वीएफजे : रॉ मटेरियल की सप्लाई शुरू, ऑटोमेशन लाइन में बढेग़ा काम
वीएफजे में सेना के स्टालियन और एलपीटीए वाहन का ही प्रमुख काम है। इन वाहनों का इस्तेमाल सेना कई कामों में करती है। चाहे पथरीला रास्ता हो, ऊंची चढ़ाई या फिर लद्दाख जैसी शून्य से नीचे तापमान वाली जगह, वीएफजे में बने वाहन ही इस्तेमाल होते हैं। इन वाहनों का सैनिकों को लाने और ले जाने के अलावा हथियारों की सप्लाई में उपयोग किया जाता है। लेकिन बीते कुछ महीनों से मटेरियल कमी होने से फैक्ट्री में कामकाज लगाग ठप था।
एमपीवी में कंपोजिट आर्मर्ड का रोड़ा
दो प्रमुख वाहनों के अलावा एक प्रमुख वाहन एमपीवी भी है। इसका उत्पादन राज्यों की पुलिस और अद्र्धसैनिक बलों के अलावा सेना के लिए किया जाता है। पुलिस को यह वाहन सप्लाई हो रहे हैं लेकिन सेना को अभी यह नहीं मिल पा रहे हैं। बताया जाता है कि इस वाहन का आधे से ज्यादा काम हो चुका है। लेकिन कंपोजिट आर्मड नाम का कलपुर्जा नहीं मिलने के कारण काम रुका हुआ है। इसके लिए वेंडर मिलना मुश्किल हो रहा है।
हजार करोड़ रुपए का काम
वीएफजे में इस समय करीब एक हजार करोड़ रुपए का उत्पादन लक्ष्य रक्षा मंत्रालय से मिला हुआ है। सूत्रों के अनुसार इस सत्र में करीब 15 सौ स्टालियन वाहन, 650 से अधिक एलपीटीए का उत्पादन होना है। इसी प्रकार 340 से ज्यादा सुरंगरोधी वाहन (एमपीवी) बनाए जाने हैं। दूसरी तरफ सेना के अलग-अलग प्रकार के वाहनों को बुलेट प्रूफ करने का काम यहां पर किया जाता है। हाल में एक नया काम शारंग तोप तैयार करने का लिया है। यह काम भी बेहद सफल रहा है।
यह है टारगेट
वाहन संख्या अनुमानित मूल्य
स्टालियन 1500 32 लाख
एलपीटीए 600 24 लाख
एमपीवी 340 1.40 करोड़
(नोट : एक वाहन की कीमत
रुपए में)
कहां से कौन सा मटेरियल
इन वाहनों का उत्पादन रक्षा क्षेत्र की निजी कंपनियों के सहयोग से किया जाता है। वीएफजे और इन कंपनियों के बीच तकनीकी स्थानांतरण (टीओटी) को लेकर अनुबंध है। स्टालियन के लिए अशोक लीलैंड और एलपीटीए के लिए टाटा प्रमुख कलपुर्जे उपलब्ध करवाता है। इनमें केबिन, इंजन, गियर, एजीएस आदि शामिल हैं। दूसरी तरफ हजारों की संख्या में प्राइवेट वेंडर हैं जो कि छोटे एवं बड़े कलपुर्जे यहां भेजते हैं। बड़े कलपुर्जों का आना तो तेज हो गया है।