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Santan Saptami 2017 इस व्रत से मिलती है मनचाही संतान, होती है उन्नति, जानें महत्व और विधि

ह व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है

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Santan Saptami 2017 ganesh chaturthi Vrat puja muhurt date time Mahatva in hindi

Santan Saptami 2017 ganesh chaturthi Vrat puja muhurt date time Mahatva in hindi

जबलपुर। संतान सप्तमी व्रत भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है। इस वर्ष 28 अगस्त, 2017 को सोमवार के दिन मुक्ताभरण संतान सप्तमी व्रत किया जाएगा। ज्योतिषाचार्य सचिनदेव एवं जनार्दन शुक्ला के अनुसार यह व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है। इस व्रत में भगवान शिव एवं माता गौरी की पूजा का विधान होता है। भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है।

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सप्तमी व्रत विधि-
सप्तमी का व्रत माताओं के द्वारा किया अपनी संतान के लिये किया जाता है। इस व्रत को करने वाली माता को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृ्त होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद प्रात काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए। सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए।

निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए। सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है। संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है तथा बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए।

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संतान सप्तमी व्रत का महत्व-
संतान सप्तमी व्रत विशेष रुप से संतान प्राप्ति, संतान रक्षा और संतान की उन्नति के लिये किया जाता है। इस व्रत में, भगवान विष्‍णु, भगवान शंकर और माता गौरी की पूजा करनी चाहिये, ऐसी मान्‍यता है देवकी तथा वसुदेव ने कंस से अपनी संतानों रक्षा के लिये लोमश ऋषि के कहने पर संतान सप्तमी व्रत रखा था।

यह राधा अष्‍टमी से ठीक एक दिन पहले पडता है, इसलिये इसे ललिता सप्तमी भी कहते हैं, देवी ललिता राधा जी की आठ प्रमुख सखियों में से एक हैं। श्री राधारानी और भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय सखी होने केे कारण यह दिन उनको समर्पित किया गया है। यह एक बहुत ही शुभ दिन है और एक काफी महत्व रखता है।

निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए।सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है। संतान की रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को कलावा अर्पित किया जाता है तथा बाद में इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए।

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