21वीं सदी के आरंभ से ही यह कहा जा रहा है कि अगला विश्व युद्ध पानी को लेकर होगा। पानी के संरक्षण को लेकर तमाम नियम कानून बनाए गए। लेकिन सारे नियम फाइलों में बंद हैं क्योंकि शासन-प्रशासन से लेकर आमजन तक पानी को बचाने, उसे प्रदूषित होने से बचाने के प्रति संजीदा नहीं। यही वजह है कि पानी की बर्बादी भी हो रही है और प्राकृतिक जल स्त्रोत लगातार प्रदूषित ही नहीं हो रहे बल्कि नदियों, तालाबों, सरोवरों, कुंडो के अस्तित्व पर संकट पैदा हो गया है।
कम से कम उत्तर भारत का तो यही हाल है चाहे बात देश की लाइफ लाइन मानी जाने वाली मां गंगा हों, यमुना हों अथवा नर्मदा। हर नदी का कमोबेश एक सा हाल है। नदियों की ड्रेजिंग न होने से नदियां छिछली होती जा रही हैं। नदियों के उद्गम स्थलों की उपेक्षा या उनके बेहिसाब दोहन से हालात और भी बदतर होते जा रहे हैं। नतीजा सामने है। प्रकृति के साथ छेड़-छाड़ का नतीजा है जलवायु परिवर्तन पर इसका खामियाजा भुगतने के बाद भी लोग सचेत नहीं हो रहे।
ऐसे में हाल ये है कि नदियों के किनारे बसे शहरों को भयानक स्तर पर जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है। इससे जबलपुर भी अलग नहीं। वो जबलपुर जो नर्मदा से लेकर गौरा जैसी नदियों के तट पर बसा है। जिस जिले में 50 से अधिक तालाब, सरोवर, कुंड हो वो शहर गर्मियो में पेयजल के लिए तरसता है। लोगो को बूंद-बूंद पानी के लिए जहां-तहां भटकना पड़ता है। पीने के पानी के लिए हाहाकार मचता है। लेकिन जिम्मेदारों को इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्ता में बैठे लोग इस संकट से निजात पाने के लिए कानून बनाते हैं पर उस कानून का सही ढंग से क्रियान्वयन हो रहा है कि नहीं इस पर किसी का ध्यान नहीं जाता जिसका खामियाजा आमजन को भुगतना पड़ रहा है।
आलम यह है कि नगर निगम, जबलपुर 18 लाख की आबादी वाले शहर को जरूरत के मुताबिक 243 एमएलडी पानी भी नहीं पहुंचा पा रहा। आलम यह है कि मांग 243 एमएलडी की है जबकि आपूर्ति क्षमता 311 एमएलडी की है। फिर भी लोग गर्मियों में प्यासे रहने को मजबूर हैँ। इसके पीछे कोई न कोई कारण तो होगा ही। इसका सबसे बड़ा कारण है पानी की बर्बादी। आलम यह है कि रोजाना करीब 15 एमएलडी पानी लीकेज व सीपेज में बह जाता है। 2020 में नगर निगम ने लीकेज रोकने के नाम पर 4.90 करोड़ रुपए खर्च कर डाले। पर हालात में कोई सुधार नहीं दिखा।
शहर की जलापूर्ति के आंकड़ों पर गौर करें तो नगर निगम के रिकॉर्ड में 1.52 लाख के लगभग नल कनेक्शन है। वर्ष 2020 में नगर निगम ने 21 करोड़ रुपए जल टैक्स वसूले थे। लगभग 161 करोड़ रुपए का बकाया है। हर साल पानी सप्लाई पर नगर निगम 40 करोड़ के लगभग खर्च करता है। पिछले 10 सालों में 150 करोड़ रुपए पाइपलाइन बिस्तार पर खर्च हो चुके हैं।
शहर में 62 बड़ी टंकियों, 8 हाइडेंट और 719 नलकूप से पानी की आपूर्ति होती है। शहर के जलस्रोतों की उपलब्धता ऐसी है कि शहर में 24 घंटे पानी सप्लाई कर सकते हैं। पर नगर निगम शहर को सुबह-शाम दो घंटे भी पूरी क्षमता से पानी की सप्लाई नहीं कर पाता है। कई जगह पाइपलाइनों में पानी का प्रेसर इतना कम रहता है कि पानी भरने वालों की लाइन खत्म नहीं होती, लेकिन पानी की सप्लाई जरूर बंद हो जाती है। यही वजह है कि गर्मी के साथ ही शहर में पानी की किल्लत अभी से शुरू हो गई है। अधारताल, लेमा गार्डन, सिद्धबाबा, रांझी, मानेगांव, अधारताल, मोहनिया, हनुमानताल क्षेत्रों में पानी को लेकर हाहाकार मचने लगा है।
