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जबलपुर. या देवी सर्वभूतेषु....जैसे वैदिक मंत्रोच्चार के बीच नवरात्र प्रतिपदा गुरुवार को आदिशक्ति की उपासना शुरू हुई। अधिकांश व्रतधारी श्रद्धालुओं ने सूर्योदय से पहले ही प्रमुख शक्तिपीठों में जल चढ़ाना शुरू कर दिया। हाथों में जल और पुष्प-पूजन सामग्री के साथ कतार में खड़े भक्त और मंदिर के घंटों की आवाज से धर्ममय माहौल बना रहा। बड़ी खेरमाई, बूढ़ी खेरमाई, काली मंदिर सदर, शारदा मंदिर मदन महल, दुर्गा मंदिर दीक्षितपुरा, कालीमठ मंदिर मदन महल सहित सभी देवी मंदिर में श्रद्धालुओं का तांता लगा रहा।
नवरात्र प्रतिपदा पर भगवती शैलपुत्री की पूजा की गई। मंदिरों एवं पंडालों में जवारे बोए गए। प्रतिमाएं स्थापित की गईं। हालांकि कई स्थानों पर पंडालों के पट पंचमी को खुलेंगे। शाम को शहर की सड़कों पर रौनक दिखी।
भीगते हुए भी भक्ति
नवरात्र प्रतिपदा को बारिश हुई तो सभी समितियों ने पंडाल को वॉटरप्रूफ बनाया। प्रतिमा और साज-सज्जा सुरक्षा में भक्तगण दिन भर भीगते रहे। दुर्गोत्सव समितियों के सदस्य प्रतिमाओं को ढंककर ढोल-नगाड़े की धुन पर झूमते-नृत्य करते हुए आगे बढ़े।
शक्ति ? का शिव स्वरूप हैं त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी देवी
सनातन धार्मिक मान्यता है कि शक्ति के बिना शिव अधूरे हैं और शिव के बिना शक्ति की कल्पना नहीं की जा सकती। तेवर गांव को संस्कारधानी के धार्मिक क्षितिज पर स्थापित करने वाली माता त्रिपुर सुंदरी राज राजेश्वरी की प्रतिमा शक्ति सहित सदाशिव का ही स्वरूप है। भक्तों की इच्छा से अधिक फल देने के लिए माता की दूर-दूर तक ख्याति फैली है। जबलुर सहित गोंडवाना क्षेत्र में कल्चुरी नरेशों का साम्राज्य तेरहवीं शताब्दी तक रहा। कल्चुरी नरेशों के इस क्षेत्र के अमात्य गोलक सिंह कायस्थ ने तेवर व उसके समीप भेडृाघाट का प्रसिद्ध चौंसठ योगिनी मठ सहित कई धार्मिक स्थलों के निर्माण कराए थे। त्रिपुर सुंदरी देवी के मंदिर के निर्माण में उनका अहम योगदान रहा।
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बहती थीं नर्मदा
इतिहासकारों के अनुसार ६७५ ईस्वी में कल्वुरी नरेश बमराज देव ने तेवर या त्रिपुरी को अपनी राजधानी बनाया था। उस समय नर्मदा नदी तेवर ग्राम के एकदम करीब से बहती थी। कालांतर में भौगोलिक कारणों से नर्मदा ने अपने प्रवाह की दिशा बदल ली। आज भी तेवर ग्राम व इसके आसपास जमीन के अंदर से कोई न कोई पुरातात्विक महत्व की वस्तु निकल आती है।
Published on:
22 Sept 2017 03:46 pm
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