जिम्मेदारों का कहना है कि कचरे का परत दर परत उपचार किया जाएगा। ऊपरी परत निकालकर उसे हाईटेक मशीनों से छाना जाएगा। जलाने योग्य कचरे का उपयोग कठौंदा प्लांट में बिजली बनाने के लिए किया जाएगा। इसी तरह से अगली परत को निकाला जाएगा, उसमें से जैविक उपचार योग्य कचरे से खाद बनाकर उसका उपयोग निगम के उद्यानों में किया जाएगा। इस बात का ध्यान रखा जाएगा कि पर्यावरणीय नुकसान न पहुंचे। रानीताल में कचरे के निपटारे से एबीडी एरिया की बेशकीमती जमीन मुक्त होगी। इस कार्य में डेढ़ साल के लगभग समय लगेगा। उक्त जमीन पर स्टेडियम को विस्तार देने के साथ ही उद्यान का विकास किया जाएगा।
पूरे सिस्टम का मखौल उड़ा रहा है कचरे का पहाड़
सरकारी सिस्टम शहर को स्मार्ट सिटी के रूप में विकसित करने का दावा कर रहा है। लेकिन, बंद आंखों से भी देखा जा सकता है कि उसे अपनी जिम्मेदारी का तनिक भी अहसास नहीं है। यदि अहसास होता, तो बीच शहर रानीताल में कचरे का पहाड़ कैसे बन जाता? वर्षों बीत गए इस पहाड़ को देखते हुए। कचरे ने पानी के बहुत बड़े स्रोत रानीताल का कबाड़ा कर दिया। उसका पानी अंदर ही अंदर सड़ रहा है। कचरे का यह पहाड़ पूरे सरकारी सिस्टम का मखौल उड़ा रहा है। आस-पास के लोगों का सांस लेना मुश्किल है। बदला कुछ नहीं है। अनदेखी की इंतेहा अभी भी जारी है। कठौंदा में कचरे से बिजली भी बनने लगी, लेकिन यहां के कचरे का निपटान नहीं हुआ। हद तो यह है कि कचरे के पहाड़ और उसके आस-पास झुग्गी-झोपडिय़ां भी तन गईं। लोग वहां रहते भी हैं। वे इस बात से अनजान हैं कि उनमें कचरे के चलते तमाम बीमारियां भी फैल रही हैं। जिम्मेदार चाहें, तो रानीताल खेल परिसर का विस्तार शानदार तरीके से कर सकते हैं। इतनी जगह प्रदेश के शायद ही किसी खेल परिसर के पास हो। लेकिन, कभी भी किसी जिम्मेदार ने यहां के कायाकल्प के लिए ईमानदार कोशिश नहीं की। अच्छा है कि कचरे के निपटारे की योजना बनी है। लेकिन, सच्चाई यही है कि इसके पहले भी कई बार योजनाएं बनीं, जो कचरे की पेटी में चली गईं। उम्मीद है कि स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर इस बार कुछ ठोस होगा। विकास के दावे करने वाले नेताओं की भी नींद टूट जाए, तो बात जल्दी बन सकती है।