अनूठी और बेहद काम की होती है नागमणि
जबलपुर। नागमणि का होना या नहीं होना अक्सर लोगों में चर्चा का रहता है। कई लोग इसे कामिक्स और फिल्मों की चटखारेदार काल्पनिक कहानी का हिस्सा मानते हैं। इस धारणा वाले लोगों का मानना है कि नागों में नागमणि नाम की कोई चीज नहीं होती, लेकिन इस बीच कई घटनाएं व ऐसी जनश्रुतियां भी सामने आती हैं जो कहीं न कहीं नागमणि के अस्तित्व की तरफ संकेत करती हैं। हालांकि इस पर विश्वास व अविश्वास को लेकर सभी के अपने तर्क हैं, लेकिन जबलपुर से करीब 57 किलोमीटर दूर बहोरीबंद रोड पर स्थित कुआं कौडिय़ा गांव के एक मंदिर में नागों की आवाजाही और नागोताल का रहस्यमय कुंड अब भी इसके अतिस्तत्व को लेकर सोचने के लिए विवश करता है। नागोताल के लोगों की मानें तो यहां कभी विशेष प्रकार के मणिधारी नाग पाए जाते थे।
दिखते थे मणिधारी सांप
उमरिया जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर नौरोजाबाद के समीप है नागोताल...। यह क्षेत्र कभी वनों से आच्छादित और निर्जन था। अब आसपास थोड़ा बहुत बसाहट हो गई है। यहां पत्थरों से बने कुंड व तालाब के आसपास कभी नागों का बसेरा था। ग्रामीणों की मानें तो कई सांप मणिधारी भी थे। इनकी मणि को प्राप्त करने के लिए लोग यहां डेरा तक डाल लेते थे। अब बसाहट की वजह से स्थल पर लोगों का दखल बढ़ गया है। फिर कभी कभी विशेष प्रकार के सांप यहां पर दिखाई देते रहते हैं।
कई प्रकार के नाग
नागेश्वर धाम के पुजारी ललित गिरी बताते है कि नागोताल कुंड व तालाब के आसपास कई प्रकार के नाग पाए जाते थे। यहां खुले तौर पर नागों को विचरण करते थे। इस भय से आसपास के गांवों के लोग नागोताल के समीप भी जाने से डरते थे। स्थानीय अमित शुक्ला बताते हैं कि नागमणि पाने के लोभ में दूर-दराज से कई लोग नागोताल पहुंचते थे। कई यहां साधना तक करते थे, लेकिन नाग झुंड बनाकर उनके आसपास बैठ जाते थे। दहशत के मारे इन लोगों को भागना ही पड़ता था। बुजुर्ग बताते हैं कि सांपों ने भी किसी को अनर्गल परेशान नहीं किया।
रहस्यमय है कुंड
नौरोजबाद निवासी कौशल लहरी के अनुसार जनश्रुति है कि अज्ञातवास के दौरान पांडव यहीं से गुजरे थे। प्यास बुझाने के लिए कुछ नहीं मिला तो उन्होंने मिलकर कुंड और तालाब खोद दिया। इस कुंड से अब भी बारहों महीने कंचन जल निकलता रहता है। आसपास के गांवों के लोग कुंड के पानी को अमृत तुल्य मानते हैं। कुंड का पानी भीषण गर्मी में भी नहीं सूखता। इस स्थान के समीप ही मरदरी नामक गांव है, यहां आदिवासी तबके के लोग रहते हैं। गर्मी में गांव के सारे कुएं, पोखर सूख जाते हैं तब यही कुंड उनके कंठ को तर करने का एक मात्र सहारा रहता है।
यहां आज भी हाजिरी देते हैं नाग
