एक विशाल प्रवेश द्वार के ऊपर चक्की के पाटों में पिसाई करती वृद्धा की अनुकृति सभी को आकर्षण में बांध लेती है। दरअसल, यहीं हैं पिसनहारी माता, इन्हीं के नाम से पूरा क्षेत्र पहचाना जा रहा है। जानकार मानते हैं कि पिसनहारी माता चक्की में आटा पीसकर उदर-पोषण करती थीं। जो राशि बचती थी, उससे राहगीरों को भोजना करा देती थीं। परमार्थ ही उनके जीवन का लक्ष्य था।