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नई तकनीक सिखाएं पर कुप्रभाव से भी बचाएं, बच्चों की काउंसलिंग जरूरी

बढ़ती उम्र के बच्चों की हरकतों पर रखें अधिक नजर, स्मार्ट फोन, इंटरनेट के उपयोग का साइड इफेक्ट  बच्चों को अपराध की तरफ भी मोड़ रहा है।  

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sudarshan@123 kumar

Jan 02, 2017

Child Trafficking2

Child Trafficking2

जबलपुर। तकनीक के विकास के साथ इसके दुरुपयोग भी सामने आ रहे हैं। स्मार्ट फोन, इंटरनेट के उपयोग का साइड इफेक्ट बच्चों को अपराध की तरफ भी मोड़ रहा है। बच्चे तकनीक के साथ चलें लेकिन उन्हें इसके कुप्रभाव से बचाना भी है। पत्रिका अदालत में अधिवक्ताओं ने अपने बेबाक विचार रखे। सबने बच्चों के बालिग होने के पहले उनके हाथों में स्मार्ट फोन न दिए जाने की वकालत की। वकीलों ने कहा कि तकनीक के कुप्रभाव से बचाने के लिए बच्चों की आईटी व मनोविज्ञान स्पेशलिस्ट से काउंसलिंग जरूरी है।

ये हैं कारण
वकीलों ने कहा कि स्कूली बच्चे बाल सुलभ जिज्ञासा से भरे होते हैं। हर नई तकनीक उन्हें आकर्षित करती है। इसी के चलते देखा जा रहा है कि स्मार्ट फोन के जो फंक्शन बड़े लोग नहीं जानते, कई बच्चे उनमें माहिर होते हैं। चर्चा के दौरान कुछ महत्वपूर्ण कारण निकल कर आए, जिनकी वजह से बच्चे अपराध, विशेषत: साइबर क्राइम की ओर मुड़ रहे हैं। अदालत में आरपी बुधौलिया, अनुराग साहू, थामस एंथोनी, महंेद्र पटेल, महेश दुबे, रामप्रकाश पटेल, मुकुंद पांडे, श्रवण पांडे, शैलेंद्र सिंह, महिधर पांडे, संजीव विश्वकर्मा, अखिलेश तिवारी, अमित साहू, मनीष दुबे उपस्थित रहे।


सामने आए ये तथ्य
-सर्च इंजनों का प्रयोग करने के दौरान उन्हें अश्लील, अपराधिक वेबसाइट्स के बारे में मालूम हो जाता है।
-वाट्सअप, फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म से भी उन्हें यह जानकारी आसानी से मिल जाती है। अपराध जगत का ग्लैमर उन्हें इस ओर जल्दी आकर्षित कर सकता है।
-क्राइम फिल्मों से मिली आधी-अधूरी जानकारी को पूरा पाने के चक्कर में गलत लोगों के संपर्क से बच्चों को साइबर अपराध की प्रेरणा मिलती है।
-कम्प्यूटर प्रोग्रामिंग जानने वाले कई बच्चे इंटरनेट का अधिक उपयोग करते-करते हैङ्क्षकंग जैसी अपराधिक कला में प्रवीण हो जाते हैं। शुरू में खेल-खेल में की जाने वाली हैकिंग बाद में प्रोफेशनल हैकर्स तैयार करती है। सोशल मीडिया के इस्तेमाल से दोस्तों के जरिए भी साइबर क्राइम की प्रेरणा मिल सकती है।

ये हो सकते हैं नियंत्रण के उपाय
-स्कूलों में बच्चों को एंड्रायड, स्मार्ट या आईफोन मोबाइल लाने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया जाए।
-अधिक जरूरत पर थोड़े बड़े बच्चों को केवल वाइस कॉल व मैसेज वाले मोबाइल दिए जा सकते हैं।
-बच्चों को कम्प्यूटर पर इंटरनेट का उपयोग बिना देखरेख के न करने दिया जाए।
-बच्चों को पश्चिमी देशों के चैनल व हॉलीवुड की अपराध प्रमुख फिल्में देखने पर नियंत्रण लगाया जाए।
-कम्प्यूटर शिक्षा के साथ उसके मनोवैज्ञानिक पहलुओं की भी जानकारी दी जाए।
-हर स्कूल में बच्चों के लिए नियमित रूप से आईटी व मनोविज्ञान विशेषज्ञों की काउंसिलिंग कराई जाए।
-माता-पिता भी कम्प्यूटर की जानकारी रखें, ताकि बच्चों की निगरानी की जा सके।
-यदि बच्चे कम्प्यूटर या स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करें, तो उन्हें सोशल मीडिया का उपयोग न करने दिया जाए।

