नीरज मिश्र @ जबलपुर। खालो-खालो मोरे मेहमान... कटंगी को रसगुल्ला..। ठेठ बुंदेली अंदाज में ये पंक्तियां किसी और के लिए नहीं, बल्कि रसगुल्लों के लिए लिखी गई हैं। लोक कलाकार बकायदा मंचों पर इसका गायन भी करते हैं। दरअसल कटंगी का रसगुल्ला है ही इतना लजीज कि इसके लिए वाहनों के पहिए तक थम जाते हैं। दशकों पुरानी दुकानों पर मिट्टी के कुल्हड़ में रसगुल्ले खरीदने के लिए कतारें लगती हैं। और तो और इस क्षेत्र में आने वाली बारातों में वर पक्ष की खास फरमाईश रहती है कि बारातियों का स्वागत कटंगी के रसगुल्लों से किया जाए...।