
महाकोशल क्षेत्र के पिछड़ेपन का कड़वा सच
जबलपुर। मध्य प्रदेश के गठन को 62 साल बीत गए। इस लम्बी यात्रा में महाकोशल अंचल हासिए पर जाता नजर आया। एक दौर था जब महाकोशल ही नहीं बल्कि विंध्य और बुंदेलखंड की भी धुरी रहे जबलपुर में देश के धुरंधर नेताओं का डेरा रहता था। आजादी के आंदोलन पर गौर करें तो उस जमाने का कोई भी ऐसा दिग्गज नेता नहीं है, जो जबलपुर नहीं आया हो। जानकार मानते हैं कि जबलपुर प्रदेश ही नहीं बल्कि पूरे देश की राजधानी का केन्द्र रहा। यहां की राजनीतिक हस्तियों, साहित्यकारों और रचनाधर्मियों ने एक अलग आभा मंडल बनाया था। नए मध्य प्रदेश के गठन के बाद इस क्षेत्र की उपेक्षा का क्रम जो शुरू हुआ, तो वह अब तक जारी है। हर स्थापना दिवस पर नए प्रदेश की खुशी के बीच यह दर्द भी दिलों में ताजा हो जाता है।
राजनीतिक जड़ता का परिणाम
वरिष्ठ अधिवक्ता एवं मप्र हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष आदर्शमुनि त्रिवेदी का मानना है कि 1 नवंबर 1956 में मध्यप्रदेश के गठन ने मध्य भारत को विकास के लिए नये अवसर प्रदान किए। मालवा, विंध्य सहित राज्य के अन्य हिस्सों ने इन 62 वर्षो में अपेक्षित विकास भी किया। लेकिन राजनेताओं की जड्ता के चलते अभी भी महाकोशल क्षेत्र प्रदेश के इन इलाकों क ी तुलना में काफी पिछड़ गया। राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस क्षेत्र की उपेक्षा भी खूब हुई। शिक्षित युवा वर्ग ने भी सुविधाओं के अभाव में अपने इलाके की सेवा करने की बजाय यहां से पलायन शुरू कर दिया। परिणामस्वरूप महत्वपूर्ण प्रशासनिक व अन्य संस्थान महाकोशल, खासकर जबलपुर से छिन गए। क्षेत्र के ग्रामीण अंचल अभी भी प्रदेश के अन्य इलाकां में बह रही विकास की बयार से दूर ही हैं।
नहीं दी तवज्जो
एड. त्रिवेदी के अनुसार महाकोशल क्षेत्र को राजनेताओं ने कभी तवज्जो नहीं दी। इसे हमेशा राजनीतिक रूप से हाशिए पर रखा गया। यही वजह है कि यहां से प्रदेश की राजधानी छिन गई। उद्योगों की स्थापना के लिए भी प्रदेश के अन्य क्षेत्रों के राजनेताओं ने लगातार प्रयास किए। लेकिन यहां के नेताओं ने महज स्वार्थसिद्धि व आपसी खींचातानी में समय बरबाद किया। जनहित की कभी चिंता नहीं की। छोटे-छोटे राज्य बना दिए जाते तो शायद यह स्थिति नहीं आती।
नहीं हुआ संसाधनों का उपयोग
महाकोशल चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष रवि गुप्ता का कहना है कि मध्यप्रदेश की स्थापना से वर्तमान तक महाकोशल क्षेत्र की उपेक्षा होती रही है। राजनीति से जुड़े क्षेत्र के जनप्रतिनिधि अधोसंरचना के अलावा उपलब्ध संसाधनों का उपयोग आर्थिक विकास के लिए नहीं करवा पाए। जबकि इंदौर और भोपाल की स्थिति यहां से विपरीत रही। किसी भी राजनेता ने सही दिशा में काम नहीं किया।
Published on:
01 Nov 2018 06:19 pm
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