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Shiv mandir : श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी इस शिवलिंग की स्थापना, सिद्ध होती है तंत्र साधना

Shiv mandir : श्रीराम के पुत्र कुश ने की थी इस शिवलिंग की स्थापना, सिद्ध होती है तंत्र साधना, इस शिवालय की वास्तुकला व मजबूती अद्भुत है। सदियों बीतने के बाद भी यह ऐसा लगता है जैसे हाल ही में बनाया गया हो।

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Shiv mandir

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Shiv mandir : शिवतनया नर्मदा के हर कंकड़ को शंकर कहा जाता है। देश के प्रसिद्ध व प्राचीन शिवालय नर्मदा के किनारे ही स्थित हैं। ऐसा ही एक प्राचीन शिवालय नर्मदा तट जिलहरीघाट में है। इसे कुशावर्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। पौराणिक मान्यता है कि यहां भगवान श्रीराम के पुत्र राजा कुश ने स्वयं शिवलिंग स्थापित किया था। इस शिवालय की वास्तुकला व मजबूती अद्भुत है। सदियों बीतने के बाद भी यह ऐसा लगता है जैसे हाल ही में बनाया गया हो।

Shiv mandir : जिलहरीघाट स्थित शिवालय तंत्र साधना के लिए विख्यात

Shiv mandir : तंत्र साधना के लिए यह शिवालय प्रसिद्ध

यहां दूर-दूर से तांत्रिक और साधक आते हैं। सावन में यहां शिवभक्तों का तांता लग रहा है। संतजन बताते हैं कि पौराणिक कथाओं में कुशावर्तेश्वर मंदिर का जिक्र आता है। इन कथाओं के अनुसार, भगवान श्रीराम के पुत्र व प्रतापी राजा कुश ने इस जगह में कई वर्षों तक तपस्या की थी। उसी दौरान उन्होंने यहां भोलेनाथ के शिवलिंग की स्थापना की थी। उनके नाम पर ही इस मंदिर का नामकरण कुशावर्तेश्वर महादेव किया गया। मंदिर में मां नर्मदा के परिक्रमा वासियों के रुकने की भी पूर्ण व्यवस्थाएं की गई हैं। दूर-दूर से परिक्रमावासी यहां पर आकर विश्राम करते हैं।

Shiv mandir : एक हजार वर्ष पुराना

इसके निर्माण के वास्तविक काल की जानकारी तो किसी के पास नहीं है। मंदिर के बारे में वसंत चिटणीस सुहजनी वाले बताते हैं कि यह मंदिर लगभग 565 वर्ष से उनके परिवार के संरक्षण में हैं। इतिहासकार डॉ. आनन्द सिंह राणा बताते हैं कि इस मंदिर का इतिहास एक हजार वर्ष पुराना है। खास बात यह है कि इस मंदिर में अभी तक कोई टूटफूट नहीं हुई है। यहां सावन में बड़ी संख्या में लोग भोले का अभिषेक करने के लिए पहुंच रहे हैं।

Shiv mandir : नर्मदा तट का मनोरम दृश्य बढ़ाता है सुुंदरता

महाराष्ट्र ब्रह्मवृन्द समाज के पदाधिकारियों ने बताया कि यह अत्यंत ख्याति प्राप्त मंदिर है। यह प्रकृति की गोद में बसा अति मनोहर मंदिर है। सामने की ओर नजर आता नर्मदा नदी का मनोरम तट इसकी सुंदरता को द्विगुणित कर देते हैं। यह स्वयंसिद्ध मंदिर है जहां पर प्रारंभ में एक कुंड था। जिसमें शिवलिंग के नीचे जिलहरी ही स्थित थी। इसी कारण से नर्मदा नदी के इस घाट को जिलहरी घाट के नाम से जाना जाने लगा। स्थानीय बुजुर्ग बताते हैं कि कालांतर में इस कुंड को सदैव के लिए बंद करके उसी स्थान पर वर्तमान मंदिर का निर्माण किया गया।