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World Environment Day – कबीर की राह पर किसान… पक्षियों के लिए लगाए फलों के पेड़

locationइंदौरPublished: Jun 05, 2022 11:48:28 am

Submitted by:

Manish Yadav

प्रकृति से लिया अब उसे लौटा रहे वापस

World Environment Day - कबीर की राह पर किसान... पक्षियों के लिए लगाए फलों के पेड़

World Environment Day – कबीर की राह पर किसान… पक्षियों के लिए लगाए फलों के पेड़

मनीष यादव@ इंदौर
कबीर दास का दोहा है- वृक्ष कबहुं न फल भखै, नदी न संचय नीर, परमार्थ के कारने साधु न धरा शरीर… जिसका अर्थ है कि साधु का स्वभाव परोपकारी होता है, जैसे वृक्ष कभी अपना फल स्वयं नहीं खाता है और नदी जिस प्रकार से स्वयं के नीर का संचय नहीं करती है…।
कुछ ऐसी ही राह पर एक किसान चल रहा है। क्षेत्र में पक्षियों की संया कम हुई तो अपने खेत में फलों के पेड़ लगा दिए। जिस पर आने वाले फलों पर पहला हक पक्षियों का होता है। इसके बाद जरूरतमंद का है, लेकिन फल चोरी करने वालों के लिए उनके खेत में कोई जगह नहीं है। हम बात कर रहे देपालपुर के किसान देवीसिंह नागर की। इनके खेत में आम, जाम, बादाम, काजू, जामुन, खजूर के करीब 100 पेड़ हैं। उनके मुताबिक फल सबसे पहले पक्षी खाते हैं। इसके बाद अगर कोई जरूरतमंद व्यक्ति हो तो उसे मिलता है इसके बाद परिवार का हिस्सा आता है। उन्हें चोरी से सख्त नफरत है। कोई फल मांगे तो वह इनकार नहीं करते, लेकिन चोरी करते हुए मिल जाए तो उसे माफ नहीं करते।

World Environment Day - कबीर की राह पर किसान... पक्षियों के लिए लगाए फलों के पेड़
इस तरह हुई शुरुआत
उनके पिता ने जब खेत की जमीन खरीदी थी तब वहां पर कई पेड़ थे। धीरे-धीरे पेड़ खत्म होते चले गए और पक्षियों का आना बंद हो गया। इसके बाद लगा पक्षियों को वापस लाना चाहिए। खेत में अलग-अलग प्रजातियों के पेड़ लगाना शुरू किए। आम के पेड़ लग गए, लेकिन सेब, अनार के पेड़ खत्म हो गए। पेड़ों पर फल आना शुरू हुए तो पक्षियों का आना भी शुरू हो गया।
बच्चों की तरह बड़ा किया
जब खेत में आम के पेड़ लगाए तो बिजली नहीं थी। वह पत्नी संग बाल्टी से आम के पौधों को सींचते। कड़ी मेहनत कर पेड़ों को बड़ा किया था। पिछले दिनों आग ने कई पेडों को जला दिया।

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बावड़ी की किया जिंदा
एक पुराने समय की बावड़ी खेत में बनी हुई है। रखरखाव नहीं होने के कारण इमसें मिट्टी भर गई थी। सबसे पहले इसे खोदा। जब दोबारा पानी आ गया तो उसका एक बार फिर नए तरीकों से निर्माण कराया। अब इसमें भरपूर पानी है। इस पर इंदौर के परिवार का शिलालेख लगा था। उसे देख कर परिवार से भी संपर्क किया गया। उन्हें बताया कि पूर्वजों की विरासत आज भी संभाली हुई है।
हर यात्रा पर नया पौधा
वह तीर्थयात्रा पर जाते रहते हैं। जहां भी जो हैं वहां से एक पौधा लेकर आते हैं। बादाम और सेब के साथ अनार भी लाए। पेड़ संभालने के लिए तकनीक भी सीखते हैं। कुछ पेड़ मौसम में नहीं टिक पाए, लेकिन कुछ टिक गए। आम की कई किस्में इस तरह से इकट्ठा हो गई हैं।

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