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हर दिन रंग बदलते हैं ये ‘पहाड़’, वैज्ञानिक भी कर चुके हैं रिसर्च

संगमरमर (मार्बल)के खूबसूरत पत्थर की ये वादियां जबलपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट में देखने मिलती हैं।

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Abha Sen

Oct 26, 2015

bhedaghat

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(फोटो कैप्शन: सभी भेड़ाघाट, मार्बल रॉक के फाइल फोटो।)
जबलपुर। मध्यप्रदेश में स्थित इस स्थान पर संभवत: आप कई बार आ चुके होंगे, लेकिन आज हम आपको इस स्थान की ऐसी खूबियों के बारे में बता रहे हैं जो आमतौर पर लोगों को पता नहीं है। संगमरमर (मार्बल)के खूबसूरत पत्थर की ये वादियां जबलपुर शहर से 20 किलोमीटर दूर भेड़ाघाट में देखने मिलती हैं। अन्य स्थानों पर मौजूद पहाड़ों की तुलना में यहां संगमरमर पत्थरों के सुंदर व बड़े-बड़े पहाड़ हैं।
संगमरमर की इन वादियों का रंग हर दिन बदलता है। सुबह, दोपहर और शाम आप जब भी देखेंगे पत्थरों का रंग अलग ही नजर आता है। दरअसल, मार्बल के ये पत्थर धूप पडऩे पर चमकने लगते हैं और जैसे-जैसे सूरत चढ़ता व ढलता जाता है इनका रंग भी उसके अनुसार परिवर्तित होता जाता है, जो कि लाल, नीला, हरा सहित सतरंगी भी दिखाई पड़ता है।

देर रात चंद्रमा के निकलने पर ये पहाड़ कई प्रकार के रंगों में परिवर्तित होते हैं। शरद पूर्णिमा की रात यहां का दृश्य देखते ही बनता है। घने अंधेरे में भी ये अद्भुत चमक के साथ अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं।
भूल जाएंगे रास्ता

इन वादियों की सैर करते वक्त रास्ता भूलने का भी खतरा रहता है। यहां एक ऐसा स्थान है जहां पहुंचने के लिए नांव से जाना पड़ता है, लेकिन जब यहां पहुंचते हैं तो वापिसी का रास्ता भी समझ नहीं आता। दूर-दूर तक सिर्फ पानी और मार्बल के पहाड़ ही दिखते हैं। यही वजह है कि इसे भूल भुलैया कहा जाता है। यह स्थान देखने की चाह रखने वाले किसी पारंगत नाविक के साथ ही यहां पहुंचते हैं।
बंदरों के लिए मिनिटों का काम

कहा जाता है कि यहां कभी बंदर बड़ी संख्या में पाए जाते थे, जिनके एक से दूसरे पहाड़ पर पहुंचना चंद मिनिटों का काम था। बताते हैं कि उस दौरान ये आसपास ग्रामीण क्षेत्रों में आतंक मचाते और लोग जब उनका पीछा करते तो वे पहाड़ से कूदकर नर्मदा के दूसरी ओर आ जाते। इस वजह से इसका नाम बंदर कूदनी पड़ गया।
डायनासौर के समान

दूधिया वॉटर फॉल के बीच में एक ऐसी भी चट्टान है जो लेटे हुए डायनासौर के समान दिखाई देती है। चट्टान के आकार को देखते हुए कई साल पहले वैज्ञानिकों ने इस संबंध में खोज भी की, कि कहीं ये डायनासौर का जीवाश्म तो नहीं है। हालांकि बाद में इसे चट्टान ही बताया गया, लेकिन अब भी ये लोगों के लिए आश्चर्य का विषय है।
यहां हम आपको बता दें कि डायनासौर नर्मदा के आसपास अपना घोंसला बनाकर रहते थे। इनके यहां होने के साक्ष्य भी पाए गए हैं, जिसकी वजह से इस चट्टान पर भी खोज की गई।

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