जबलपुर। कोरोना संदिग्धों के नमूने की जांच के लिए जबलपुर शहर में सरकार ने अब तक जितनी राशि का भुगतान एक निजी एजेंसी को किया है, उससे आधी लागत में नई कोरोना टेस्ट लैब तैयार हो जाती है। शहर में स्थापित सरकारी लैब पर भार बढऩे पर कोरोना संदिग्धों के सैम्पल गुजरात की सुप्राटेक लैब भेजे जा रहे हैं। इसमें 10 जुलाई के बाद से अब तक 12 हजार से ज्यादा नमूने भेजे गए हैं। इसके एवज में दो करोड़ रुपए से ज्यादा का भुगतान किया गया है। हैरानी की बात यह है कि कोरोना की जांच के लिए मोटी रकम चुकाने के बाद भी जिले में सरकारी संसाधन नहीं बढ़ाए जा रहे। भुगतान की गई राशि से आधी से भी कम लागत में एक पखवाड़े में मेडिकल की वायरोलॉजी लैब तैयार की जा चुकी है। इसकी जांच क्षमता प्राइवेट लैब की जांच क्षमता के बराबर है। शहर में कोरोना की दस्तक हुई, तो संक्रमण से शुरुआती लड़ाई में सरकारी अस्पताल ही मजबूती से खड़े रहे। निजी अस्पतालों और लैब ने कोरोना युद्ध से किनारा कर लिया था। लेकिन, कोरोना को बीमा कवर मिलने, संक्रमितों के इलाज के लिए सरकार की ओर से निजी क्षेत्र को अधिकृत करने का प्रभाव अब स्वास्थ्य विभाग और सरकारी अस्पतालों की व्यवस्थाओं पर नजर आ रहा है। जैसे-जैसे निजी क्षेत्र सुविधाएं जुटा रहा है, सरकारी संस्थाओं में आधुनिक जांच सहित उपचार मुहैया कराने की मुहिम धीमी पड़ती जा रही है।
दो ट्रूनेट मशीनें, किट की कमी से बाहर से करा रहे जांच
टीबी जांचने की ट्रूनेट मशीन से डेढ़ से दो घंटे में कोरोना संदिग्ध के नमूने की जांच हो जाती है। एक मशीन से एक दिन में 30 सैम्पल की जांच की जाती है। विक्टोरिया अस्पताल में दो ट्रूनेट मशीन हैं। किट की कमी के कारण बेहद गम्भीर संक्रमित की जांच इस मशीन से की जा रही है। हैरानी की बात यह है कि स्वास्थ्य विभाग के पास ट्रूनेट मशीन के लिए कोरोना टेस्ंिटग किट की कमी कई दिनों से है। संसाधन की कमी के कारण शहर की निजी लैब को भी नमूने भेजकर जांच कराई जा रही है। निजी लैब ट्रूनेट मशीन से ही जांच कर रही है। उसके पास किट की किल्लत नहीं है।
सेंट्रल लैब फिर भी निजी में करा रहे जांच
मेडिकल कॉलेज में गम्भीर कोरोना संक्रमितों के रक्त सहित अन्य रूटीन जांच होती है। कॉलेज में सेंट्रल लैब सहित विभागों की प्रयोगशाला में आधुनिक मशीनें हैं। इसके बावजूद कोरोना मरीजों की रूटीन जांच के सैम्पल भी निजी लैब भेजे जा रहे है। सूत्रों की मानें तो करीब 8-10 ऐसी रूटीन जांच हैं, जिनके लिए मेकिडल अस्पताल प्रशासन ने एक छोटी पैथोलॉजी से अनुबंध किया है। जबकि योजना तैयार कर निजी एजेंसी को दी जाने वाली राशि बचाकर कॉलेज की लैब में अन्य जांच सुविधाएं जुटाई जा सकती हैं।