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इस देश में चलते हैं भगवान राम के नोट, एक नोट की कीमत 10 यूरो डालर

भारत के महर्षि महेश योगी ने नीदरलैंड में शुरू किया था राम राज्य मुद्रा का चलन, अमेरिका के 35 राज्यों में चलते हैं राम बॉन्ड 

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अजय खरे@ जबलपुर. भारत में राम राज्य की साकार होने की बात सदियों से होती आ रही है पर यहां यह बातों तक ही सीमित है। दूसरी ओर विदेश का एक राज्य ऐसा है जहां भगवान श्रीराम के नाम की मुद्रा चल रही है। खास बात यह है कि इस मुद्रा का नाम राम राज्य मुद्रा है जो इस पृथ्वी पर राम राज्य होने का बोध कराती है। प्रभु श्रीराम के नोट की वजनदारी इस बात से समझी जा सकती है कि वहां एक राम नोट के बदले 10 यूरो डालर का भुगतान किया जाता है। इस नोट को चलाने वाले हैं भारत के महर्षि महेश योगी जो अब ब्रह्मलीन हो चुके हैं।
अक्टूबर 2002 में शुरू हुआ राम मुद्रा का चलन
भावातीन ध्यान के माध्यम से संपूर्ण विश्व में भारतीय अध्यात्म का नाम रोशन करने वाले महर्षि महेश योगी ने 1957 में विश्व अध्यात्म आंदोलन की शुरुआत अमेरिका से की थी। उन्होंने नीदरलैंड में ग्लोबल कंट्री ऑफ वल्र्ड पीस की स्थापना की। यहां उनकी संस्था ने अक्टूबर 2002 में भगवान श्रीराम के नाम पर मुद्रा शुरू की जिसे वहां की सरकार ने कानूनी मान्यता दी। अमेरिका के आइवा राज्य की महर्षि वैदिक सिटी में भी यही मुद्रा चलती है। इसके अलावा अमेरिका के 35 राज्यों में राम नाम के बॉन्ड चलते हैं। नीदरलैंड की डच दुकानों में एक राम नोट के बदले दस यूरो डॉलर दिए जाते हैं। राम नाम के 1,5 और 10 के इन चमकदार रंगीन नोटों में प्रभु राम का चित्र है।
जबलपुर के थे महर्षि महेश योगी
संपूर्ण विश्व में भारतीय सनातन धर्म और संस्कृति की धर्म ध्वजा फहराने वाले महर्षि महेश योगी का जन्म 12 जनवरी, 1917 को मध्य प्रदेश के कायस्थ परिवार में जबलपुर में हुआ था । उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से फिजिक्स विषय से ग्रेजुएशन किया था। 22 साल की उम्र में 1939 में वे शंकराचार्य स्वामी ब्रह्मानन्द सरस्वती के शिष्य बन गए करीब 13 साल तक उनके सानिध्य में धर्म, अध्यात्म की शिक्षा प्राप्त की। महर्षि महेश योगी ने शंकराचार्य की मौजूदगी में रामेश्वरम में एक बड़ा धार्मिक आयोजन किया था। वहां उन्होंने 10 हजार बाल ब्रह्मचारियों को आध्यात्मिक योग और साधना की दीक्षा दी थी।
हिमालय में की थी मौन साधना
महर्षि महेश योगी ने देव भूमि हिमालय क्षेत्र में दो वर्ष की मौन साधना की और अलौकिक सिद्धियां प्राप्त करने के बाद 1955 में उन्होंने भावातीत ध्यान सिखाना शुरू किया। 1957 में अमरीका गये और विश्व अध्यात्म आन्दोलन की शुरू किया। 1969 में महर्षि ने एक बड़े कार्यक्रम में एक साथ करीब 4 लाख अमरीकी युवाओं को सम्बोधित कर उन्हें भारतीय अध्यात्म से जुडऩे के लिए प्रेरित किया।