scriptजाने कहां से सीखकर आ गए यह खास पद्धति? अस्पतालों में कोविड और नॉन कोविड मरीज का एक साथ हो रहा इलाज | Kovid and non-Kovid patients being treated simultaneously in hospitals | Patrika News

जाने कहां से सीखकर आ गए यह खास पद्धति? अस्पतालों में कोविड और नॉन कोविड मरीज का एक साथ हो रहा इलाज

locationजबलपुरPublished: Aug 08, 2020 09:00:52 pm

Submitted by:

shyam bihari

जबलपुर शहर में करीब 10 डॉक्टर और अन्य स्टाफ आ चुके हैं कोरोना की चपेट में

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जबलपुर। कोरोना कहर के बीच जबलपुर के अस्पतालों में लापरहवाही की हद हो गई। यहां के सरकारी और निजी अस्पतालों में कोविड और नॉन-कोविड मरीजों का एक ही परिसर से जुड़े वार्डों में उपचार किए जाने से संक्रमण के फैलाव की आशंका बन गई है। कोविड और अन्य बीमारियों के मरीजों को एक ही परिसर में रखे जाने से कोरोना संदिग्ध जाने-अनजाने हॉस्पिटल में दूसरे व्यक्तियों के सम्पर्क में आ रहे हैं। अभी तक शहर में कोविड वार्ड में ड्यूटी करने वाले डॉक्टर सहित कोई अन्य कर्मी कोरोना पॉजिटिव नहीं मिले हैं। लेकिन नॉन कोविड वार्ड में ड्यूटी करने वाले करीब दस डॉक्टर और अन्य सपोर्टिंग स्टाफ कोरोना वायरस की चपेट में आ चुका है। इसमें ज्यादातर संक्रमित उन अस्पतालों में काम करते हैं, जहां कोविड के साथ सामान्य मरीजों का उपचार किया जा रहा है।
अब तक संक्रमित चिकित्सकीय स्टाफ
– 14 लोग मेडिकल कॉलेज में, इसमें 9 डॉक्टर, 2 इंटर्न, 3 नर्सेस व अन्य कर्मी।
– 04 लोग एल्गिन अस्पताल में, इसमें एक लेडी डॉक्टर, दो ओटी अटेंडेंट व एक स्टीवर्ड है।
– 05 लोग विक्टोरिया जिला अस्पताल में, कोरोना सेम्पल लेने वाला डेंटिस्ट व अन्य शामिल।
– 12 लोग चार निजी अस्पतालों को मिलाकर, इसमें तीन डॉक्टर, तीन नर्सेस व अन्य कर्मी।

अलग से एक भी कोरोना अस्पताल नहीं
भोपाल, इंदौर में कोरोना संक्रमितों के उपचार के लिए कोविड डेडिकेटेड हॉस्पिटल बनाए गए हैं। इसमें सिर्फ कोरोना मरीजों को भर्ती किया जा रहा है। नॉन कोविड मरीज का उपचार दूसरे अस्पतालों में हो रहा है। लेकिन शहर में कोरोना संक्रमण सबसे पहले मिलने के बावजूद सिर्फ कोरोना मरीजों के लिए कोई अस्पताल तय नहीं हो सका है। नेताजी सुभाषचंद्र बोस मेडिकल कॉलेज को डेडिकेटेड हॉस्पिटल बनाया है लेकिन वहां नॉन कोविड मरीजों का भी उपचार हो रहा है। जानकारों का मानना है कि कई सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में कुछ बिस्तरों का कोविड वार्ड बनाने की बजाय किसी एक या दो-दो सरकारी और निजी अस्पताल को सिर्फ कोरोना मरीजों के उपचार के लिए होना चाहिए। इससे कोविड पॉजिटिव और संदिग्ध मरीज एक परिसर में रहेंगे। अभी एक ही परिसर में कोविड और नॉन कोविड मरीज भर्ती किए जाने से अनजाने में संदिग्ध, उसके परिजन और स्टाफ के एक-दूसरे के सम्पर्क में आकर संक्रमित होने का खतरा बना हुआ है। सरकारी अस्पतालों में एन-95 मास्क, ग्लव्स, पीपीइ किट सहित अन्य सुरक्षात्मक संसाधनों की कमी कोरोना संकमण से लड़ाई में बड़ी रोड़ा बनी हुई है। सूत्रों के अनुसार पीपीइ किट और क्वारंटीन की सुविधा सिर्फ कोविड ड्यूटी वाले डॉक्टर एवं स्टाफ को दी जा रही है। यहीं वजह है कि कोविड ड्यूटी के दौरान अभी तक कोई पॉजिटिव नहीं मिला है। नॉन कोविड स्टाफ को एन-95 मास्क, फेस सील्ड और ग्लव्स का भी टोटा है। जानकारों का मानना है कि लैब, फीवर क्लीनिक या कोविड वार्ड में ड्यूटी करने वाले सतर्क है। लेकिन कैजुअल्टी, फीवर के अलावा अन्य ओपीडी और विभागों में काम कर रहे स्टाफ को कोरोना संक्रमण का खतरा ज्यादा है। क्योंकि वहां यह पता नहीं होता कि आगन्तुक किसी कोरोना संक्रमित के सम्पर्क में रहा है। ऐसे में नॉन कोविड स्टाफ में तैनात निचले कर्मचारियों को सुरक्षा के लिए पर्याप्त उपकरण नहीं मिलने से वे कोरोना के अनजान खतरे से जूझ रहे हैं।

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