गांव में उस दौरान उन्होंने बताया बेल पोटास का विकल्प है, यूरिया का विकल्प गाजरघास है। रॉक फास्पेट से फास्फोरस का विकल्प तैयार किया जा सकता है। माइक्रो न्यूटेंट के लिए डी कम्पोजर में आइल शीड सरसों, तिली, मूंगफली, तुअर, उड़द, मूंग पीसकर डालने से तैयार घोल उपयोग किया जा सकता है। कॉपर के लिए तांबे का पात्र डाल दें, जिंक के लिए पुरानी बैटरी से निकली जस्ते की प्लेट निकालकर घोल में डाल दें। इस प्रकार घोल तैयार हो जाएगा। इसी प्रकार पौधे की वृद्धि के लिए षडरस लिया, इसे तैयार करने 6 लीटर मठा में एक किलो आंवला डालकर एक सप्ताह रख दिया। इसमें एक सप्ताह में फ फूं द आने पर डालने से पौधों में अच्छी ग्रोथ होती है। इसी प्रकार से लहसुन, मिर्च, तम्बाकू को पानी में डालकर पंद्रह दिन में तैयार घोल का छिड़काव इल्ली व अन्य कीटों को नष्ट करने के लिए किया जा सकता है। इन सूत्रों को अपनाया और जीवाणु घोल एक एकड़ पर हजार लीटर डालते हैं। वेंचुरी पद्धति के जरिए नोजल के माध्यम से जीवाणु घोल पौधे तक पहुंचता हैं। पंद्रह-पंद्रह दिन में स्प्रे भी करते हैं।
ऐसे किसान जो मटर की खेती के लिए रसायन युक्त खाद, उर्वरक व कीटनाशक का उपयोग कर रहे हैं, उनके खेतों में 25 से 30 क्विंटल तक प्रति एकड़ मटर का उत्पादन हुआ, लेकिन मटर में वैसा स्वाद भी नहीं मिला। जबकि, विनय ने जैविक तरीके से खेती कर 50 क्विंटल तक प्रति एकड़ मटर का उत्पादन किया। वे तुअर, मटर, चना, मसूर, उड़द, मूंग, सरसों की खेती कर रहे हैं और उनके खेतों में अच्छा उत्पादन हो रहा है। आसपास के कई जिलों के किसान विनय से जैविक खेती के गुर सीखने आते हैं।