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जिस लड़की की गवाही ने कसाब को फांसी तक पहुंचाया, उसी लड़की और उसके पिता को न मिल रहा घर न नौकरी

नन्ही सी जान पर साहस एेसा कि कसाब को पहुंचा दिया फांसी के फंदे तक, 26 जनवरी को तिरंगा अभियान में हिस्सा लेने शहर आईं देविका नटवरलाल रोटावान

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 devika rotavan

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इंदौर. सडक़ पर बहता खून...लोगों की चीख पुकार और चारों तरफ से बरसती आतंकियों की गोलियां। हम बात कर रहे हैं दिल दहला देने वाले मुंबई हमले की। उस दिन पूरी मुंबई के लोग जान बचाने के लिए भाग रहे थे, लेकिन इन सब के बीच एक बच्ची ने साहस से उस दृश्य को आंखों में उतारा और हर लम्हे को कोर्ट के सामने बयां किया। वह लडक़ी कोई और नहीं बल्कि आतंकी अजमल कसाब को फांसी के फंदे तक पहुंचने वाली देविका नटवरलाल रोटावान है। १८ वर्षीय देविका ने जब यह मंजर देखा तब उसकी उम्र मात्र ९ साल की थी। देविका २६ जनवरी को शहर में आईं। वह अपना समूह द्वारा कराए जाने वाले तिरंगा अभियान में शामिल हुई और रीगल तिराहे पर सबसे बड़ा तिरंगा फहराया। पढि़ए देविका की जुबानी उस दिन की आंखों देखी-

अलग-अलग नंबर से आते थे धमकी भरे फोन, केस से हट जाओ वरना तुम्हे और पिता को खत्म कर देंगे
मैं, बाबा और भाई २६-११ को बड़े भाई से मिलने पुणे जा रहे थे। हम स्टेशन पर १२ और १३ नंबर प्लेटफॉर्म बैठे थे। ट्रेन आने ही वाली थी। इसी बीच भाई टॉयलेट चला गया। मैं और बाबा वहीं इंतजार करने लगे कि अचानक अंधाधुंध गोलियां चलने लगीं। मेरी नजर उस शख्स पर पड़ी जो गोलियां चला रहा था। उसने मुझे देखा और मुझ पर भी फायरिंग करने लगा। बाबा और मैं जान बचाकर भाग ही रहे थे कि एक गोली मेरे पैर पर लग गई। बेहोश होने से पहले चारों तरफ खून ही खून नजर आ रहा था। पापा जैसे तैसे मुझे वहां से ले गए। बाबा भी घायल थे, लेकिन गोलियां लगने से पहले हम दोनों ने अच्छी तरह कसाब को देखा था। जब मेरी आंख खुली तो मैं हॉस्पिटल में थी। वहां डेढ़ महीने में ६ बार पैर का ऑपरेशन चला। मुंबई से हम राजस्थान चले गए। कुछ ही दिनों बाद मुंबई क्राइम ब्रांच के ऑफिसर का फोन आया और मुझे गवाही के लिए बुलाया। हम बहुत घबराए हुए थे। हमें कोई सपोर्ट भी नहीं कर रहा था। मैं गवाही देने पहुंची। कसाब मेरे सामने था। वह मुझे घूर रहा था। इसके वाबजूद भी डरी नहीं। उसे देखकर मेरे मन में एक ख्याल आ रहा था कि उसे वहीं मार दूं। छोटी थी, लेकिन गुस्सा बहुत था। मेरी गवाही के बाद कसाब को फांसी की सजा हुई। सजा के कुछ दिनों बाद भी मामला थमा नहीं। हमें अलग-अलग नंबर से धमकी भरे फोन आते थे। कहा जाता था किबयान मत दो, केस से हट जाओ नहीं तो तुम्हें और तुम्हारे बाप को मार देंगे। कई बार एेसा होता रहा। स्थिति यह हो गई थी कि मोहल्ले के लोग भी हमसे किनारा करने लगे। समाज भी दूर हो गया। इस कारण कई दिनों तक हम बड़ी मुश्किल में रहे। अभी भी परेशानी कम नहीं है, लेकिन मैं साहस के साथ परेशानियों से लड़ रही हूं। अभी दसवीं क्लास में हूं, साथ ही आईपीएस की तैयारी कर रही हूं।

जिंदगी में डर को जगह मत दो
मैं महिलाओं से कहना चाहती हूं कि अपनी जिंदगी में डर को जगह मत दो। यह शब्द अपनी डिक्शनरी से हटा दो। डर कुछ नहीं एक वहम है। हमें अपनी जिंदगी के लिए खुद ही लडऩा है। कोई साथ नहीं देगा फिर भी जीतना है। मुझे तो अब डर शब्द पर हंसी आती है।

रिश्तेदार दूर हुए
देविका व नटवरलाल राजस्थान के एक गांव के रहने वाले हैं, लेकिन गवाही के बाद से वे लोग डर गए और हमसे दूरी बना ली है। यहां तक की परिवार की शादी के निमंत्रण कार्ड में उन दोनों के नाम भी नहीं छपावाए गए। किराए के मकान में रहते हैं पर आस पड़ोस के मतलब नहीं रखते हैं। यहां तक कि पूना में रह रहे देविका के बड़े भाई ने भी उनसे दूरी बना ली है। उसने अपनी शादी में भी इनको नहीं बुलाया।

प्रधानमंत्री को भी लिखा पत्र
नटवरलाल को मुंबई में बार-बार घर बदलना पड़ता है, इसलिए उनकी इच्छा है कि अब मुंबई में उनको सरकार एक स्थायी घर मुहैया करा दे। आवास समस्या के लिए देविका ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी पत्र लिखा है, लेकिन अब तक कोई जवाब नहीं आया। पिता-पुत्री बताते हैं, हम एक बार प्रधानमंत्रीजी से मिलकर अपनी बात रखना चाहते हैं।

बिजनेस करना पड़ा बंद
नटवरलाल कहते हैं, सरकार ने हमें आर्थिक मदद की, लेकिन हमले और गवाही के बाद मुंबई में मेरा ड्राय फ्रूट का बिजनेस भी खत्म हो गया। अब एक दोस्त की दुकान पर काम करता हूं, लेकिन अपना कारोबार शुरू करने की स्थिति में नहीं हूं। व्यापारी मुझसे व्यवहार करने से भी कतराते हैं।