दिल्ली-हरियाणा की तरह जबलपुर में भी जलाई जा रही पराली, बढ़ा प्रदूषण का खतरा!!!
प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एडवाइजरी को भी किया जा रहा है नजर अंदाज, फिर छाने लगी धुंध

जबलपुर . कोरोना काल में प्रदूषण से बड़ा खतरा बताया जा रहा है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड एडवाइजरी जारी कर रहा है की किसान खेतों में पराली न जलाएं। इसके बावजूद नगर से लगे हुए खेतों से लेकर, हाइवे किनारे के खेत और ग्रामीण इलाकों में बेखौफ पराली जलाई जा रही है। जानकारों के अनुसार पराली जलाए जाने से वायुमंडल में हानिकारक गैसों के बढऩे का खतरा है। जिला प्रशासन का आदेश है कि पराली जलाई जाती है तो संबंधित व्यक्ति के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी। इसे लेकर ग्रामीण स्तर पर मुनादी भी कराई गई है।
पराली जलाए जाने से बड़ा खतरा
पराली जलाए जाने के कारण ठंड के दिनों की शुरुआत में वायु प्रदूषण का स्तर बढ़ जाता है। प्रदूषक तत्व वायुमंडल के निचले स्तर में पानी की बूंदों के साथ मिलकर घने कोहरे की एक मोटी परत बनाती है। जिससे आसपास के रिहायशी इलाकों के लोगों के स्वास्थ्य को खतरा हो सकता है। वृहद स्तर पर पराली जलाए जाने से वायु गुणवत्ता को बड़ा नुकसान हो सकता है। दरअसल मशीन से धान की फसल कटाई के बाद पराली बच जाती है। जिसे नष्ट करने के लिए किसान सबसे आसान विकल्प के रूप में पराली में आग लगा देते हैं। जबकि ऐसा करने से वायु गुणवत्ता खराब होने पर अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज(सीओपीडी) जैसी गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।
महज 20 रुपए में समाधान
भारतीय कृषि अनुसंधान केन्द्र की ओर से पराली को बिना जलाए कम्पोस्ट बनाने की तकनीक अपनाकर समस्या का निराकरण किया जा सकता है। यह तकनीक पूसा डी-कं पोजर कही जाती है। इस तकनीक से फसल वाले खेतों में छिडक़ाव किया जाता है। इसकी लागत 20 रुपये प्रति एकड़ के लगभग आती है। इस तकनीक से प्रति एकड़ 4-5 टन भूसा का निस्तारण किया जा सकता है। दिल्ली और आसपास के राज्यों में भी पराली की समस्या के निराकरण के लिए किसान बायो डी कं पोजर तकनीक अपना रहे हैं।
पराली जलाने से ढेरों नुकसान
-प्रदूषण बढ़ता है
-जमीन में कई मित्र कीट मर जाते हैं
-वायुमंडल में सल्फर डाईआक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड व अन्य कण मिलकर बीमारी फै लाते हैं
-कार्बन मोनो आक्साइड की मात्रा बढऩे से सडक़ में धुआं फै लता है इससे दुर्घटना का खतरा बढ़ जाता है ------
वर्जन-
कुछ किसान बायो डी कम्पोजर का उपयोग कर रहे हैं, लेकिन उपलब्धता की समस्या आ रही है। पहले क्षेत्रीय जैविक केन्द्र उपलब्ध कराता था, अब नहीं मिल पा रहा है। हालांकि सभी किसानों को कृषि विभाग की ओर लगातार सलाह दी जा रही है की पराली न जलाएं। इसे लेकर मुनादी भी कराई गई है।
रजनीश दुबे, कृषि विस्तार अधिकारी
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