी पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाशचंद्र सेठी ने सौंपी थी, इसेे मैं ऐसे ही किसी को नहीं दे दूंगी। इसी चाबी को लेकर कई दिनों तक इंदौर का सियासी पारा गर्म रहा। पूर्व विधायक सत्यनारायण सत्तन वैसे भी पहले से मोर्चा खोले बैठे थे। साफ कह चुके थे कि इस बार भी अगर महाजन को टिकट दिया गया तो वे निर्दलीय लड़ेंगे। ताई ने घर जाकर उन्हें मनाने की कोशिश भी की, लेकिन उनके तेवर नहीं बदले।

इन सबके बीच भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय (भाई)का पूरा गुट भी अपने स्तर पर लगा हुआ था, जो वर्षों से राजनीतिक रूप से उनका प्रतिद्वंद्वी बना रहा है। लोकसभा प्रभारी भी विधायक रमेश मेंदोला बनाए गए थे, जो विजयवर्गीय के करीबी हैं। इस बार घेराबंदी तगड़ी थी, जिसके चलते ताई को इंदौर की चाबी छोडऩा ही पड़ी। उन्होंने यह चिट्ठी चिढक़र खुद लिखी है या उनसे लिखवाई गई है, यह समय आने पर पता लगेगा, फिलहाल इसने इंदौर की राजनीति में एक दाग तो लगा ही दिया है। इस चि_ी के बाद सब यही कह रहे हैं कि चुनावी राजनीति से भी ताई इससे कहीं अच्छी विदाई की हकदार थीं।

हालांकि इन सबके बीच ताई को भी यह सोचना होगा कि इतनी लंबी पारी में उन्होंने इंदौर की सियासत में ऐसे कितने लोग तैयार किए हैं, जो उनकी जगह ले सकते हैं। और ऐसी क्या वजह है कि इस मोड़ पर वे अलग-थलग नजर आ रही हैं।

विश्लेषण- अमित मंडलोई