बच्चों को कम्प्यूटर व स्मार्ट फोन में सोशल साइट्स का उपयोग करने से रोक लिया जाए तो इस समस्या पर काफी हद तक लगाम लगाई जा सकती है। बच्चों के हाथों में कोई भी नयी तकनीक सौंपने से पहले माता-पिता को इसकी पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए। अन्यथा तकनीक के दुरुपयोग की पूरी आशंका है। केवल सावधानी ही इस समस्या का उपाय है।
आरके सिंह सैनी, जिला बार एसोसिएशन अध्यक्ष

बच्चों में नैतिक गुणों के विकास पर जोर देना चाहिए। हमारी संस्कृति, पूर्वजों, महापुरुषों के जीवन की बातें उन्हें प्रेरणा देती है, लिहाजा बच्चों को यह जानकारियां दी जानी चाहिए। बच्चों को कम्प्यूटर या मोबाइल का उपयोग केवल आवश्यकता में और अपनी आंखों के सामने ही करनें दें। टीवी प्रोग्राम को चैनल लॉक के जरिए जरूरत के अनुसार नियंत्रित करें।
अमित साहू, अधिवक्ता, मप्र हाईकोर्ट

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स्कूल शिक्षा में जरूरी कम्प्यूटर ज्ञान स्कूल में ही दिया जाना चाहिए। घरों में बच्चों को कम्प्यूटर का इस्तेमाल करने से मना करना चाहिए।
मुकुंद पांडे, अध्यक्ष, जूनियर लॉयर्स एसोसिएशन

सोशल साइट्स बच्चों को गुमराह कर रही हैं। इनके दुरुपयोग से बच्चों को बचाना होगा।
श्रवण पांडे, सचिव, जूनियर लॉयर्स एसोसिएशन
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कम्युनिकेशन गैप से साइबर क्राइम की ओर जा रहे बच्चे

जबलपुर. इन दिनों बच्चे साइबर क्राइम की चपेट में आ रहे हैं। इसमें सारी गलती टेक्नोलॉजी की नहीं है, बल्कि गलती पैरेंट्स की भी है। वे अपने बिजी शेड्यूल के चलते बच्चों पर ध्यान नहीं देते। बच्चे अपने दोस्तों और इंटरनेट के जरिए जिज्ञासाएं शांत करने का प्रयास करते हैं। बच्चों के बीच जनरेशन व कम्युनिकेशन गैप को पाटना होगा। बच्चों के इंटरनेट और दोस्तों के साथ बिताए जाने वाले समय को अनुशासित करें। रुचि जानकर उसके अनुरूप व्यवहार करें।

इसलिए भटकते हैं
10वीं से 12वीं तक का समय काफी जटिल होता है। वे जल्द से जल्द लाइफ में सब कुछ अचीव करना चाहते हैं। टीवी, सोशल मीडिया और इंटरनेट के जरिए कई चीजें सीखकर उन्हें अपने व्यवहार में लाने गलत काम करते हैं। उनकी यही नासमझी उन्हें टेक्नोलॉजी से छेड़छाड़ करना सिखा देती है और वे अपराध की ओर बढ़ जाते हैं।

बच्चों को यह भी सिखाएं
-ऑनलाइन किसी भी तरह का फोटो न भेजें।
-सारे पर्सनल डाटा का स्ट्रॉन्ग पासवर्ड बनाएं।
-निजी सूचनाआें को निजी ही रखें।
-अपना कम्प्यूटर व स्मार्ट फोन लॉक रखें।
-ईमेल, लिंक, एप्स से कम्प्यूटर को प्रोटेक्ट रखें।
-गतिविधियों की जानकारी पुलिस को भी दें।

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