रवि कुमार सिंह, जबलपुर। ओशो खुलकर बोलते थे। उनकी शैली में वो जादू था कि लोग मुग्ध हो जाते थे। जबलपुर में भी कई लोगों ने उनकी यह शैली और विशिष्टता को देखा.. सुना, लेकिन उनके कई शब्द अब महज किताबों तक सीमित हैं, कई बोल तो ऐसे हैं, जब कभी लौटकर नहीं आएंगे। दरअसल उनके प्रवचनों के ज्यादातर रिकार्ड खराब हो गए हैं। इनको अब कभी शब्दों में बांधकर किताब में परिणित नहीं किया जा सकता, लेकिन आज मंगलवार को ओशो महोत्सव पर इन्हीं शब्दों को फिर से याद किया जा रहा है।
दो घंटे प्रवचन
ओशो के साथी व देवताल ध्यान शिविर के संचालक आनंद विजय बताते हैं कि वह प्रतिदिन भवरताल स्थित योगेश भवन में शाम को लगभग दो घंटे से ज्यादा प्रवचन देते थे। बाद में उनके बहुत से प्रवचन रिकॉर्ड भी हुए, लेकिन उनमें से कई भाषणों व प्रवचनों को किताब के रूप में नहीं संभाला जा सका। वे बताते हैं उनके द्वारा दिए गए प्रवचनों में कुछ अंश संस्मरण के रूप में कई किताबों में अवश्य मिलता है, लेकिन ज्यादातर रिकॉर्ड खराब हो जाने से उन्हें किताब नहीं बनाया जा सका। रखरखाव के अभाव व चूक की वजह से रिकार्ड किए गए प्रवचन खराब हुए हैं।