scriptMP के इस जिले में दो दिन के लिए लग सकता है लॉकडाउन, जानें क्या है कारण | Lockdown can be imposed in Pandhuna due to Lokparva | Patrika News

MP के इस जिले में दो दिन के लिए लग सकता है लॉकडाउन, जानें क्या है कारण

locationजबलपुरPublished: Aug 16, 2020 04:04:36 pm

Submitted by:

Ajay Chaturvedi

-जिला प्रशासन ने शुरू की तैयारी

City Lockdown in bhilwara

City Lockdown in bhilwara

जबलपुर. कोरोना संक्रमण के चलते इस साल सारे तीज-त्योहार सीमित कर दिए गए हैं। हर किसी को यह राय दी जा रही है कि लोग घरों में परिवार के साथ ही त्योहार मनाएं। घर के बाहर, सार्वजनिक स्थल पर किसी भी सूरत में कोई मेला नहीं लगेगा, कोई उत्सव नहीं मनाया जाएगा। इसी के तहत इस बार स्वतंत्रता दिवस का आयोजन तक सीमित हो गया। स्कूलों में विद्यार्थी नहीं बुलाए गए। औपचारिक तौर पर शिक्षकों ने मिल कर झंडोत्तोलन कर लिया।
अब मध्य प्रदेश व महाराष्ट्र के सीमावर्ती जिलों में भादो की अमावस्या को मनाए जाने वाले लोकपर्व को लेकर प्रशासन काफी सचेत हो गया है। जिला प्रशासन ने साफ कह दिया है कि किसी भी सूरत में मेला नहीं लगेगा, जो भी धार्मिक आयोजन हैं वह सीमित तरीके से घरों में मनाए जाएंगे। इससे लोगों में मायूसी भी है। इसे देखते हुए प्रशासन त्योहार विशेष पर दो दिन के लिए जिले में लॉकडाउन लागू करने पर भी विचार कर रहा है। इसकी घोषणा जल्द कर दिए जाने की उम्मीद जताई जा रही है।
मध्य प्रदेश का लोकपर्व (फाइल फोटो)
स्थानीय लोगों के मुताबिक मेले को लेकर कई कहानियां और किवंदतियां प्रचलित हैं। इसमें सबसे प्रचलित और आम किवंदती के मुताबिक सावरगांव की एक आदिवासी लड़की का पांर्ढुना के किसी लड़के से प्रेम हो गया था। दोनों ने चोरी छिपे प्रेम विवाह कर लिया। पांर्ढुना का लड़का साथियों के साथ सावरगांव जाकर लड़की को भगाकर नदी के रास्ते ले जा रहा था। उस समय जाम नदी पर पुल नहीं था। नदी में गर्दन भर पानी रहता था, जिसे कुशल तैराक ही नदी पार कर सकते थे, या किसी को बचा सकते थे। ऐसे में जब लड़का लड़की को लेकर नदी से जा रहा था तभी सावरगांव के लोगों को पता चला और उन्होंने लड़के व उसके साथियों पर पत्थरों से हमला शुरू कर दिया। इसकी जानकारी मिलने पर पहुंचे पांर्ढुना पक्ष के लोगों ने भी जवाब में पथराव शुरू कर दिया। पांर्ढुना और सावरगां के बीच इस पत्थरों की बौछार से दोनों प्रेमियों की जाम नदी के बीच ही मौत हो गई।
दोनों प्रेमियों की मृत्यु के बाद दोनों पक्षों के लोगों को अपनी शर्मिंदगी का एहसास हुआ। दोनों प्रेमियों के शवों को उठाकर किले पर मां चंडिका के दरबार में ले जाकर रखा और पूजा-अर्चना करने के बाद दोनों का अंतिम संस्कार कर दिया गया। इस घटना की याद में मां चंडिका की पूजा-अर्चना कर गोटमार मेले का आयोजन किया जाता है।
ऐसे में ढोल-नगाड़ों और पत्थरों की बरसात के बीच पांर्ढुना के खिलाड़ी आगे बढ़ते हैं तो कभी सावरगांव के खिलाड़ी। दोनों पक्ष एक-दूसरे पर पत्थर मारकर पीछे ढकेलने का प्रयास करते है। दोपहर बाद 3 से 4 के बीच पत्थरों की बारिश बढ़ जाती है। खिलाड़ी कुल्हाड़ी लेकर झंडे को तोड़ने के लिए वहां तक पहुंचने की कोशिश करते हैं। इसे रोकने के लिए साबरगांव के खिलाड़ी उन पर पत्थरों की बारिश कर देते हैं।
शाम को पांर्ढुना पक्ष के खिलाड़ी पूरी ताकत के साथ चंडी माता का जयघोष एवं भगाओ-भगाओ के साथ सावरगांव के पक्ष के व्यक्तियों को पीछे ढकेल देते है और झंडा तोड़ने वाले खिलाड़ी, झंडे को कुल्हाडी से काट लेते हैं। जैसे ही झंडा टूट जाता है, दोनों पक्ष पत्थर मारना बंद करके मेल-मिलाप करते हैं और गाजे बाजे के साथ चंडी माता के मंदिर में झंडे को ले जाते है। झंडा न तोड़ पाने की स्थिति में शाम साढ़े छह बजे प्रशासन द्वारा आपस में समझौता कराकर गोटमार बंद कराया जाता है। गोटमार मेले की शुरुआत 17वीं सदी से मानी जाती है। इसमें पत्थरबाजी से कई लोगों की मौत भी हो चुकी है।
पांर्ढुना के बीच में नदी के उस पार सावरगांव और इस पार को पांढुर्ना कहा जाता है। अमावस्या को यहां पर बैलों का त्यौहार पोला धूमधाम से मनाया जाता है। इसके दूसरे दिन साबरगांव के सुरेश कावले परिवार की पुश्तैनी परम्परा स्वरूप जंगल से पलाश के पेड़ को काटकर घर पर लाने के बाद उस पेड़ की साज-सज्जा कर लाल कपड़ा, तोरण, नारियल, हार और झाड़ियां चढ़ाकर पूजन किया जाता है।
एक दिन पहले मंगलवार को होने वाले पोला पर्व का आयोजन भी सीमित रूप में होगा। इस बार कहीं भी बैलों की प्रदर्शनी और हाट बाजार नहीं लगेगी। एसपी विवेक अग्रवाल ने कहा है कि लोग अपने घरों और खेतों में ही पूजन कर पर्व मनाएंगे। पोले को लेकर कोई भी सामूहिक आयोजन नहीं होगा। प्रशासन मंगलवार और बुधवार को लॉक डाउन लगाने के संबंध में वरिष्ठ अधिकारियों से चर्चा कर निर्णय लेगा।
ऐसे में कलेक्टर सौरभ सुमन और एसपी विवेक अग्रवाल की मौजूदगी में आयोजित शांति समिति की बैठक में इस पर विचार किय गया। स्थानीय लोगों का कहना था कि कोरोना महामारी के चलते बीते चार महीने से कोई भी धार्मिक और सामाजिक उत्सव सामूहिक रूप से नहीं मनाए गए है। यदि गोटमार मेले का आंशिक आयोजन भी होता है तो बड़ी संख्या में बाहर से लोग आएंगे, जिससे शहर में कोरोना के संक्रमण फैलने का खतरा बढ़ जाएगा। सभी लोगों ने पांढुर्ना क्षेत्रवासियों की भावना अनुरूप इस वर्ष पत्थरबाजी वाली गोटमार को स्थगित रखते हुए सांकेतिक रूप से गोटमार मेले का आयोजन करने और पूजन करने पर जोर दिया।
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