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इंदौर में नहीं चल पाया स्वच्छ भारत एप का जादू, जानिए क्या है वजह…

2 अक्टूबर को महापौर हेल्पलाइन के तहत एक टोल फ्री इंदौर 311 के नाम से एप लांच किया था।  एप लांच हुए सोमवार को 50 दिन पूरे हो गए, लेकिन निगम ने शहरवासियों में इसे ज्यादा प्रचारित ही नहीं किया।

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Common Desk

Nov 26, 2016

swach bharat abhiyan

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नितेश पाल@ इंदौर. स्वच्छता अभियान के तहत जनवरी में शहरों में सफाई की रैकिंग में आने के लिए नगर निगम वर्चुअल दुनिया में शहर को साफ दिखाने की तैयारी कर रहा है। नगर निगम के अफसर दिल्ली से आने वाले अधिकारियों की टीम के सामने अपनी नाकामयाबी को कामयाबी के तौर पर पेश करने की कोशिश में लगा हुआ है।

स्वच्छता अभियान की रैकिंग में मुख्य शर्त है, आम नागरिकों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता लाना और जनभागीदारी बढ़ाना। निगम ने इसे पूरा करने के लिए 2 अक्टूबर को महापौर हेल्पलाइन के तहत एक टोल फ्री और मोबाइल नंबर के साथ ही इंदौर 311 के नाम से एप लांच किया था।

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इसके जरिए गंदगी का फोटो डालने और जगह का विवरण मोबाइल के जरिए निगम को भेजा जाना था। एप लांच हुए सोमवार को 50 दिन पूरे हो गए, लेकिन निगम ने शहरवासियों में इसे ज्यादा प्रचारित ही नहीं किया। नतीजतन केवल शहर के मोबाइल यूजर्स में महज 0.17 फीसद ने ही डाउनलोड किया।

एप लांचिंग के 50 दिन की कहानी

जनता के इस कमजोर रिस्पांस को निगम अफसरों ने अपनी नाकामयाबी छुपाने का साधन बना लिया है। वे इन आंकड़ों को दिल्ली की टीम के सामने रखकर ये सिद्ध करने की तैयारी में हैं कि एप और अन्य साधनों पर शिकायतों की स्थिति के हिसाब से शहरवासियों को सफाई को लेकर कोई परेशानी नहीं है। प्राप्त शिकायतों में से करीब 100 शिकायतें अभी लंबित हैं, शेष निराकृत हो चुकीं हैं।

पीआर एजेंसी के भरोसे अफसर

अ फसर भी यह मान रहे हैं कि महापौर हेल्पलाइन और मोबाइल एप का प्रचार शहर में ठीक तरीके से नहीं हो पाया है। निगमायुक्त मनीष सिंह के मुताबिक इसके उपयोगकर्ता और शिकायतकर्ता काफी कम हैं, इसका रिस्पांस टाइम काफी तेज है। उनका कहना है कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत पीआर एजेंसी नियुक्त करने का हमें अधिकार है, हमने इसके लिए टेंडर कर दिए हैं। जल्द ही कंपनी प्रचार का काम भी शुरू कर देगी।

नाकामयाबी को उजागर करते पहलू

-ट्रेचिंग ग्राउंड में कचरे का ढेर खत्म ही नहीं हो रहा। बायपास से लगी कॉलोनियां परेशान हैं।
-21 माह में भी शहर के 85 वार्डों में डोर टू डोर कचरा कलेक्शन व्यवस्था लागू नहीं हो सकी।
-जमींदारी प्रथा के क्षेत्रों में कचरे के ढेर बिगाड़ रहे शहर का चेहरा।
-हाई कोर्ट में शहर की सफाई व्यवस्था पर लगी याचिका में फटकार के बावजूद निगमायुक्त निगम का एक्शन प्लान तक पेश नहीं कर सके।
-कबीटखेड़ी स्थित कचरा ट्रांसफर स्टेशन में खुले में पड़ा कचरा सड़क और चारों और फैलता रहता है।
-नगर निगम कचरा पेटी खाली करने टाइम भी सेट नहीं कर पा रही है।
-धूल साफ करने के नाम पर खरीदीं मशीनें खुद ही धूल उड़ाती चल रही हैं।
-गलियां और खाली प्लॉट अभी भी गंदगी की चपेट में हैं।
-गंदगी से मच्छरों और कीटों का आतंक बरकरार।
-निगम दो सालों में हाई कोर्ट में कचरा पेटियों की सही स्थिति नहीं पता सका।
-सफाई गाडिय़ों में जीपीएस सिस्टम का फायदा नहीं दिखा।

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