बीती रात 38 वर्षीय जय वाटवानी का निधन हो गया था जिनका अंतिम संस्कार फादर्स-डे के दिन यानि रविवार को किया गया। ऐसे में पिता को मुखाग्नि कौन दें? यहीं चर्चा चल रही थी लेकिन लोगों की सोच में बदलाव आ चुका हैं और बेटी भी किसी बेटे से कम नहीं…वाकई इस बात को वाटवानी परिवार ने साबित भी कर दिखाया है।
जय वाटवानी को उनकी 12 साल की बेटी खुशी ने मुखाग्नि दी। अंतिम संस्कार बेटी नहीं कर सकती है। यह तथ्य मौजूदा सदी में अव्यावहारिक परंपरा मानी जा सकती है। इस परंपरा को दरकिनार करते हुए खुशी ने अपने पिता को नम आंखों से मुखाग्नि दी और रोते-रोते हैप्पी फादर्स-डे पापा कहा। निधन के बाद परिवार की सहमति से पुत्री ने अंगदान की सहमति भी दे दी थी किन्तु तकनीकी कारणों से केवल नेत्रदान ही हो सका।
भारतीय संस्कृति में किसी की मौत होने पर उसको मुखाग्नि मृतक का बेटा/भाई/भतीजा/पति या पिता ही देता है। दूसरे लफ्जों में आमतौर पर पुरुष वर्ग ही इसे निभाता है। पुरुषप्रधान व्यवस्था को ताक मे रख यह निर्णय प्रशंसनीय, नारी को आदर और अधिकार दिलाने वाला है।