
AAMLA IN JBP
फैक्ट फाइल-
-20 आयुर्वेदिक दवा कंपनी का नगर में उत्पादन
-25 के लगभग बड़ी दवा कंपनियों की उत्पादन इकाई अंचल में
-500 एकड़ में आंवला का उत्पादन
प्रभाकर मिश्रा@जबलपुर.कोरोना काल में आंवले से बनीं चीजों का घर-घर में उपयोग बढ़ा है। जबलपुर अंचल में उपजा आंवला प्रतापगढ़ के विश्व प्रसिद्ध आंवला की तरह अलग पहचान बना रहा है। अच्छी गुणवत्ता के देसी आंवला का आसपास के वन क्षेत्र से प्रचुर मात्रा में संग्रह किया जा रहा है। किसान भी अपने खेतों में देसी और हायब्रिड आंवला का उत्पादन कर रहे हैं। जबलपुर . विशेषज्ञों के अनुसार जबलपुर, सिवनी, कटनी के झिंझरी समेत कई और स्थान पर आयुर्वेदिक दवा निर्माता बड़ी कंपनियों की फार्मा कंपनी स्थापित होने बाद चवनप्राश, त्रिफला, आंवला पिष्टी, मुरब्बा, कैंडी से लेकर कई टॉनिक और चूर्ण बनाने के लिए आंवला की मांग बढ़ गई है।
जबलपुर में औषधीय गुणों से भरपूर आंवला के उत्पादन का रकबा बढ़कर पांच सौ एकड़ से ज्यादा पहुंच गया है। आंवला के पौधे की नई नर्सरी भी लगाई जा रही हैं। जिले में आंवला उत्पादक क्षेत्र जबलपुर में बघराजी, तौही, कुंडम, बरगी, कालादेही, मदनमहल पहाड़ी, डुमना, खमरिया, कटंगी, पाटन में जंगल से प्रचुर मात्रा में आंवला का संग्रह किया जा रहा है। इसके साथ ही चरगवां, बरगी, शहपुरा, पनागर, पाटन, कटंगी क्षेत्र में किसान अपने खेतों में भी आंवला की खेती कर रहे हैं।
महाकोशल अंचल में भी आंवला का बड़े स्तर पर उत्पादन हो रहा है। सिवनी, दमोह आंवला के सबसे बड़े उत्पादक क्षेत्र हैं। इसके साथ ही कटनी के कन्वारा, बहोरीबंद में आंवला की कई नर्सरी लगाई गई हैं। मंडला, डिंडौरी, नरसिंहपुर के जंगल से भी बड़े पैमाने पर आंवला का संग्रह किया जाता है। 5 महीने रहते हैं आंवला के फल विशेषज्ञों के अनुसार देसी आंवला का पेड़ पांच से छ: साल में फल देने लगता है। वहीं हायब्रिड आंवला का पेड़ लगभग चार साल में फल देता है। हर पेड़ में लगभग पांच महीने तक फल रहते हैं। अक्टूबर के महीने से पेड़ में आंवला तैयार हो जाता है। फरवरी तक इसकी तुड़ाई होती है।
कोरोना काल से बढ़ा उपयोग-
विशेषज्ञों के अनुसार आंवला में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है आंवला का जूस, चटनी, अचार, मुरब्बा या औषधि के रूप में सेवन करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के साथ ही मेटाबालिज्म भी अच्छा होता है। आंवला का सेवन खून के थक्के बनने से भी रोकता है। इसके कारण कोरोना काल से आंवला का घरों के स्तर पर भी उपयोग बढ़ा है। बाजार में भी बहार शहर में बड़ा फुहारा, निवाड़गंज सब्जी मंडी से लेकर गढ़ा, गोरखपुर, सदर, अधारताल, रांझी हर सब्जी मंडी और फुटपाथों पर भी ताजा आंवला बिक रहा है। लोग जूस से लेकर चटनी, मुरब्बा, अचार के रूप में आंवला का उपयोग कर रहे हैं।
हर साल ले रहे 40 टन आंवला का उत्पादन
नरसिंहपुर में गाडरवारा क्षेत्र के मोहपानी गांव के किसान मधुर माहेश्वरी आंवला की खेती कर रहे हैं। उन्होंने 15 एकड़ खेत में आंवला 790 पेड़़ तैयार किए हैं। उन्होंने बताया कि वे उनके बगीचे से हर साल 40 टन के लगभग आंवला का उत्पादन हो रहा है। इसके साथ ही कई और किसानों ने भी खेतों में आंवले के पेड़ लगाए हैं। वर्जन- जबलपुर समेत समूचे अंचल में वृहद वन परिक्षेत्र और बड़े पैमाने पर औषधियों की उपलब्धता के कारण क्षेत्र में बड़ी संख्या में आयुर्वेदिक दवा कंपनियों की उत्पादन इकाई स्थापित हो रही हैं। चवनप्राश, त्रिफला, मुरब्बा, पिष्टी से लेकर अन्य औषधियां तैयार करने आंवला की मांग बढ़ी है।
डॉ जीएल टिटोटी, आयुर्वेद विशेषज्ञ
जबलपुर, कटनी, मंडला, डिंडौरी, सिवनी, दमोह, छिंदवाड़ा समेत आसपास के अन्य जिलों के जंगलों में आंवला के पेड़ प्रचुर मात्रा में हैं। किसानों ने खेतों में भी वृहद स्तर पर उत्पादन शुरू कर दिया है। आंवला का पौधा लगाने के बाद उसकी ज्यादा देखभाल नहीं करना पड़ती। पेड़ तैयार होने के बाद लंबे समय तक अच्छा उत्पादन होता है।
एबी मिश्रा, सेवानिवृत्त वन परिक्षेत्र अधिकारी
Published on:
09 Dec 2022 09:58 pm
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