अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी आती है
हाईकोर्ट ने राज्य सरकार के रवैये पर नाराजगी जाहिर कर की टिप्पणी

जबलपुर . मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने आठ साल का अरसा गुजरने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से कोर्ट के पूर्वादेश का पालन न किए जाने को लेकर सरकार को खरी-खोटी सुनाई। जस्टिस अतुल श्रीधरन की सिंगल बेंच ने रूडयार्ड किपलिंग की किताब जंगल बुक का हवाला देते हुए कहा कि अधिकार के साथ जिम्मेदारी भी आती है। कोर्ट ने कहा कि दो सप्ताह के भीतर याचिकाकर्ता को अपेक्षित लाभ प्रदान किया जाए। बुरहानपुर निवासी सोना बाई की ओर से अधिवक्ता आदित्य संघी ने कोर्ट को बताया कि याचिकाकर्ता आदिवासी विकास विभाग के अंतर्गत कुक हैं। उसे 15 हजार 775 रुपए मासिक वेतन मिलता है। सितंबर 2021 में उसकी सेवानिवृत्ति होनी है। सात साल पहले 2013 में उसकी याचिका पर हाईकोर्ट ने आदेश पारित किया था कि तीन माह के भीतर नियमित वेतनमान प्रदान किया जाए। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। इस पर यह अवमानना याचिका दायर की गई। अवमानना नोटिस भी जारी हुए लंबा समय गुजर गया। इसके बावजूद आदेश का पालन नहीं किया गया। अधिवक्ता संघी ने तर्क दिया कि विगत सुनवाई के दौरान कोर्ट ने आदिवासी विकास विभाग के सहायक आयुक्त लखन अग्रवाल को स्पष्टीकरण प्रस्तुत करने के निर्देश दिए थे। उन्होंने अवमानना की कार्रवाई से बचने के लिए आनन-फानन में अवमानना याचिकाकर्ता के अभ्यावेदन को एक बार फिर खारिज करके आदेश प्रस्तुत कर दिया। जिम्मेदारी प्रशासनिक अधिकारियों का यह आचरण कोर्ट की अवमानना की परिधि में आता है। सुनवाई के बाद कोर्ट ने सरकार पर नाराजगी जाहिर की।
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