जबलपुर से करीब 57 किलोमीटर दूर सिहोरा से आगे बहोरीबंद मार्ग पर बसे कुआं, कौडिय़ा गांव में एक प्रसिद्ध नाग मंदिर है। यह मंदिर सदियों पुराना बताया गया है। धूरी गांव निवासी भगवत प्रसाद सोनी बताते हैं कि कुआं गांव के इस मंदिर में आज भी सांप आते हैं। नागपंचमी के समय तो यहां मेला लगता है। यहां के पुजारी सांप का जहर भी उतारते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि यहां आने वाले नागों में कई मणिधारी और बेहद चमकदार होते हैं। विशेष मौकों पर पुजारी के आवाहन वे शांति से मंदिर में आते हैं और हाजिरी देकर वापस चले जाते हैं।
वृहत्संहिता में है उल्लेख
सामुद्रिक शास्त्रों के जानकार व साहित्याचार्य पं. अरुण शुक्ल का है कि जो वस्तु दुनिया में है, केवल उसी की कल्पना की जा सकती है। वैदिक साहित्य के प्रमुख ग्रंभ वृहत्संहिता में नागमणि का विशेष उल्लेख है, इसलिए इसके अस्तित्व को नकारा नहीं जा सकता। निश्चित तौर पर नागों में यह विशेष प्रकार की मणि पाई जाती है। यह मणि काले रंग की होती है और नागों के सिर में रहती है। कभी-कभी नाग इसे उगलकर बाहर करते हैं, रात में जब कभी ऐसा होता है तो मणि की रोशनी चारों तरफ फैल जाती है। हमें यह महज कपोल कल्पना लगती है, लेकिन कुछ न कुछ रहस्य तो है, जिसके कारण शास्त्रों ने इसके बारे में प्रमुखता से लिखा है।
इन नागों में मिलती है मणि
ज्योतिषाचार्य पं. जनार्दन शुक्ला कहना है कि कई पुस्तकों में नागमणि का उल्लेख मिलता है। इसमें यह भी बताया गया है कि नागमणि मोर के कंठ के समान नीली, काली और बेहद चमकीली है। इसमें कुछ आलौकिक शक्ति रहती है तभी तो राजा लोग अपने दरबार में इसके रखते थे। माना जाता था कि जिसके पास नागमणि होती थी, वह राजा शत्रुजित हो जाता था। वराह मिहिर ने भी अपनी मिहिर संहिता में नागमणि का जिक्र किया है। नागमणि का इस्तेमाल विषजन्य के निवारण हेतु किया जाता था। ग्वारीघाट जबलपुर स्थित नाग मंदिर से जुड़े बाबा अवधेश गिरी का दावा है कि नागमणि प्रकार की होती है। पहली, चमकदार रोशनी वाली, जो 300 साल पुराने नाग से मिलती है, और दूसरी काले पत्थर जैसी...। चमकदार नागमणि बेहद दुर्लभ है, क्योंकि इस उम्र तक नाग देवअंशी हो जाते हैं। उनमें देवताओं जैसा अंश आ जात है। इनकी मणि प्राप्त कर पाना असंभव जैसा काम है। वहीं बिना चमक वाली काले पत्थर जैसी मणियां अब भी कई सपेरों के पास मिल जाती है, जो उन्हें सांपों से प्राप्त होती है।
विज्ञान का ये तर्क
विज्ञान पर विश्वास करने वाले लोग नागमणि को महज एक कपोल कल्पना बताते हैं। इनका मानना है कि फिल्मों में नाग और नागमणि के दृश्यों ने इस अंधविश्वास को हवा दी है। साइंटिस्ट डॉ. केपी सिंह कहते हैं कि सांपों के बदला लेने की कहानियां सिर्फ एक मिथक है। सांपों के पास दिमाग नहीं होता। उनकी याददाश्त भी इतनी नहीं होती कि वे किसी इंसान की तस्वीर याद रख पाएं। बदला लेने की नीयत से सांपों का किसी इंसान को बार-बार काटना, सिर्फ अंधविश्वास है। नागों में मणि मौजूद होना भी एक तरह का मिथक है।