हर बड़े शहर की तरह जबलपुर में भी पेयजल और सीवर लाइन की पाइल लाइन एक दूसरे के समानांतर और बिल्कुल करीब से गई है। ये पाइपलाइनें पुरानी और जर्जर भी हो चुकी हैं, नतीजा लीकेज और लीकेज के चलते पानी का मिश्रण। यानी पेयजल में सीवर के गंदे पानी का मिश्रण। कहने को पेयजल की शुद्धता सुनिश्चित करने को जलशोधन संयंत्रों में रोजाना 15 टन फिटकरी, एक टन चूना और 643 किलो क्लोरीन मिलाने का दावा किया जाता है, पर अक्सर बदबूदार पानी के चलते लोग उसे पी भी नहीं सकते हैं।
नगर निगम में जलविभाग के कार्यपालन यंत्री कमलेश श्रीवास्तव कहते हैं कि निगम में अभी जलापूर्ति का पूरा प्रबंध एक हाथ में है। इसके चलते सही तरीके से मॉनीटरिंग नहीं हो पाती है। बेहतर परिणाम के लिए व्यवस्था का विकेंद्रीकरण करना होगा। उत्पादन, वितरण, मरम्मत और टैक्स वसूली के लिए अलग-अलग लोगों को जिम्मेदारी सौंपनी होगी। जर्जर पाइपलाइनों को बदला जा रहा है। नई टंकियों का भी निर्माण कराया जा रहा है, जिससे शहर के हर कोने में नर्मदा का पानी उपलब्ध कराया जा सके।
जबलपुर शहर के लिए जलापूर्ति के आंकड़े -94 एमएलडी पानी भोंगाद्वार, परियट व खंदारी प्लांट से होती है
-97 एमएलडी पानी की सप्लाई ललपुर के दो प्लांटों से होती है
-120 एमएलडी की सप्लाई रमनगरा प्लांट से शहर में होती है
-62 उच्चस्तरीय टंकियों के माध्यम से 1.52 लाख पाइपलाइन कनेक्शनों से पानी की सप्लाई होती है
-719 नलकूप और 8 हाइडेंट से भी शहर में टैंकरों के माध्यम से जलापूर्ति होती है
-15 एमएलडी पानी रोज सीपेज-लीकेज में रोज बह जाता है
-68 एमएलडी पानी अधिक होने के बावजूद पांच लाख की आबादी के सामने जलसंकट।
-05 स्रोतों नर्मदा, परियट, खंदारी, गौर नदी और बोरिंग के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई होती है।
-643 किलो क्लोरीन, 15 टन फिटकरी व 01 टन चूना पानी को साफ करने में लगता है।
-40 करोड़ रुपए हर वर्ष पानी की सप्लाई पर नगर निगम खर्च करने का दावा करता है
-21 करोड़ रुपए नगर निगम ने 2019-20 के वित्तीय वर्ष में जलकर वसूला था
-161 करोड़ रुपए के लगभग जलकर लोगों पर बकाया है, जिसे नगर निगम नहीं वसूल पा रहा है।
-97 एमएलडी पानी की सप्लाई ललपुर के दो प्लांटों से होती है
-120 एमएलडी की सप्लाई रमनगरा प्लांट से शहर में होती है
-62 उच्चस्तरीय टंकियों के माध्यम से 1.52 लाख पाइपलाइन कनेक्शनों से पानी की सप्लाई होती है
-719 नलकूप और 8 हाइडेंट से भी शहर में टैंकरों के माध्यम से जलापूर्ति होती है
-15 एमएलडी पानी रोज सीपेज-लीकेज में रोज बह जाता है
-68 एमएलडी पानी अधिक होने के बावजूद पांच लाख की आबादी के सामने जलसंकट।
-05 स्रोतों नर्मदा, परियट, खंदारी, गौर नदी और बोरिंग के माध्यम से शहर में पानी की सप्लाई होती है।
-643 किलो क्लोरीन, 15 टन फिटकरी व 01 टन चूना पानी को साफ करने में लगता है।
-40 करोड़ रुपए हर वर्ष पानी की सप्लाई पर नगर निगम खर्च करने का दावा करता है
-21 करोड़ रुपए नगर निगम ने 2019-20 के वित्तीय वर्ष में जलकर वसूला था
-161 करोड़ रुपए के लगभग जलकर लोगों पर बकाया है, जिसे नगर निगम नहीं वसूल पा रहा है।