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गौरव दुबे @ जबलपुर
क्या आप जानते हैं कि शहर में यहां-वहां सज रही शीतल पेय, गन्ने और लस्सी, बर्फ के गोले की दुकानों पर मिल रही शीतलता किस कदर आपके स्वास्थ्य के लिए घातक सिद्ध हो सकती है, इसका अंदाजा आप इस बात से लगा सकते हैं कि इनमें इस्तेमाल हो रही बर्फ खाने के लिए बनाई ही नहीं गई। दरअसल इन पदार्थो को ठंडा करने में जिस बर्फ का इस्तेमाल हो रहा है वह शव को सडऩे से बचाने एवं मांस-मछली को ताजा बनाए रखने में काम आने वाली बर्फ है। पत्रिका एक्सपोज टीम शहर में बर्फ बनाने वाली एक फैक्ट्री में पहुंची तो वहां बोरिंग के पानी से बर्फ बनाई जा रही है।
एक्सपोज रिपोर्टर,जबलपुर
ये बात आपको हैरान कर रही होगी लेकिन हकीकत यही है। बर्फ फैक्ट्रियों में बन रही बर्फ एक ही तरह की होती है। पत्रिका स्टिंग में इस बात का खुलासा हुआ है। हैरत की बात यह है कि प्रशासन द्वारा बर्फ फैक्ट्रियों की निगरानी नहीं रखी जा रही है। गर्मी में बर्फ की खपत बढ़ जाने के बाद भी अब तक न तो जिला प्रशासन ने इसके जांच की और न ही स्वास्थ्य विभाग इसकी ओर ध्यान दे रहा है।
बोरिंग के पानी से बनती है बर्फ
बर्फ के निर्माण में पानी की गुणवत्त का ध्यान नहीं रखा जा रहा है। पानी की गुणवत्ता नापने का कोई पैमाना नहीं है। बर्फ बनाने में बोरिंग के पानी से लेकर कुओं का पानी का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। इसके अलावा बर्फ फैक्ट्रियों में सफाई के पुख्ता इंतजाम भी नहीं हैं। हालांकि, बर्फ फैक्ट्रियों में तैनात कर्मियों का कहना है कि बर्फ खाने योग्य है और नगर निगम के पानी से ही बनाई जा रही है। वहीं फैक्ट्रियों में रोजाना बर्फ लेने आने वालों की दलील है कि निगम द्वारा अक्सर पानी की सप्लाई प्रभावित रहती है एेसे में बर्फ के लिए पानी कहां से आता होगा? यह पानी की गुणवत्ता पर संदेह पैदा कर रहा है।
रोजाना 10-15 हजार किलो बर्फ
शहर में बर्फ निर्माण से जुड़ी करीब चार फैक्ट्रियां हैं। ये आधारताल, मदनमहल, गढ़ा, मेडिकल, आईटीआई, कटंगी बायपास रोड, पनागर में संचालित की जा रही हैं। सूत्रों का कहना है कि कुछ चोरी-छिपे भी चल रही हैं। गर्मी आते ही शहर में बर्फ की बिक्री का कारोबार बढ़ गया है। शहर में प्रतिदिन करीब 10-१५ हजार किलो बर्फ की खपत हो रही है।
इतना खप रही बर्फ
32 फीसदी लस्सी में
25 फीसदी आइसक्रीम, मटका कुल्फी में
20 फीसदी मांस-मछली में
12 फीसदी जूस सेंटर पर
11 फीसदी बर्फ के गोले
यह है बर्फ का कारोबार
25-30 हजार किलो सिल्ली का प्रतिदिन उत्पादन
400-500रुपए की एक सिल्ली
75-120 किलो का वजन
यहां हो रहा उपयोग
लस्सी की दुकानों में
जूस सेंटरों में
गन्ने की चरखियों में
कुल्फी में
बर्फ के ठेलों में
आइसक्रीम निर्माण में
लकड़ी की कुल्फी में
ये था फैक्ट्री का नजारा
जिस बॉक्स में बर्फ जमाई जाती है उसके ऊपर लकड़ी के पटिये लगे हैं। इन पटियों के उपर से कर्मचारी जूते-चप्पल पहनकर आते-जाते हैं। एेसे में जूतों की गंदगी पटियों के छेद से पानी में मिल रही है। इसके साथ ही फैक्ट्री के अन्दर साफ-सफाई का ध्यान नहीं रखा जा रहा है।
सांठगांठ से चल रहा खेल
बर्फ फैक्ट्रियों में हर बार गंदगी के बीच बर्फ बनाई जाती है बावजूद इसके संबंधित विभाग का दावा है कि पिछले वर्ष फैक्ट्रियों से लिए गए सैम्पल में जांच निगेटिव आई। खैर पिछले वर्ष को छोड़ दें तो इस बार भी गुणवत्ताहीन बर्फ खाने से लोग बीमार हो रहे हैं। शासकीय और निजी चिकित्सकों के पास रोजाना एेसे मरीज पहुंच रहे हैं जिन्हें ठंडा पदार्थ में मिली बर्फ खाने के बाद परेशानी का सामना करना पड़ा।
गुरूनानक कोल्ड स्टोरेज के कर्मचारी से बातचीत के अंश
बर्फ कितने प्रकार की बनती है?
हम तो एक ही किस्म की बर्फ बनाते हैं।
खाने और शव को रखने में एक ही बर्फ का इस्तेमाल कर सकते हैं?
हां, क्यों नहीं । हमारे पास से ठेले वाले ले जाते हैं।
किस पानी से बर्फ बनाई जा रही है?
हम लोग निगम की सप्लाई से मिल रहे पानी से बर्फ बनाते हैं।
लेकिन यहां तो बोरिंग से पानी लिया जा रहा है?
बोरिंग का पानी दूसरे इस्तेमाल में लिया जा रहा है बर्फ में नहीं।
सीधी बात
देविका सोनवानी, खाद्य अधिकारी
शहर में बर्फ फैक्ट्री कितनी है?
यही कुछ करीब चार है।
गर्मी के सीजन बर्फ की मांग बढ़ गई है,दुकानों में जो बर्फ आ रही है उसकी गुणवत्ता कैसी है?
अभी बर्फ फैक्ट्रियों की हमने जांच नहीं की है।
गर्मी शुरू हुए एक माह हो गए हैं जांच अब तक न होने की वजह ?
विभाग दूसरी कार्रवाई में लगा हुआ है। जल्द ही फैक्ट्रियों की जांच की जाएगी।
पिछले वर्ष जांच हुई थी?
हां सैम्पल लिए गए थे।
जांच के बाद क्या सामने आया था?
कुछ भी नहीं निकला,बर्फ सही मिली।
Published on:
10 Apr 2019 09:08 pm
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